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रांची के लोक गायक मधु मंसूरी को मिला निनाद सम्मान, गौतम चटर्जी को ‘रवि दवे स्मृति सम्मान’

Indian Folk Singer आठ साल की उम्र से ही लोकगीत गा रहे मधु मंसूरी हंसमुख को 73 साल की उम्र में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 1948 में जन्मे हंसमुख ने आदिवासी संस्कृति सभ्यता परंपरा और रीति-रिवाज को जिंदा रखने का महत्त्वपूर्ण काम किया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 07:32 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 10:57 AM (IST)
रांची के लोक गायक मधु मंसूरी को मिला निनाद सम्मान, गौतम चटर्जी को ‘रवि दवे स्मृति सम्मान’
नागपुरी भाषा के प्रसिद्ध गायक मधु मंसूरी हंसमुख।

रांची, जासं। साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर द्वारा सामाजिक योगदान के लिए ‘निनाद सम्मान’ झारखंड आदिवासी आंदोलन से जुड़े गायक-गीतकार मधु मंसुरी हंसमुख को देने की घोषणा की गई है। नागपुरी भाषा के प्रसिद्ध गायक मधु मंसूरी हंसमुख के गीतों ने झारखंड के आदिवासी आंदोलन को नई राह दिखाई है। झारखंड के लोगों के बीच उनके गीत खासे लोकप्रिय हैं। उनके गीतों ने झारखंड क्षेत्र में सांस्कृतिक मशाल का काम किया है।

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गांव छोड़ब नाहीं...जैसे चर्चित गीत लिखने वाले मधु मंसूरी ने अपनी आवाज में इसे गाकर और भी मशहूर कर दिया है। आठ साल की उम्र से ही लोकगीत गा रहे मधु मंसूरी हंसमुख को 73 साल की उम्र में पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्ष 1948 में जन्मे हंसमुख ने आदिवासी संस्कृति, सभ्यता, परंपरा और रीति-रिवाज को जिंदा रखने का महत्त्वपूर्ण काम किया है।

रवि दवे स्मृति सम्मान' गौतम चटर्जी को

साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर द्वारा नाटक के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाने वाला ‘रवि दवे स्मृति सम्मान’ इस वर्ष देश के चर्चित नाटककार और फिल्म निर्देशक डॉ. गौतम चटर्जी को दिया जाएगा। गौतम चटर्जी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से गणित में डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने हिन्दी, बांग्ला और अंग्रेजी रचनाओं पर फिल्म निर्माण एवं कई स्टेज शो भी किए हैं।

उनके द्वारा निर्देशित नाटकों में मालवा का राजा, आनंद भैरवी, उत्तरा, कोई सुनता है, रस से रास, किंग लियर आदि बेहद चर्चित रहे हैं। विएना में प्रदर्शित उनकी फिल्म ‘कुहासा द मिस्ट’ काफी चर्चा में रही। उनकी प्रमुख रचनाएं ‘व्हाइट शैडो ऑफ कनशंसनेस’, ‘अगामाज इन इंडियन ड्रामेटिक्स एंड म्यूजिकोलॉजी’ हैं। ‘अधूरे राग’ और ‘दशरूपक’ उनके हिंदी नाटकों के संकलन हैं। अभिनव गुप्त अकादमी की स्थापना के साथ ही उन्होंने वर्कशॉप की परंपरा को नया रूप दिया।

इसके साथ ही अकादमिक डिग्री के बतौर बीएचयू में नाटक विभाग की स्थापना भी की। वह ‘राष्ट्रीय सहारा’ और ‘स्वतंत्र भारत संवाद’ के संपादक भी रह चुके हैं। दो दशकों से अधिक समय से वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, काशी और भारतीय टेलीविजन तथा फिल्म संस्थान, पुणे से अध्यापक के रूप में भी जुड़े रहे हैं। देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित संस्थानों में इन्हें वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया जा चुका है।

20 दिसंबर को आयोजित साहित्य उत्सव ‘लिटरेरिया 2020’ के दौरान नीलांबर इन्हें ‘रवि दवे पुरस्कार’ से सम्मानित करेगी। इस वर्ष नीलांबर द्वारा राष्ट्रीय स्तर का यह कार्यक्रम 14 से 20 दिसंबर के दौरान ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किया जा रहा है। यह आयोजन कई साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के अपने में समेटे हुए है। इसमें संगोष्ठी, कविता, कहानी, नाटक, नृत्य, संगीत जैसी विधाओं की प्रस्तुति की जा रही है। अखिल भारतीय स्तर पर इसमें कई युवा और वरिष्ठ साहित्यकार-कलाकार शामिल होंगे।


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