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Jharkhand Budget: अस्पताल भवन तो तैयार, लेकिन डॉक्टर-नर्स का नहीं हो रहा दीदार

Jharkhand Budget राजधानी रांची की नाक के नीचे स्थित अस्पताल खुलने से पहले ही बंद हो गया क्योंकि यहां डॉक्टर नर्स और अन्य पारा मेडिकल कर्मियों का पदस्थापन नहीं हो सका।

By Alok ShahiEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 06:51 PM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 06:54 PM (IST)
Jharkhand Budget: अस्पताल भवन तो तैयार, लेकिन डॉक्टर-नर्स का नहीं हो रहा दीदार
Jharkhand Budget: अस्पताल भवन तो तैयार, लेकिन डॉक्टर-नर्स का नहीं हो रहा दीदार

रांची, राज्य ब्यूरो। रांची के बुढ़मू पंचायत स्थित मुरूपिरी स्वास्थ्य उपकेंद्र। वर्ष 2007-08 में इसके निर्माण की योजना ली गई थी। बनकर तैयार हुआ 2014-15 में। इस अस्पताल को आज भी डॉक्टरों और नर्सों की जरूरत है। राजधानी रांची की नाक के नीचे स्थित अस्पताल खुलने से पहले ही बंद हो गया, क्योंकि यहां डॉक्टर, नर्स और अन्य पारा मेडिकल कर्मियों का पदस्थापन नहीं हो सका। आसपास के लोगों को इससे बड़ी उम्मीद थी कि पास में ही उन्हें चिकित्सा सुविधा प्राप्त होगी। लेकिन उनके सपने पूरे नहीं हुए।

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ऐसे कई अस्पताल हैं जिन्हें आज भी डॉक्टरों और नर्सों का इंतजार है। वर्ष 2007-08 तथा 2008-09 में नए अस्पताल खोलने की कई योजनाएं ली गई थीं, जिन्हें पूरा होने में भी आठ से दस साल लग गए। इधर, राज्य के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की बात करें तो कुछ में एक भी डॉक्टर कार्यरत नहीं हैं तो कुछ में महज एक। हाल ही में जारी केंद्र की रिपोर्ट 'रूरल हेल्थ स्टैटिक्स' में भी यह बात सामने आई कि राज्य के आधे से अधिक पीएचसी महज एक डॉक्टर के भरोसे हैं।

राज्य में कुल 203 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैंं, जिनमें से आधे से अधिक अर्थात 140 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में महज एक-एक डॉक्टर कार्यरत हैं। राज्य में कोई ऐसा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है जहां चार या इससे अधिक डॉक्टर कार्यरत हों। तीन डॉक्टरों वाले ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या महज 14 है, जबकि 42 ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां दो-दो डॉक्टर कार्यरत हैं। दूसरी तरफ, सात प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे हैं जहां एक भी डॉक्टर कार्यरत नहीं है। इससे निपटने के लिए बजट में डॉक्टरों की सैलरी बढ़ाने से लेकर उनके आवासन व अन्य सुविधाओं पर भी जोर देना होगा। 

पारा मेडिकल कर्मियों की भी कमी

राज्य में लगभग सौ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना लैब तकनीशियन, 117 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना फार्मासिस्ट तथा 55 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना महिला चिकित्सक के संचालित हैं। 

फैक्ट फाइल

  1. 98 सर्जन की जरूरत है राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों के सीएचसी में, है एक भी नहीं।
  2. 98 स्त्री रोग स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की आवश्यकता है इन क्षेत्रों के सीएचसी में, लेकिन महज 15 कार्यरत हैं।
  3. -98 फीजिशियन की जरूरत है इन क्षेत्रों में, जबकि कार्यरत महज पांच हैं।
  4. -98 शिशु रोग विशेषज्ञों की आवश्यकता है, जबकि कार्यरत महज दस हैं।
  5. 392 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की जरूरत है लेकिन कार्यरत महज तीस हैं।

कुपोषण व एनीमिया भी बड़ी समस्या

  1. 65.2 फीसद महिलाओं में खून की कमी है झारखंड में।
  2. 06 से 59 माह की 70 फीसद बच्चियां, 62.6 फीसद गर्भवती महिलाएं तथा मां बनने योग्य उम्र की 65.2 महिलाओं में एनीमिया की समस्या रहती है।
  3. 01 लाख बच्चों के जन्म होने पर 165 महिलाओं की मौत हो जाती है।
  4. 47.8 फीसद बच्चे अंडरवेट अर्थात कुपोषण के शिकार हैं झारखंड में।
  5. 11.4 फीसद बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं झारखंड में। इनमें मौत का खतरा नौ से बीस गुना अधिक रहता है। ऐसे बच्चों की संख्या 5.8 लाख है।
  6. 10 में से तीन बच्चे अपनी लंबाई की तुलना में दुबले-पतले हैं।

हाल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का

  1. 203 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैंं पूरे राज्य में
  2. 140 केंद्रों में महज एक-एक डॉक्टर कार्यरत हैं
  3. 7 केंद्र ऐसे हैं जहां एक भी डॉक्टर कार्यरत नहीं है

एक्सपर्ट ओपिनियन : ग्रामीण क्षेत्रों में ही उपलब्ध हो इलाज

राज्य बजट से लोगों की काफी उम्मीदें हैं। खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के बजट पर। उम्मीद है राज्य सरकार भी इस बात को अच्छी तरह समझ रही होगी। राज्य में स्वास्थ्य क्षेत्र की समस्याओं की बात करें तो रिम्स व राज्य के अन्य मेडिकल कॉलेजों में समस्या तो है ही, लेकिन कई ऐसे उप स्वास्थ्य केंद्र व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं जहां न तो कोई डॉक्टर पदस्थापित है न ही नर्स। वहां मरीजों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं शून्य के बराबर हैं। नई सरकार को इस दिशा में काम करने की जरूरत है।

राज्य भर में सभी उप स्वास्थ्य केंद्रों में जहां लोग इलाज के लिए पहले पहुंचते हैं वहां छोटे ऑपरेशन थिएटर की सुविधा होनी चाहिए। जहां न सिर्फ ड्रेसिंग की सुविधा हो, बल्कि छोटे-मोटे ऑपरेशन भी हो सके ताकि लोगों को अपने ग्रामीण क्षेत्र से तुरंत शहर न आना पड़े। इससे मेडिकल कॉलेजों पर लोड भी कम होगा। चिकित्सकों के रिक्त पदों पर शीघ्र नियुक्ति की जाए। राज्य सरकार को मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट भी लागू करना चाहिए ताकि राज्य के चिकित्सक निर्भीक रूप से अपनी सेवा दे सकें। चिकित्सकों की अन्य समस्याओं का भी समाधान जरूरी है। डा. प्रदीप सिंह, सचिव, आइएमए, झारखंड।

क्या हो सकता बजट में : दूर होगी डॉक्टरों की कमी, पोषण के लिए बनेगा एक्शन प्लान

सरकारी अस्पतालों में निश्चित रूप से डॉक्टरों की कमी है। इस कमी को दूर करने के लिए न केवल डॉक्टरों की नई नियुक्ति की जाएगी, बल्कि उनकी उपलब्धता भी सुनिश्चित की जाएगी। उनके लिए बेहतर सुविधाएं बहाल करने का भी प्रयास होगा ताकि डॉक्टरों को सेवा देने में कोई परेशानी न हो। राज्य में कुपोषण भी बड़ी समस्या है। इससे निपटने के लिए एक एक्शन प्लान बनाकर काम किया जाएगा। बजट में इन सारी चीजों को समावेश करने का प्रयास राज्य सरकार का है। बजट में महिला स्वास्थ्य पर विशेष फोकस होगा। बुजुर्गों के स्वास्थ्य के प्रति भी सरकार गंभीर है। इसके लिए कुछ विशेष प्रकार की योजनाएं चलाई जाएंगी।

बुजुर्गों के स्वास्थ्य के प्रति सरकार गंभीर, कुछ विशेष योजनाएं चलेंगी

चलंत मेडिकल कैंप द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लगने वाले हाटों और बाजारों में चिकित्सा की व्यवस्था की जाएगी। बजट में इसके लिए भी प्रावधान किया जा रहा है। गरीबों तक चिकित्सीय लाभ पहुंचे ऐसी व्यवस्था की जाएगी। गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष स्वास्थ्य व्यवस्था के इंतजाम किए जाएंगे। राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य व्यवस्था दुरुस्त हो, इसके लिए समुचित उपाय करेगी। सरकारी अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था लागू हो इसपर कार्ययोजना तैयार कर काम किया जाएगा। स्वास्थ्य केंद्रों और उपकेंद्रों में डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ की कमी दूर की जाएगी। आवश्यकता के अनुसार नए पद सृजित किए जाएंगे तथा नए व पुराने पदों पर शीघ्र बहाली होगी।

चलंत मेडिकल कैंप द्वारा हाटों व बाजारों में होगी चिकित्सा व्यवस्था

राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान-रांची, एमजीएम मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल-जमशेदपुर सहित राज्य के मेडिकल कॉलेजों में भी लोगों को बेहतर और आधुनिकतम चिकित्सा सुविधा मिल सके, इसे सुनिश्चित किया जाएगा। अस्पताल में बेहतर चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराने का प्रयास होगा। स्वास्थ्य क्षेत्र में अभी तक कई क्षेत्र उपेक्षित रहे हैं। सरकार उन क्षेत्रों पर प्राथमिकता के साथ काम करेगी। अस्पतालों में दवा उपलब्ध हो, मरीजों की जांच की सुविधा सहज मिले इसे सुनिश्चित किया जाएगा। सरकार में शामिल दलों ने घोषणापत्र में स्वास्थ्य क्षेत्र की बेहतरी के लिए जो संकल्प लिए हैं उन्हें भी प्राथमिकता के साथ चरणबद्ध ढंग से पूरा किया जाएगा।  -बन्ना गुप्ता, मंत्री, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण, झारखंड सरकार। 

झामुमो ने अपने घोषणापत्र में 50 लाख परिवारों के लिए पोषण वाटिका की कही है बात

सरकार में शामिल तीनों दलों ने विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य में कुपोषण को दूर भगाने तथा स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर व दवा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के वादे किए थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कुपोषण की समस्या से लडऩे हेतु 50 लाख परिवारों के लिए पोषण वाटिका का निर्माण करने का संकल्प लिया था। यदि यह लागू होता है तो इन पोषण वाटिका से इन परिवारों को वर्ष भर सब्जी एवं फल की आपूर्ति होगी।

दलों ने किए हैं कुपोषण से निपटने के वादे

मोर्चा ने अपने घोषणापत्र में यह भी कहा था कि कैंसर, किडनी एवं लिवर की गंभीर बीमारी से ग्रस्त सभी गरीबों के इलाज पर होनेवाली संपूर्ण खर्च का वहन सरकार करेगी। वहीं, सभी प्राथमिक एवं उप स्वास्थ्य केंद्रों पर डाक्टरों, नर्सों एवं दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी। यह भी वादा है कि प्रत्येक पांच हजार परिवार पर एक एंबुलेंस एवं प्रत्येक एक हजार परिवार पर एक ममता वाहन की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही गिरिडीह एवं साहिबगंज में नए मेडिकल कॉलेज खोलने की भी बात कही है। कांग्रेस और राजद ने भी अपने-अपने घोषणापत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं सुदृढ़ करने तथा लोगों को सहज व सस्ती चिकित्सा सुविधा बहाल करने पर जोर दिया है।


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