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Jharkhand Assembly Election 2019: इस बार वोट झारखंड के लिए... उड़ान भरने को खिलाड़ी बेताब, पूरा नहीं हो पा रहा सपना

Jharkhand Assembly Election 2019. खेल व खिलाडिय़ों के विकास कागजों पर ज्यादा हुए जमीनी स्तर पर यह कम ही नजर आता है। इसके लिए समग्र सोच की दरकार है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 07:33 PM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 07:33 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: इस बार वोट झारखंड के लिए... उड़ान भरने को खिलाड़ी बेताब, पूरा नहीं हो पा रहा सपना
Jharkhand Assembly Election 2019: इस बार वोट झारखंड के लिए... उड़ान भरने को खिलाड़ी बेताब, पूरा नहीं हो पा रहा सपना

रांची, जासं। 19 साल पूर्व जब बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना, तो यहां के खिलाडिय़ों ने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे। उम्मीद थी कि खेल का विकास होगा और रोजगार के समुचित अवसर उपलब्ध होंगे। लेकिन, झारखंड के 20वें वर्ष में प्रवेश करने के बावजूद खिलाडिय़ों के सपने आज भी पूरे नहीं हो पाए हैं। खेल व खिलाडिय़ों के विकास कागजों पर ज्यादा हुए, जमीनी स्तर पर यह कम ही नजर आता है।

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ऐसा नहीं है कि इस दौरान राज्य के खिलाडिय़ों ने दमदार प्रदर्शन नहीं किया। कई खेलों में प्रदेश की प्रतिभाओं ने लोहा मनवाया, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पदक जीते। लेकिन, जब रोजगार की बात आती है, तो खिलाड़ी दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं, या फिर रेलवे, टाटा, ओएनजीसी से जुड़ जाते हैं। जिन्हें नौकरी मिल जाती है, वे अपना खेल आगे बढ़ाने में सफल रहते हैं। जिन्हें नहीं मिल पाता, वे गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं।

क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी, तीरंदाजी दीपिका कुमारी, मधुमिता कुमारी, हॉकी खिलाड़ी निक्की प्रधान, सलीमा टेटे, एथलीट प्रियंका केरकेट्टा, फ्लोरेंस बारला जैसे कई खिलाडिय़ों ने राज्य का मान बढ़ाया है, लेकिन इनमें से किसी को सरकार ने नौकरी नहीं दी। तीरंदाजी दीपिका टाटा से जुड़ीं, फिर ओएनजीसी (आयल एंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन) चली गईं। मधुमिता, निक्की, सलीमा रेलवे से जुड़ गई हैं। प्रियंका, फ्लोरेंस अभी प्रशिक्षण ले रही हैं। सरकार को इस दिशा में जल्द ही कुछ करना होगा नहीं, तो यहां के खिलाड़ी अपने ही राज्य की टीम के खिलाफ खेलते नजर आएंगे।

खेल नीति लागू होने से और चमकेंगे खिलाड़ी

राज्य गठन के 20 साल बाद भी जहां खेल नीति नहीं लागू की गई हो, यह बताने के लिए काफी है कि सरकार का खेल के प्रति कोई ध्यान नहीं है। वर्ष 2007 में खेल नीति बनी, लेकिन उसमें कुछ त्रुटि रह जाने के कारण उसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। खिलाडिय़ों को रघुवर सरकार से उम्मीद थी कि वह खेल नीति जरूर लागू कर लेगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अमर कुमार बाउरी पांच साल तक खेल मंत्री रहे, लेकिन केवल बातें करते रहे, खेल नीति लागू नहीं हो पाई।

चुनाव होने के बाद जिसकी भी सरकार बने, खेल नीति लागू करना उसके लिए एक चुनौती ही होगी। जब तक खेल नीति लागू नहीं होगी, तब तक प्रदेश में खेल व खिलाडिय़ों का विकास संभव नहीं है। हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे राज्यों में खेल व खिलाडिय़ों का हर स्तर पर बेहतर प्रदर्शन उस राज्य की खेल नीति का ही परिणाम है।

खेल नीति के तहत सभी विभागों में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले खिलाडिय़ों को नौकरी में दो फीसद आरक्षण देने की घोषणा की गई है। लेकिन, जब तक नीति लागू नहीं होगी, खिलाडिय़ों को नौकरी नहीं मिलेगी। यहीं वजह है कि अब तक मात्र पांच खिलाडिय़ों को ही नौकरी मिली है। प्रतिभावान खिलाडिय़ों को नौकरी नहीं मिलने का लाभ रेलवे उठा रहा है और अब तक तीन दर्जन से अधिक खिलाडिय़ों की वहां नियुक्ति हो चुकी है।

खेल विभाग में मिले खिलाडिय़ों को जगह

झारखंड की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां खेल संचालन का जिम्मा ऐसे लोगों के हाथों में है, जिनका खेल से दूर-दूर तक का वास्ता नहीं है। खेल विभाग में, जहां से खेल गतिविधयों का संचालन होता है, ऐसे लोगों को बैठा दिया गया है, जिनका खेल के प्रति कोई विजन नहीं है। 19 साल से यही कहानी चल रही है। भूले भटके कोई जानकार विभाग में आ भी जाता है, तो उसे काम करने की स्वतंत्रता नहीं मिल पाती है। भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान सुमराय टेटे खेल में कुछ करने के उद्देश्य से ही विभाग से जुड़ी थीं, लेकिन छह माह में वह वापस रेलवे में चली गईं।

पूर्व ओलंपियन सिलवानुस डुंगडुंग, मनोहर टोप्पनो बतौर खेल संयोजक विभाग से अवश्य जुड़े हैं, लेकिन इन परिस्थितियों में उनसे भी विशेष की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। खिलाडिय़ों का कहना है कि नई सरकार बनने के बाद खेल से जुड़े लोगों को विभाग में रखा जाए, जिससे कि उनकी समस्याओं का समाधान बेहतर ढंग से हो पाए। नई सरकार के समक्ष यह बड़ी चुनौती होगी और इसमें वह कहां तक सफल होगी, यह समय ही बताएगा।

राष्ट्रीय खेल के दौरान बनी आधारभूत संरचना का सभी उपयोग करें

34वें राष्ट्रीय खेल के आयोजन से प्रदेश को काफी लाभ हुआ है। राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर की आधारभूत संरचना तैयार हो गई है। विशेषकर रांची में कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम राज्य का गौरव बढ़ा रहे हैं। धनबाद, जमशेदपुर में भी खेल की आधारभूत संरचना विकसित हुई। रघुवर सरकार ने प्रत्येक पंचायत में आधारभूत संरचना तैयार करने का खाका तैयार किया और इसपर काम भी शुरू हो गया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम आज भी सभी खिलाडिय़ों के लिए नहीं खुले हैं।

इन स्टेडियमों में गांव के खिलाडिय़ों को तभी अभ्यास का मौका मिलता है, जब वे किसी नेशनल टूर्नामेंट में भाग लेते हैं, या फिर खेल विभाग द्वारा कैंप लगाया जाता है। परिणाम यह होता है कि अधिसंख्य खिलाडिय़ों को इसमें अभ्यास करने का मौका भी नहीं मिलता है। नई सरकार को एक योजनाबद्ध तरीके से जिला स्तरीय खिलाडिय़ों को भी यहां अभ्यास कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।

नेशनल गेम्स के लिए खरीदे गए कई उपकरण रखे-रखे खराब हो गए, लेकिन उसे खिलाडिय़ों के उपयोग के लिए नहीं दिया गया। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि नए उपकरण खिलाडिय़ों को मिले, जिससे वे अपने प्रदर्शन को निखार सकें। उल्लेखनीय है कि रांची जिला एथलेटिक्स संघ द्वारा आयोजित प्रतियोगिता के लिए जब उपकरण की मांग की गई थी, तब उसके लिए एक निश्चित राशि की मांग की गई थी। इस कारण चैंपियनशिप के कुछ स्पर्धाओं के रद करना पड़ा था।

सीनियर खिलाडिय़ों को लिए बननी चाहिए योजना

राज्य सरकार द्वारा खिलाडिय़ों के विकास की बनाई गई योजना अभी तक स्कूल तक ही सीमित थी। खेल विभाग स्कूल स्तर की प्रतियोगिता आयोजित करती है और एसजीएफआइ नेशनल में टीमें भेजती है। लेकिन, इसके आगे की सोच उसके पास नहीं है। सरकार द्वारा संचालित आवासीय सेंटर में भी प्लस टू के बाद खिलाडिय़ों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। हालांकि, रघुवर सरकार ने दुमका व रांची में सेंटर फॉर एक्सीलेंस की स्थापना कर विशेष प्रतिभा के धनी खिलाडिय़ों को प्रशिक्षण की व्यवस्था की है।

लेकिन, यह काफी नहीं है। इससे सभी प्रतिभावान खिलाडिय़ों को मौका मिलना संभव नहीं है, सरकार को इस पर गहन चिंतन कर कुछ विशेष व्यवस्था करनी चाहिए। प्रदेश में अभी 36 विभिन्न खेलों के आवासीय व 102 डे बोर्डिंग सेंटर संचालित हैं। इन सेंटरों की सुविधाएं बढ़ाई गई हैं, लेकिन इस पर और ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि बेहतर परिणाम मिल सके।

वहीं, फुटबाल, तीरंदाजी, हॉकी की तरह और भी सेंटर फॉर एक्सीलेंस खोलना चाहिए। रघुवर सरकार ने अवश्य अपने कार्यकाल में खेल के क्षेत्र में एक बड़ा काम किया है। सीसीएल के साथ मिलकर प्रदेश के खिलाडिय़ों को तैयार करने के उद्देश्य से खेल अकादमी खोली है। रांची के होटवार में ताइक्वांडो, कुश्ती, फुटबॉल, तैराकी, मुक्केबाजी, तीरंदाजी, बॉस्केटबॉल, शूटिंग की अकादमी चल रही है।

खेल विभाग व खेल संघों में ही खिलाडिय़ों की पूछ नहीं

प्रदेश में जिस तेजी से खेल व खिलाडिय़ों का विकास होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। इसका एक बड़ा कारण खिलाडिय़ों को खेल विभाग व खेल संघों से दूर रखना भी है। जिन खिलाडिय़ों के दम पर संघ चलते हैं, या जिनके लिए विभाग है, वहीं उनकी पूछ नहीं है। यही कारण है कि खिलाडिय़ों को अपनी आवश्यकता व जरूरतों के लिए कई बार विभाग का चक्कर लगाना पड़ता है।

उसके बाद भी कई बार उनकी बातें नहीं सूनी जाती हैं। प्रदेश के खिलाड़ी कई बार बिना टिकट के ट्रेन से प्रतियोगिता में भाग लेने जाते हैं, कई बार ट्रेन के फर्श पर बैठकर सफर करते हैं। क्या कभी किसी खेल संघ के पदाधिकारी व विभागीय अधिकारी को इस हाल में यात्रा करते हुए किसी ने देखा है। यह सभी खिलाड़ी के नाम पर मलाई खाते हैं। अलग राज्य बनने के बाद से जिसने भी खेल संघ पर कब्जा जमाया, वह आज तक वहां बरकरार है।

इसे भी बदलने की आवश्यकता है। इन जगहों पर खिलाड़ी रहेंगे, तो वे खिलाडिय़ों के दर्द को समझेंगे। अगर संघ में खिलाडिय़ों के साथ विशेषज्ञों को शामिल किया जाए, तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। सरकार को भी चाहिए कि विभाग में खिलाडिय़ों की बहाली करे, ताकि उनके अनुभव का लाभ मिल सके। -रामा शंकर सिंह, पूर्व कप्तान, वॉलीबाल, बिहार।


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