Jharkhand Assembly Election 2019: इस बार वोट झारखंड के लिए...स्कूली शिक्षा में सुधार, उच्च शिक्षा में व्यापक बदलाव की दरकार
Jharkhand Assembly Election 2019 सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव और उच्च शिक्षा के लिए विद्यार्थियों का पलायन इस बार विधानसभा चुनाव में बनेगा बड़ा मुद्दा।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में स्कूली शिक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है। खासकर प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में आधारभूत संरचनाओं मेें। माध्यमिक शिक्षा में अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। हालांकि सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव अब भी है। दूसरी तरफ, उच्च शिक्षा में झारखंड काफी पीछे है। हाल के वर्षों में इसमें भी सुधार के कई पहल किए गए हैं। इसके बावजूद झारखंड निचले पायदानों से कुछ ही ऊपर है। उच्च शिक्षा के लिए विद्यार्थियों का पलायन मजबूरी है। विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा हो सकता है।
नीति आयोग द्वारा पिछले माह जारी स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स की रिपोर्ट की ही बात करें तो इसमें यह बात निकलकर आई कि कई मानकों में झारखंड सुधार के बावजूद स्कूली शिक्षा में पीछे है। हालांकि यह इंडेक्स वर्ष 2016 के आधार पर तैयार किया गया है, जिसके बाद कई सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं। जो भी हो, इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 41.1 फीसद स्कूल ही निश्शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षकों की उपलब्धता के नार्म्स को पूरा करते।
हाई स्कूलों में पांच कोर विषयों अंग्रेजी, भाषा, गणित, विज्ञान तथा समाज विज्ञान में शिक्षकों की उपलब्धता की शर्तों को महज 35 फीसद स्कूल पूरा करते। झारखंड के महज 23.9 फीसद स्कूलों में ही हेडमास्टर उपलब्ध हैं। इसके विपरीत स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय तथा समावेशी शिक्षा के तहत विशेष बच्चों को उपकरण आदि देने में झारखंड बेहतर स्थिति में है। झारखंड के 98.2 फीसद स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय उपलब्ध है। 2015-16 में ऐसे स्कूलों की संख्या 96.8 फीसद थी। सौ फीसद स्कूलों में विशेष बच्चों को उपकरण व अन्य सामग्री दी जाती है। पिछले वर्षों में मैट्रिक व इंटरमीडिएट की परीक्षा काफी खराब होने के बाद इस साल इनमें बेहतर परिणाम रहा। इसमें और सुधार की गुंजाइश है।
उच्च शिक्षा की बात करें तो इसमें आंशिक सुधार के बावजूद झारखंड काफी पीछे है। उच्च शिक्षा में आवश्यक संरचनाओं की स्थिति यह है कि झारखंड अभी भी 18-23 आयु वर्ग के एक लाख छात्र-छात्राओं पर महज आठ कॉलेज उपलब्ध हैं। झारखंड में हाल के वर्षों में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में कई डिग्री कॉलेज खुलने के बावजूद यह स्थिति है। राष्ट्रीय औसत की बात करें तो यह 28 है।
सितंबर माह में जारी ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (एआइएसएचई) 2017-18 की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में उच्च शिक्षा में ग्रास इनरालमेंट रेशियो में आंशिक सुधार आया है। वर्ष 2017-18 में यह रेशियो 18 था जो 2018-19 में बढ़कर 19.1 हो गया। इसका मतलब यह हुआ कि 18-23 आयु वर्ग की कुल आबादी में इतने फीसद का नामांकन उच्च शिक्षा में हुआ। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 26.3 है। पिछले वर्ष यह औसत राष्ट्रीय स्तर पर 25.2 था। इस तरह, राष्ट्रीय औसत प्राप्त करने के लिए झारखंड को अभी काफी प्रयास करने की जरूरत है।
स्कूली शिक्षा में ये हैं कमियां
- 19 फीसद माध्यमिक स्कूलों में ही कंप्यूटर लैब हैं।
- 2.86 फीसद स्कूलों में ही बच्चों को कंप्यूटर से शिक्षा दी जाती है।
- 90 फीसद से अधिक मिडिल स्कूलों में हेडमास्टर नहीं है।
- 1300 से अधिक हाई स्कूलों में हेडमास्टर नहीं हैं।
झारखंड में कैसे-कैसे बढ़ा उच्च शिक्षा में जीईआर
2013-14 : 13.3
2014-15 : 15.4
2015-16 : 15.5
2016-17 : 17.7
2017-18 : 18
2018-19 : 19.1
किसका जीईआर कितना (झारखंड, 2018)
एससी
कुल : 15.9
पुरुष : 17
महिला : 14.8
एसटी
कुल : 13.7
पुरुष : 13.4
महिला : 14
शिक्षा में ये भी हैं मुद्दे
- झारखंड के सरकारी स्कूलों में मिड डे मील के कवरेज में सुधार हुआ है। इसके बावजूद अभी भी तीस फीसद से अधिक बच्चे मिड डे मील नहीं खा पाते।
- राज्य में पिछले नौ वर्षों में महज दो शिक्षक पात्रता परीक्षा ही हो सकी, जबकि यह प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाना था। हालांकि हाल ही में शिक्षक पात्रता परीक्षा नियमावली गठित कर ली गई है।
- राज्य के 44 कॉलेजों को नैक (नेशनल असेसमेंट एंड एक्रीडिटेशन काउंसिल) से मान्यता (एक्रीडिटेशन) नहीं मिला है। इससे ये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत मिलनेवाले अनुदान से वंचित हैं। इनमें 14 अंगीभूत कॉलेज तथा 30 स्थायी संबद्धता प्राप्त कॉलेज शामिल हैं।
- राज्य के सभी प्रमंडलों में फार्मेसी कॉलेज खोलने की योजना तो ली गई है, लेकिन अभी राज्य के किसी भी सरकारी फार्मेसी कॉलेज में डिग्री की पढ़ाई नहीं हो रही है।
- राज्य के एक भी सरकारी विश्वविद्यालय सौ टॉप विश्वविद्यालयों में स्थान नहीं रखते। यही हाल सरकारी कॉलेजों का है।
- राज्य के कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है। स्थिति यह है कि वर्ष 2007-08 के बाद यहां असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति नहीं हो सकी है।
ये हुए बेहतर प्रयास
- स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने तथा शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्कूलों का पुनर्गठन किया गया। इसकी सराहना भी हुई।
- मुख्यमंत्री शैक्षणिक भ्रमण योजना के तहत बच्चों को दिल्ली, जयपुर, बेंगलुरू, भुवनेश्वर आदि शहरों का भ्रमण कराया जा रहा है।
- बड़ी संख्या में प्राथमिक शिक्षकों तथा माध्यमिक शिक्षकों की नियुक्ति हुई।
- सभी विधानसभा क्षेत्रों में डिग्री कॉलेज की स्थापना तथा दो शिफ्ट में कॉलेजों में पढ़ाई।
- कई नए इंजीनियङ्क्षरग कॉलेजों व विश्वविद्यालयों की स्थापना। कई पाईपलाइन में भी हैं।
- निजी क्षेत्र में भी कई विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। हालांकि इनमें से अधिसंख्य आवश्यक नाम्र्स पूरा नहीं करते।
एक्सपर्ट व्यू
गुणवत्ता शिक्षा अभी भी बड़ी चुनौती
प्राथमिक स्कूलों में आधारभूत संरचनाओं में सुधार हुआ है। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अभी भी बड़ी चुनौती है। हालांकि नेशनल अचीवमेंट सर्वे में झारखंड के बच्चों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए हिन्दी, गणित, अंग्रेजी तथा विज्ञान विषयों में कई राज्यों को पीछे छोड़ते हुए राष्ट्रीय फलक पर गौरवपूर्ण स्थान हासिल किया है। अभी हाल ही में नीति आयोग की आकांक्षा जिलों की डेल्टा रैंकिंग में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर गढ़वा ने दूसरा तथा चतरा ने ग्यारहवां स्थान हासिल किया। यह सुखद है। लेकिन इसके बावजूद कसक इस बात की है कि राज्य के 27 हजार मध्य विद्यालयों में विषयवार स्नातक स्तरीय पदों का सृजन नहीं हो सका है। इससे बच्चे विषयवार शिक्षक से वंचित हो रहे हैं। कंप्यूटर शिक्षा को प्राथमिकता नहीं मिल सकी है। मिड डे मील में सेंट्रलाइज्ड किचेन की योजना आकार नहीं ले सकी है। राममूर्ति ठाकुर, वरिष्ठ शिक्षक सह महासचिव, अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ।