सरकार नई, व्यवस्था नई, यह वायरस भी नया-नया है... पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर DIAL 100
साहब की सांसें फूल रही है कि कोई अनहोनी न हो जाए। क्योंकि पुलिस बेवजह बाहर निकलने वालों को रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही है।
रांची, जेएनएन। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद झारखंड पुलिस के डीजीपी बदल दिए गए। सो, नए कप्तान के आते ही पुलिस मुख्यालय की आबोहवा भी बदल गई है। तमाम साहबान अपनी गोटी सेट करने में जुट गए हैं। हालांकि, बड़े साहब को सिर्फ और सिर्फ काम पसंद है। कड़क मिजाज के साहब को सबकी कुंडली पता है, लिहाजा सब पर नजदीकी नजर रखी जा रही है। पुलिस महकमे की अंदरुनी खबरों पर यहां पढ़ें राज्य ब्यूरो के संवाददाता दिलीप कुमार के साथ डायल 100...
लट्ठ से बैटिंग
कोरोना के मैदान पर खाकी वाले लट्ठ से बैटिंग कर रहे हैैं। जिन्हें क्रिकेट कभी पसंद भी नहीं रहा वे भी रन बनाने में जुटे हैं। न टेस्ट मैच हो रहा है है और न ही वन डे। यह मैच भी अलग टाइप का और एकतरफा है। टॉस जीतकर खाकी वाले बैटिंग चुन लिए और पिछले तीन दिनों से ताबड़तोड़ धुनाई कर रहे हैं। न तो बॉलिंग करने वाले थक रहे हैं और न हीं बैट्समैन बने खाकी वाले साहब थक रहे हैं। इनका क्रिकेट जरा हटकर है। इसे खेलने के लिए किसी सपाट मैदान की जरूरत नहीं। जहां चाहा अपना लट्ठ वाला बल्ला निकाल लिया और उतर गए सड़क पर। इसके बाद फिर शुरू हो जाती है बैटिंग। पर साहब जी संभलकर। आपके ऊपर वाले साहब आप पर नजर रख रहे हैं। खेलिए लेकिन संभलकर, नहीं तो क्लीन बोल्ड होना तय है।
मुझको भी तो लिफ्ट करा दे
कप्तान के बदलते ही पुलिस मुख्यालय की आबोहवा ही बदल गई। कई चर्चित चेहरे अपनी गोटी सेट करने में जुट गए हैं, ताकि सही जगह पर रहें और शांतिपूर्वक अपनी नौकरी चला सकें। इन दिनों मुख्यालय की फिजां में सिर्फ एक ही गीत गूंज रहा है, मैं हूं तेरा मानने वाला, मुझको भी तो लिफ्ट करा दे। इसके बावजूद यह गीत कुछ ज्यादा असर नहीं दिखा पा रहा है। कप्तान साहब को ऐसे गीतों में रूचि ही नहीं है। उन्हें रिझाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। साहब को काम पसंद है। उन्हें सबकी कुंडली पता है। जो काम करेगा, उसे ही लिफ्ट कराएंगे। हाल तो सबका लेते हैं और नजर भी सबपर है। अब देखना है कि कड़क मिजाज व अंदाज वाले कप्तान साहब की कृपा किस पर बरसती है।
दुश्मन नहीं दोस्त कहिए
दुश्मन नहीं दोस्त कहिए हुजूर। जान लेकर जेल में आए जरूर थे, लेकिन वह बीता हुआ कल था। अब खून से सने यह हाथ दूसरों की जिंदगी संवारने के लिए उठे हैं। जेल में काम करने की सजा मिली थी, अब पुण्य कमा रहे हैं। कोरोना महामारी से बचने के लिए जी-जान से मास्क बना रहे हैं, ताकि बाहर में घूम रहे अपने लोग मास्क की कमी के चलते जिंदगी की जंग न हारें। कहा जाता है न कि कब, कहां किस मोड़ पर किसका साथ मिल जाए, कौन डूबती नैया का पतवार बन जाय, कहा नहीं जा सकता। आज यही हो रहा है। धागा से कपड़ा बुनकर और उसी कपड़े से मास्क तैयार कर लोगों तक भिजवा रहे जेलों के कैदी जान बचाने वाले कर्मवीरों को यही संदेश दे रहे हैं कि घबराना नहीं, वे भी जान बचाने को लगा देंगे जी जान।
साहब भी सावधान
खाकी वाले साहब अब पूरी सावधानी बरत रहे हैं। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सड़कों पर उतरी अपनी सेना बहके नहीं, इसपर साहब की विशेष नजर है। लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों को यह वायरस न छू पाए, उसके लिए खुद ढाल बनकर तैयार हैं। यह जरूरी भी है, क्योंकि सरकार नई, व्यवस्था नया और यह वायरस भी नया है। ऐसे में चूक न हो, इसे लेकर उनकी नींद उड़ी हुई है। देश भर की पुलिस बेवजह बाहर निकलने वालों को रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रही है। राजधानी का भी यही हाल है। ऐसे में साहब की सांसें फूल रही है कि कोई अनहोनी न हो जाए। लगातार निचले स्तर तक अपना संदेश फैला रहे हैं कि हिटलरशाही नहीं चलेगी। मददगार बनें, शासक नहीं। चाहे वह बाहर तफरीह करने ही क्यों न निकला हो। उसे सिर्फ समझाना है, समझे। साहब के आदेश के बाद सब शांति-शांति है।