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शर्म आती है कि हमें अपनी सरकार में ही काम के लिए बात सुननी पड़ती है : लोबिन हेंब्रम

राज्य ब्यूरो रांची बोरियो से झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक लोबिन हेंब्रम सोमवार को सदन में खूब गरजे। मामला गोड्डा में 26 आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के चयन से संबंधित था। उनका आरोप था कि आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका का चयन होने के एक साल के बाद भी उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिला।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Mar 2021 08:12 PM (IST)Updated: Mon, 22 Mar 2021 08:12 PM (IST)
शर्म आती है कि हमें अपनी सरकार में ही काम के लिए बात सुननी पड़ती है : लोबिन हेंब्रम
शर्म आती है कि हमें अपनी सरकार में ही काम के लिए बात सुननी पड़ती है : लोबिन हेंब्रम

राज्य ब्यूरो, रांची : बोरियो से झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के विधायक लोबिन हेंब्रम सोमवार को सदन में खूब गरजे। मामला गोड्डा में 26 आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका के चयन से संबंधित था। उनका आरोप था कि आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका का चयन होने के एक साल के बाद भी उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिला। गोड्डा के डीसी-डीडीसी की पूववर्ती सरकार से ही मनमानी चलती आ रही है। उन्होंने चेतावनी के लहजे में कहा कि उन्हें शर्म आती है कि अपने ही सरकार में काम के लिए बातें सुननी पड़ती है। अगर दो दिनों के भीतर कार्रवाई नहीं हुई, तो वे सरकार हिलाकर रख देंगे।

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सोमवार की सुबह विधानसभा पहुंचने के बाद विधायक लोबिन हेंब्रम विधानसभा के गेट पर ही धरना पर बैठ गए थे। उन्होंने दो तख्ती पकड़ रखी थी, जिसमें एक पर लिखा था '2019 में चयनित 26 आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका को नियुक्ति पत्र प्रदान करो' व 'डीसी-डीडीसी मनमानी करना बंद करो।'

सदन शुरू होने के बाद विधायक मथुरा प्रसाद महतो ने आसन से आग्रह किया कि विधायक लोबिन हेंब्रम को सदन में लाया जाए। विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर मंत्री बादल व विधायक बिरंची नारायण गए और विधायक लोबिन हेंब्रम को मनाकर सदन में पहुंचे थे। सदन में पहुंचते ही विधायक लोबिन हेंब्रम खूब गरजे। उन्होंने कहा कि जब आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका का मामला गोड्डा के डीसी-डीडीसी के सामने रखा, तो जवाब संतोषजनक नहीं मिला। जिनका पूर्व में चयन हुआ था, उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिला और उसे रद कर दूसरा विज्ञापन निकाल दिया गया। यह भी कहा कि उनकी स्थिति यह हो गई है कि वे कहां मुंह दिखाएंगे, शर्म आती है। अपने ही सरकार में काम के लिए बात सुननी पड़ती है। इसके बाद क्षेत्र में जनता आक्रोशित है। न्याय के लिए वे बैनर-तख्ती लेकर सदन से गोड्डा तक पैदल जाएंगे, डुगडुगी बजाएंगे। सरकार भले ही उनकी बात नहीं सुने, वे अकेला ही अधिकारियों की मनमानी नहीं चलने देंगे और विरोध करते रहेंगे।

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अस्थायी कंप्यूटर ऑपरेटर को नहीं हटाएगी सरकार, यथावत बने रहेंगे :

विधानसभा में विधायक सीपी सिंह के सवाल पर संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने सदन को आश्वस्त किया कि राज्य में जितने अस्थायी कंप्यूटर ऑपरेटर कार्यरत हैं, उन्हें हटाया नहीं जाएगा। वे यथावत बने रहेंगे। कोई भी नया कर्मी बाह्य स्रोत से नहीं लिए जाएंगे। सरकार ने यह स्वीकार किया है कि दस वर्ष कार्य पूरा करने वाले कर्मी की सेवा स्थायी करने का प्रविधान किया गया है। सीपी सिंह के सवाल का समर्थन करते हुए पोड़ैयाहाट के विधायक प्रदीप यादव ने भी सदन को जानकारी दी कि कंप्यूटर ऑपरेटरों को नोटिस थमाया जा रहा है कि उन्हें हटाया जाएगा। इसके बाद ही सरकार ने सदन को आश्वस्त किया कि अनियमित रूप से नियुक्त एवं कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमितीकरण नियमावली-2015 को संशोधित करने पर विचार चल रहा है, ताकि उन्हें स्थायी किया जा सके।

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छह साल से पदस्थापित संयुक्त सचिव का होगा स्थानांतरण :

बाघमारा के विधायक ढुलू महतो के सवाल को स्वीकारते हुए सरकार ने सदन को आश्वस्त किया कि ग्रामीण विकास विभाग (ग्रामीण कार्य मामले) के संयुक्त सचिव विनोद कुमार चौधरी का स्थानांतरण होगा। वे लगातार छह साल से एक ही स्थान पर कार्यरत हैं, जिसे सरकार ने भी स्वीकार किया है।

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सात साल के बाद भी मंत्रिमंडल निगरानी ने नहीं दी प्राथमिकी की अनुमति :

विशुनपुर के विधायक चमरा लिडा ने सवाल उठाया कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) में वर्ष 2013 में रातू अंचल व बड़ागाईं अंचल में जमीन अंतरण संबंधित पीई (प्रारंभिक जांच) हुई थी। पीई जांच में पुष्टि के बाद इसमें प्राथमिकी दर्ज करने के लिए मंत्रिमंडल निगरानी एवं सचिवालय विभाग से अनुमति मांगी गई थी, लेकिन सात साल के बाद भी अनुमति नहीं मिली। सरकार ने इस सवाल को स्वीकारते हुए जवाब दिया कि पूरा मामला सरकार के स्तर पर विचाराधीन है।

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जेपीएससी की परीक्षाओं में जनजातीय भाषाओं के अंक बढ़ाने पर विचार :

मांडू के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल के प्रश्न पर सरकार ने स्वीकार किया है कि सरकारी नौकरियों में स्थानीय शिक्षित बेरोजगारों को प्राथमिकता दी जाएगी। पटेल ने सवाल किया कि जेपीएससी (झारखंड लोक सेवा आयोग) की परीक्षा में अन्य भाषाओं की तरह क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं के अंक समान सुनिश्चित थे, जिसे घटाकर 100 कर दिया गया। पुन: संशोधन कर 150 किया गया। इससे स्थानीय जनजातीय भाषाओं के छात्र-छात्राओं के अंक प्रतिशत कम हो जाएंगे। इसके जवाब में सरकार ने कहा कि इस सवाल को जेपीएससी की कमेटी को रेफर किया जा रहा है, ताकि इसपर विचार किया जा सके।

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पांच सालों से नहीं हुई डीएसपी से आइपीएस संवर्ग में प्रोन्नति :

मांडू के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल ने प्रश्नकाल में डीएसपी से आइपीएस संवर्ग में प्रोन्नति का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2016 से अब तक डीएसपी को आइपीएस संवर्ग में प्रोन्नति नहीं दी गई। जबकि, डीएसपी से आइपीएस संवर्ग में प्रोन्नति से 25 पद भरे जाने हैं। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि समय से रिक्त पदों को भरा जाए।

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