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ईंट भट्ठा बंद हुआ तो लगाए पौधे, 20 साल बाद यही बना जीवन का आधार

जीवन में पेड़-पौधों का महत्व जानना हो तो ओरमांझी के त्रियोगी सिंह ने कर के दिखा दिया। दो बेटों को पेड़ बेचकर पढ़ाया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2020 01:46 AM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2020 01:46 AM (IST)
ईंट भट्ठा बंद हुआ तो लगाए पौधे, 20 साल बाद यही बना जीवन का आधार
ईंट भट्ठा बंद हुआ तो लगाए पौधे, 20 साल बाद यही बना जीवन का आधार

जागरण संवाददाता, रांची : जीवन में पेड़-पौधों का महत्व जानना हो तो ओरमांझी के त्रियोगी सिंह से मिलिए। त्रियोगी सिंह पेड़ में भगवान का रूप देखते हैं। उनके लिए पेड़ महज पेड़ नहीं जीवन का आधार है। परिवार की खुशियां पेड़-पौधों पर ही टिकी हुई है। दरअसल, त्रियोगी सिंह का पश्चिम बंगाल में ईंट भट्ठा था। 1985 के आसपास किसी कारण से भट्ठा बंद करना पड़ा तो वहां से लौट कर ओरमांझी स्थित अपने गांव आ गए। पूर्वजों की दो एकड़ जमीन में एक एकड़ में सागवान, आम, सखुआ, गमहार आदि का पौधा लगाया और बाकी के एक एकड़ में खेतीबाड़ी शुरू की। भविष्य का आधार मान अपने बच्चों की तरह पौधों की देखभाल की। पौधों के साथ उनका दोनों बच्चे अमित आनंद और सुमित आनंद भी बढ़ने लगे। 2005 में इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अमित की इच्छा इंजीनियरिग करने की हुई। किसान परिवार और इंजीनियरिग की लाखों की फीस सोचकर ही त्रियोगी सिंह परेशान हुए। हालांकि, उनकी आर्थिक चिता खुद के द्वारा लगाये गए बेसकीमती पेड़ ने दूर कर दी। पेड़ बेच कर अमित को इंजीनियरिग में दाखिला दिलाया गया। एक पेड़ बेचकर एक सेमेस्टर दी फीस दी

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यही नहीं इंजीनियरिग में प्रत्येक सेमेस्टर में एक पेड़ बेचकर फीस भरते थे। वहीं, दूसरे पुत्र सुमित के डेंटल की पढ़ाई के समय भी पेड़ ने आर्थिक रूप से सहायता की। त्रियोगी सिंह कहते हैं, ये पेड़ उनके लिए भगवान के समान हैं। मुश्किल समय में जब आर्थिक समस्या उत्पन्न हुई तो यही आधार बना। खासबात ये है कि बगीचे से जब भी पेड़ काटते हैं उसी स्थान पर दूसरा पौधा जरूर लगाते हैं। कहते हैं हमारा समय तो बीत गया अब ये पेड़ अगली पीढि़यों का आधार है। ........ग्रामीणों के 25 वर्षों की मेहनत से बंजर हुआ हराभरा........

जासं, रांची : राजधानी से 55 किमी दूर अनगड़ा का बेंती गांव बंजर हो चुका था। कारण पेड़ की अंधाधुंध कटाई। हालात ये हो गया था कि किसानों को पशु चारा के लिए दूर -दूर तक भटकना पड़ता था। किसी का घर टूट जाए तो दूसरे गांव से बांस लाना पड़ता था। भूगर्भ जल लगातार नीचे जा रहा था। समस्या विकराल हुई तो 25 साल पूर्व गांव के कुछ पढ़े लिखे युवाओं ने समिति बना कर हरियाली वापस लाने की जिद ठानी। वन विभाग के साथ मिलकर पौधारोपण तो किया ही पौधों की देखभाल का जिम्मा खुद ग्रामीणों ने उठाया। बेटे की तरह पेड़-पौधों की रक्षा की। ग्रामीणों की मेहनत रंग लायी। आज 25 वर्षों के बाद बेंती गांव के आसपास की 589 एकड़ भूमि कहीं खाली नहीं मिलेगी। हर ओर हरियाली ही हरियाली। बुजुर्गों के बाद अब युवाओं ने मुहीम की कमान संभाल ली है। ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति के अध्यक्ष सत्यदेव मुंडा कहते हैं जहां गांव वालों को बांस तक बाहर से खरीदना पड़ता था। आज खुद बांस व अन्य पेड़ बेचकर आर्थिक रूप से समृद्ध् बन रहे हैं। हरियाली वापस लौटी तो पशु के लिए चारा भी पर्याप्त मिलता है। आज भी गांव के प्रत्येक परिवार का एक सदस्य वन की रखवाली करता है।


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