Jharkhand: पूजा सिंघल के फंसने के बाद, बदले बदले से सरकार नजर आते हैं... बड़े हाकिमों ने धरा मौन व्रत
Jharkhand IAS Pooja Singhal आइएएस अधिकारी पूजा सिंघल का प्रकरण देश-प्रदेश की सुर्खियों में है। इस घटनाक्रम से शासन पर तो ऊंगली उठ ही रही है झारखंड की ब्यूरोक्रैसी भी कम खौफ में नहीं है। ऊपरी कमाई को भगवान का प्रसाद मानने वाले अफसर सर्वाधिक सदमे में हैं।
रांची, [जागरण स्पेशल]। भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों में प्रवर्तन निदेशालय, ईडी के हत्थे चढ़ीं झारखंड की खान और उद्योग सचिव आइएएस अधिकारी पूजा सिंघल का प्रकरण देश-प्रदेश की सुर्खियों में है। जितना मुंह उतनी बातें हो रही है। इस घटनाक्रम से शासन पर तो ऊंगली उठ ही रही है, झारखंड की ब्यूरोक्रैसी भी कम खौफ में नहीं है। ऊपरी कमाई को भगवान का प्रसाद मानने वाले अफसर पूजा सिंघल का हाल देखकर सर्वाधिक सदमे में हैं। कईयों की तो बोलती बंद हो गई है। सरकार के अंदर-बाहर की तमाम अटकलों और चर्चाओं के बीच राज्य की नौकरशाही पर राज्य ब्यूरो के प्रभारी प्रदीप सिंह के साथ पढ़ें सत्ता का गलियारा...
बड़ी लंबी रात है...
कुछ हाकिम हैं जिन्हें न दिन का चैन है न रात का आराम। जलने वालों ने इतना डरा दिया है कि खुली आंखों में भी आ रहे बुरे सपने। वैसे एक दिन में तो सबकुछ होने से रहा। जब से डंडा चला है, तब से यही हाल है। ऐसे में पुराने दिन भी याद आ रहे रह-रहकर। वैसे एक-दूसरे को सब दिलासा दे रहे, लेकिन गुमसुम ऐसे हैं मानों मौन व्रत धारण कर रखा हो। मिलने पर पहले बाहें फैलाते थे, लेकिन अब नजरें चुराकर लल्लन जी टाइप ऐसे खिसक जाते हैं मानों पूछने पर कह बैठेंगे कि हमसे तो किसी ने कहा ही नहीं। ऐसे साहबों के खैरख्वाह भी कम नहीं हैं अपने यहां, लेकिन इस जमात ने भी काट ली है समय की नजाकत को देखते हुए कन्नी। वैसे कहा भी जाता है कि जब जहाज डूबने वाला होता है तो चूहे पहले सरक लेते हैं।
इसे ही कहते हैं - रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गया। अब असली बल तो लाठी में होता है। जिसकी लाठी, उसकी भैंस। कहां पहले इनके नाम का चिराग जलता था, लेकिन अब हाल यह है कि कोई भी धकिया दे रहा है। खैर, ऐंठन और हुक्म चलाने का अंदाज तो धीरे-धीरे जाता है। बस, इसी फेर में बड़े घर में जाने के पहले ही गांठना शुरू कर दिया रौब। थोड़ी देर तक तो इनके नाज-नखरे सहे गए, लेकिन जब ज्यादा रायता फैला तो एक ने दिखा दी ताकत। उसके बाद से मैडम हुजूर एकदम राइट हैं। कहती भी फिर रही हैं कि कोई दिक्कत नहीं है। पूरी खातिरदारी भी हो रही है। बस जरा बीपी अप-डाउन हो रहा है, वह भी सुधर जाएगा धीरे-धीरे। अब एकाएक उठाकर पूछने से टेंशन में तो उछाल आना स्वाभाविक है।
कहते हैं कि इतिहास कभी पीछा नहीं छोड़ता, सारा हिसाब-किताब समय पर कर लेता है बराबर। अब इस हाकिम को ही देखिए। छवि सुधारने के लिए क्या-क्या करते नहीं फिर रहे, लेकिन ऐसा तोहमत जुड़ गया है कि न निगलते बन रहा है न उगलते। फेर में ऐसा पड़े हैं कि कभी-कभी मन करता है कि सारा माया-मोह त्याग कर निकल जाएं। भला कौन पड़े इस पचड़े में। वैसे इनके सेवकों की भरमार है और हाकिम भी हैं पाला बदलने में माहिर। जिधर ढलान देखी, उधर लुढ़क गए। अब आसपास हो घर तो छिपना-छिपाना भी पड़ता है। जाकर सलाम बजा आए हैं कि हमारा तो बेकार ही बन रहा फाइल। एक शुभचिंतक की सलाह पर दरवाजे के आगे दो केले का पेड़ भी लगा लिया है। बताया गया है कि इससे वास्तुदोष सुधरेगा, लेकिन लक्षण देखकर तो इसके आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते।
ना बाबा ना
अब जिसके लिए मारामारी मची थी, उसे लेने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। कुर्सी खाली है पड़ी है काफी दिनों से। इधर रोज फरमान जारी हो रहा है जीरो टालरेंस का, उधर कुछ आपस में कानाफूसी कर रहे कि ये ईडी वालों के बाल-बच्चे गर्मी में कहीं घूमने नहीं जाते। जब से आए हैं, कभी शांत बैठे ही नहीं।। एक शातिर ने काफी मेहनत से बनवाया था अपने लिए बंगला। सोचा था कि यहीं से चलेगा राजपाट, लेकिन सबकुछ छिन गया और बंगला भी निकल गया हाथ से। रही सही कसर भी ऐसी पूरी हुई कि न घर के रहे न घाट के। बंगले को जब्त कर वहीं से सब बेचारों को आंखे भी दिखा रहे। अब जो इसकी माया-मोह में अटका, उसका परलोक बिगड़ना तय है। अंदर की बात है कि कुछ ने तो इससे बचने के लिए बाहर जाने की अर्जी भी लगा डाली है।