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Jharkhand Assembly Election 2019: इस बार वोट झारखंड के लिए... झारखंड में हर साल खड़ी हो रही हजारों बेरोजगारों की फौज

Jharkhand Assembly Election 2019. 46 फीसद स्नातकोत्तर तथा 49 फीसद स्नातक उत्तीर्ण बेरोजगार हैं। झारखंड के हर पांच में से एक युवा बेरोजगार है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 14 Nov 2019 07:57 PM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 07:57 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: इस बार वोट झारखंड के लिए... झारखंड में हर साल खड़ी हो रही हजारों बेरोजगारों की फौज
Jharkhand Assembly Election 2019: इस बार वोट झारखंड के लिए... झारखंड में हर साल खड़ी हो रही हजारों बेरोजगारों की फौज

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में हर पांच युवा में से एक बेरोजगार है। 46 फीसद स्नातकोत्तर तथा 49 फीसद स्नातक उत्तीर्ण छात्रों को नौकरी नहीं मिल रही है। महिला युवाओं की बेरोजगारी की दर पुरुषों की अपेक्षा 12 फीसद अधिक है। शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी दर की मौजूदा स्थिति की बात करें, तो यह दर स्नातक अनुतीर्ण में 25, हायर सेकेंडरी में 28.7, सेकेंडरी में 18.5, मिडिल में 12.6, जबकि प्राथमिक में बेरोजगारी की यह दर 10.1 फीसद है।

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इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की 2018-19 की यह रिपोर्ट झारखंड में बेरोजगारी की कहानी खुद ब खुद बयां करती है। कहने को सरकार की विभिन्न रोजगारपरक योजनाओं के तहत एक लाख से अधिक युवाओं को नौकरी दी गई।  इससे इतर, 10 युवाओं में से आठ को आज भी रोजगार की तलाश है। लिहाजा रोजगार की तलाश में हर साल झारखंड के विभिन्न जिलों से लाखों की तादाद में युवाओं का पलायन जारी है। इसी के समानांतर मौसमी पलायन भी यहां बदस्तूर जारी है।

सामान्य तौर पर अक्टूबर में राज्य के हजारों घरों में ताले लटक आते हैं। रोजी-रोटी की तलाश में पलायन करने वाली यह आबादी पड़ोस के राज्यों में ईंट भट्ठे, विभिन्न निर्माण कंपनियों के अलावा दिहाड़ी मजदूर के तौर पर हाड़तोड़ मेहनत करती है। लगभग छह महीने बाद ठीक बरसात से पूर्व इनकी वापसी अपने गांवों में होती है। खेती-बारी के सहारे किसी तरह साल के छह महीने गुजरते हैं और फिर शुरू हो जाता है पलायन का दौर।

सरकार ने बेरोजगारी की इस खाई को पाटने की कोशिश में उनके कौशल विकास की परिपाटी शुरू की है। ग्लोबल समिट, रोजगार मेले आदि का आयोजन कर सरकार ने अबतक हजारों युवक-युवतियों को रोजगार से जोडऩे का काम किया है। हालांकि, बेरोजगारी जिस रफ्तार से बढ़ रही है, उस रफ्तार से रोजगार का सृजन नहीं हो रहा है।

फैक्ट फाइल

  • झारखंड लोक सेवा आयोग द्वारा अब तक कम से कम 18 परीक्षाएं ली जानी चाहिए थी। जबकि, अब तक छह परीक्षाएं ही हुई हैं।
  • सहायक कोटि में राज्य में निर्धारित हैं 2341 सीटें। प्रशाखा पदाधिकारियों के 1313 सीटों के एवज में महज 726 कार्यबल ही तैनात।
  • राज्य गठन के बाद सचिवालय सहायकों की नियुक्ति के लिए हुईं महज दो परीक्षाएं। सरकार ने हर साल इस पद पर कम से कम 100-100 नियोजन का किया था दावा।
  • राज्य के 43 नियोजन कार्यालयों में 3,30,055 बेरोजगार निबंधित हैं। इनमें से 2017-18 में 26,170 तथा 2018-19 में महज 13,590 युवाओं को विभिन्न सेक्टरों में नौकरी मिल सकी।
  • नौकरी आस में हर वर्ष लाखों युवाओं का हो रहा अन्य प्रदेशों में पलायन।

रोजगार की ओर बढ़ते कदम

  • प्रशिक्षण के जरिए रोजगार देने के निमित्त सक्षम झारखंड कौशल विकास योजना के तहत संचालित हैं 73 प्रशिक्षण केंद्र। 48 मेगा स्किल सेंटर के साथ-साथ प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत राज्य में संचालित हैं 42 प्रशिक्षण केंद्र।
  • कौशल विकास मिशन सोसाइटी के तहत प्रशिक्षण के लिए पंजीकृत किए गए हैं 1,80,521 युवा।
  • स्किल समिट 2018 के दौरान 26,684 युवाओं को मिला नियुक्ति पत्र।
  • ग्लोबल स्किल समिट 2019 के तहत 1,06,619 युवाओं को निजी सेक्टरों में मिली नौकरी।
  • निकट भविष्य में जेपीएससी से 3600 और जेएसएससी से 15 हजार से अधिक नौकरियों के लिए कई चरणों में इश्तेहार निकल सकता है।

स्याह पक्ष

न्यूनतम मजदूरी भी मयस्सर नहीं राज्य के मनरेगा मजदूरों को

बेरोजगारों को साल में कम से कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देने वाले गरीबी उन्मूलन की सबसे सशक्त योजना मनरेगा का हाल झारखंड में बेहाल है। पूरे देश में झारखंड और बिहार ही दो ऐसे राज्य हैं, जहां मनरेगा के मजदूरों को सबसे कम मजदूरी मिल रही है। केरल जैसे राज्य में जहां इसी कार्य के लिए मनरेगा मजदूरों को 291 रुपये प्रति दिन दिए जा रहे हैं, वहीं झारखंड में यह दर महज 171 (170.94) रुपये है।

पिछले तीन वर्षों की बात करें, तो राज्य के लिए प्रभावी मजदूरी में केंद्र स्तर से एक-एक रुपये की वृद्धि की गई है। बहरहाल, इस मद में न्यूनतम मजदूरी (239 रुपये) भी मयस्सर नहीं होने से काम के प्रति यहां के मजदूरों का रुझान घटता जा रहा है। 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देने वाले इस कानून के तहत गत वित्तीय वर्ष में महज 1.09 फीसद जॉबकार्डधारियों को ही 100 दिनों का रोजगार मिल पाना इसकी बानगी है।

चालू वित्तीय वर्ष की बात करें, तो महज 12400 मजदूरों को ही 100 दिनों का काम मयस्सर हो सका है। अन्य प्रमुख राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में मनरेगा मजदूरों को दी जा रही मजदूरी की बात करें, तो गोवा में 254 रुपये, कर्नाटक में 249, पंजाब में 241, मणिपुर में 219, मिजोरम व आंध्र प्रदेश में 211-211, अंडमान में 250, निकोबार में 264, लक्षद्वीप में 248, पुडुचेरी में 229, गुजरात में 199 रुपये हैं।

श्वेत पक्ष

सखी मंडल के सहारे समृद्धि की परिकल्पना

सरकार की परिकल्पना राज्य की आधी आबादी को स्वरोजगार से जोड़कर उनके परिवारों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त करने की है। दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन सरकार की इस सोच को मूर्त रूप देने में वरदान साबित हो रहा है। मिशन के तहत संचालित झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के तहत राज्य के 263 प्रखंडों में मिशन के तहत अबतक दो लाख दो हजार सखी मंडलों का गठन किया जा चुका है।

इन मंडलों से अबतक 25.4 लाख महिलाओं को जोड़ा गया है, जिससे लगभग सवा करोड़ की आबादी लाभांवित हो रही है। इन मंडलों के जरिए अबतक एक लाख पांच हजार सखी मंडलों को बैंक ऋण एवं परियोजना राशि के तौर पर 13 सौ करोड़ रुपये उपलब्ध कराए गए हैं। महिला सशक्तीकरण की यह महज  बानगी भर है कि आज 565 से अधिक ग्रामीण महिलाएं बतौर बैंकिंग प्रतिनिधि 565 महिलाएं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रही हैं।

4.44 लाख परिवारों को एसआरआई पद्धति से खेती का प्रशिक्षण दिया गया। 80 हजार से अधिक ग्रामीण महिलाएं लघु एवं कुटीर उद्योग से जुड़ चुकी हैं। सखी मंडल की लगभग 100 सदस्य कैफे का संचालन कर रही हैं। राज मिस्त्रियों के समानांतर रानी मिस्त्रियों ने 3.50 लाख शौचालयों का निर्माण कर रिकार्ड कायम किया है। ये सारी गतिविधियां कहीं न कहीं उनके परिवार को सबलता प्रदान कर रही हैं।

एक्सपर्ट व्यू

रोजगार सृजन के मामले में हर राज्य की अपनी-अपनी परिस्थितियां होती हैं। राज्यों में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, श्रमिकों की दक्षता और रोजगार सृजन के प्रति सरकार का नजरिया इस मामले में काफी मायने रखता है। यह तय है कि सभी बेरोजगारों को सरकारी अथवा निजी सेक्टरों में रोजगार मिल पाना संभव नहीं है। ऐसे में स्वावलंबन की राह झारखंड जैसे राज्य से बेरोजगारी मिटाने में सहायक हो सकती है।

ऐसा बंद पड़े लघु एवं कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित कर तथा नए-नए कल-कारखाने की स्थापना से संभव हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वह हर खेत तक पानी उपलब्ध कराए और उद्योग को कृषि दर्जा दे। नदी, पहाड़, झरने, जंगल जैसी झारखंड की प्राकृतिक संपदा लाखों बेरोजगारों को रोजगार दिलाने में सक्षम हो सकती है। जरूरत है तो बस स्पष्ट नजरिए और ईमानदार प्रयास की। -डॉ. सुनील कुमार कमल, सचिव, झारखंड बेट नेट एसोसिएशन।


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