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Jharkhand Budget 2021: इधर सरकार, उधर भाजपा भी तैयार...

Jharkhand Budget 2021 झारखंड विधानसभा में सोमवार को अनुपूरक बजट सत्र की कार्यवाही शुरू होते ही भाजपा विधायक वेल में पहुंच गए। मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं करने पर विपक्ष के विधायकों ने जमकर विरोध जताया और नारेबाजी भी की। इसके बाद स्पीकर ने कार्यवाही 12.30 बजे तक स्थगित कर दिया।

By Alok ShahiEdited By: Published: Mon, 01 Mar 2021 04:11 AM (IST)Updated: Mon, 01 Mar 2021 05:50 PM (IST)
Jharkhand Budget 2021: इधर सरकार, उधर भाजपा भी तैयार...
Jharkhand Budget 2021: भाजपा विधायकों के विरोध के बाद अनुपूरक बजट सत्र की कार्यवाही 12.30 बजे तक स्थगित।

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Budget 2021 झारखंड विधानसभा में सोमवार को अनुपूरक बजट सत्र की कार्यवाही शुरू होते ही भाजपा विधायक वेल में पहुंच गए। इन विधायकों ने मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं करने पर जमकर विरोध जताया और नारेबाजी भी की। इसके अलावा नियोजन नीति रद किए जाने का भी विरोध किया। विधायक अमर बाउरी ने कहा कि सरकार ने बगैर ठोस कारण नियोजन नीति को रद किया। हालांकि इसके बाद स्पीकर ने कार्यवाही को 12.30 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया।

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गौरतलब है कि आज अनुपूरक बजट पेश किया जाना है। वहीं, तीन मार्च को राज्य सरकार वित्तीय वर्ष 2021-22 का पूर्ण बजट पेश करेगी। सोमवार को पहली पाली में सदस्य प्रश्न काल, शून्य काल और ध्यानाकर्षण के माध्यम से जनहित के मुद्दे उठाएंगे जबकि दूसरी पाली में राज्यपाल के अभिभाषण पर वाद-विवाद, सरकार का उत्तर और मतदान होगा। 

भाजपा विधायक दल की बैठक में बनी रणनीति, जनहित के मुद्दे पर मुखर होगी भाजपा

झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान मुख्य विपक्षी दल भाजपा जनहित के मुद्दों पर सरकार को घेरेगी। रविवार शाम भाजपा विधायक दल की बैठक में सरकार को सदन में जनहित के मुद्दों पर घेरने पर मंथन हुआ। मुख्यमंत्री प्रश्न काल न होने, पत्थलगड़ी, विधि व्यवस्था, नियोजन नीति को रद किए जाने समेत अन्य मसलों पर भाजपा का रुख मुखर होगा।भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी की उपस्थिति में हुई पार्टी विधायक दल की बैठक में बजट सत्र के बाबत उठाए जाने वाले एजेंडों पर विस्तार से विमर्श किया गया।

मुख्यमंत्री प्रश्न काल नहीं होने पर सरकार को घेरेगी भाजपा

भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री प्रश्न काल की परंपरा को खत्म करने का विरोध किया। तय किया गया कि सोमवार को भाजपा इस मुद्दे को सदन में उठाएगा। नियाेजन नीति को रद करने के सरकार के फैसले की भी आलोचना की गई। विधि व्यवस्था के मसले पर भी भाजपा सरकार को सदन में घेरेगी। सत्ताधारी दलों द्वारा घोषणापत्र में किए गए वादों और उस पर अमल की स्थिति को लेकर भी सत्ता पक्ष को कठघरे में खड़ा किया जागा। बैठक में विरोधी दल के मुख्य सचेतक बिरंची नारायण समेत अन्य विधायक उपस्थित थे। 

किसानों को कर्ज से उबारने के जारी रहेंगे प्रयास, फसल क्षति की भरपाई राज्य सरकार करेगी

देश भर में किसानों के हित को लेकर छिड़ी बहस के बीच पेश होने वाले झारखंड सरकार के बजट में खेती-किसानों सरकार के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा, बजट किसानों को समर्पित होगा। सिर्फ कृषि ही नहीं इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी विभाग किसानों की आय बढ़ाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए साझा प्रयास करते हुए वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में दिखाई देंगे। राज्य बजट को इसी संकल्प के साथ बुना जा रहा है। बजट का खाका तैयार है, राज्य सरकार तीन मार्च को इसे पेश करेगी।

नए संकल्पों के साथ आगे बढ़ेगी सरकार

राज्य सरकार कृषि बजट को व्यवहारिकता की कसौटी पर कसेगी, यही वजह है कि कृषि योजनाओं के तमाम प्रस्ताव उसके जमीनी क्रियान्वयन की विस्तृत रूपरेखा के साथ मांगे गए हैं। बजट में तमाम पुरानी योजनाएं जारी रहेंगी, झारखंड के महापुरुषों के नाम कुछ नई योजनाओं को भी शुरू करने की तैयारी है, इसका खुलासा तीन मार्च को ही होगा। किसानों की कर्जमाफी योजना अगले वित्तीय वर्ष भी जारी रहेगी। इस वर्ष वित्तीय वर्ष मुख्यमंत्री कर्ज माफी योजना के तहत दो हजार करोड़ का प्रावधान किया गया था। कोविड-19 के कारण योजना का शत-प्रतिशत क्रियान्वयन नहीं हो सका।

किसान कर्ज माफी योजना के लिए 1500 करोड़ का बजटीय प्रावधान

नौ लाख किसानों के सापेक्ष इस वर्ष लगभग आधे किसानों का ही कर्ज माफ होने की संभावना है। इस एवज में किए गया बजटीय प्रावधान के भी इसी दायरे (एक हजार करोड़) में सिमट कर रह जाने की संभावना है। आधी राशि सरेंडर कर दी गई है। हालांकि इस वित्तीय वर्ष की तमाम कमियों को दूर करते हुए अगले वित्तीय वर्ष कर्ज माफी योजना को खरीफ फसल के पहले ही लागू करने की कोशिश होगी। इस मद में अगले वित्तीय वर्ष डेढ़ हजार करोड़ का प्रावधान किए जाने की बात कही जा रही है।

तमाम पुरानी योजनाएं जारी रहेंगी

राज्य सरकार किसानों की फसल की भरपाई के लिए भी बजटीय प्रावधान करेगी। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जगह फसल क्षति की भरपाई के लिए एक अलग कोष बनाया गया है। इस फंड से सरकार आपदा या सुखाड़ की स्थिति में किसानों को मदद करेगी। इस फंड में हर वर्ष राज्य सरकार सौ करोड़ रुपये डालेगी।मुख्यमंत्री पशुधन योजना जो इस वित्तीय वर्ष लांच की गई है, अगले वर्ष इसे जमीनी स्तर पर प्लानिंग के साथ लागू किया जाएगा। राज्य सरकार ने पशुधन योजना से ग्रामीण विकास और कल्याण विभाग को भी जोड़ा है।

मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना से हर वर्ष 50 हजार किसानों को जोड़ा जाएगा

मनरेगा का कन्वर्जन मुख्यमंत्री पशुधन विकास योजना के तहत किया जाएगा। इस योजना के तहत हर वर्ष कम से कम पचास हजार किसानों को जोड़ा जाएगा। सरकार की मंशा डेयरी और पशुपालन के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की है। कोल्ड स्टोरेज की तमाम लंबित योजनाओं को पूरा करने के साथ-साथ सभी प्रखंडों में सब्जी व लघु वनोपज के भंडारण के लिए 30-30 एमटी के कोल्डरूम बनाए जाएंगे। मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए हाल ही में मीठी क्रांति के नाम से लांच की गई योजना को विस्तार दिया जाएगा। इसके तहत 80 फीसद अनुदान दिया जाएगा। राष्ट्रीय कृषि योजना, प्रधानमंत्री सिंचाई योजना व अन्य केंद्रीय योजनाओं के मद में तो बजटीय प्रावधान हमेशा की तरह किया जाएगा। मत्स्य पालकों के हित में भी सरकार कदम उठाएगी।

एमएसपी पर धान का बढ़ेगा दायरा, बोनस भी बढ़ने के आसार

न्यूनतम समर्थन मूल्‍य पर धान की खरीद हमेशा की तरह न सिर्फ जारी रहेगी बल्कि इसके अंतर्गत आने वाले किसानों का दायरा भी बढ़ेगा। इस वित्तीय वर्ष एमएसपी पर 45 लाख क्विंटल धान धान खरीद का लक्ष्य रखा गया है, जिसके एवज में अब तक 31 लाख क्विंटल धान की खरीद अब तक हुई है। धान खरीद पर राज्य सरकार 182 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस भी दे रही है। अगले वित्तीय वर्ष छह लाख किसानों तक पहुंचने की कोशिशों की बात कही जा रही है, बोनस भी 250 रुपये होने की संभावना है।

प्लानिंग के स्तर पर बढ़े किसानों की भागीदारी

मुख्यमंत्री के अधीन में एक कृषक सलाहकार परिषद हो तथा ब्लॉक स्तर तक उसकी समितियां बनेंराज्य ब्यूरो, रांचीअच्छे मानसून एवं चहुंमुखी प्रयासों के बदौलत झारखंड की कृषि की दशा एवं उत्पादन पिछले दशक की अपेक्षा बेहतर हुई है। कृषि एवं कृषि कार्यों में कई सरकारी विभाग कार्य करते हैं और अपने विभाग के मांद के अनुरूप योजनाओं का संचालन करते हैं। कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के अतिरिक्त ग्रामीण विकास विभाग, और आदिवासी कल्याण विभाग मुख्य रूप से तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नाबार्ड, तथा कृषि विश्वविद्यालय भी योगदान दे रहे हैं।

कमोबेश हर जगह प्लानिंग के स्तर पर किसानों की भागीदारी नगण्य है। जाहिर है, ऐसी स्थिति में राज्य को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहा है। राज्य में बड़े पैमाने पर सूक्ष्म सिंचाई की परियोजनाएं चल रहीं हैं, पर इसके लिए मौलिक आवश्यकता सिंचाई के स्रोत पर बिजली की आपूर्ति सीमित है। बिजली के अनुपलब्धता के कारण टपक सिंचाई के तामझाम बेकार पड़े है। ऐसे ही, हाट बाजार की स्थिति है। इसमें भी किसानों की राय शुमारी नहीं है। नतीजन, हाट बाजार की जर्जर हालत के कारण सब्जी व्यापार दयनीय स्थिति में है। राज्य व्यापार निगम या इसके समकक्ष प्रतिष्ठान नहीं होने से उत्पादन के उपरांत विपणन के लिए सरकारी प्रयास या नियमन की कमी है।

कृषक उत्पादन समितियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है पर आरंभिक स्थिति में उनके देखरेख का अभाव है। सब्जी फल, दूध, मछली जैसे जल्द खराब होने वाले सामानों का उत्पादन दिनों-दिन बढ़ रहा है पर उनके प्रसंस्करण या ग्रेडिंग, पैकेजिंग, एवं शीत गृह और रेफ्रिजरेटेड वाहन की सुविधाओं का अभाव है। राज्य में 85 प्रतिशत किसान सीमांत या छोटे जोत के हैं। उनके लिए जोखिम प्रबंधन के उपाय कमजोर हैं। फसल बीमा तरह-तरह के प्रयोगों से गुजर रहा है। इसमें भी किसानों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।

ऐसी स्थिति में नीति निर्धारण में किसानों की भागीदारी हो तो राज्य सरकार बजट में जो प्रावधान करती है उसमें साझा प्रयास से बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकता है। किसान के कल्याण की योजनाओं पर भी बेहतर कार्य हो सकता है। मुख्यमंत्री के अधीन में एक कृषक सलाहकार परिषद हो तथा ब्लॉक स्तर तक उसकी समितियां बनें। कृषकों से राय शुमारी के लिए पूर्ववर्ती सरकारों ने भी कई बार तदर्थ प्रयास किए हैं, पर ईमानदारी से इस प्रयास को करने की जरूरत है। डॉ. एस कुमारसेवानिवृत्त, प्रमुख वैज्ञानिक एवं प्रधान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, अनुसंधान केंद्र प्लांडू


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