JPSC : जेपीएससी परीक्षा मामले में हाई कोर्ट ने आयोग से मांगा जवाब, छह जनवरी को होगी सुनवाई
झारखंड हाई कोर्ट में गुरुवार को सातवीं जेपीएससी मामले की सुनवाई हुई। अगली सुनवाई छह जनवरी को होने वाली है। मालूम हो कि जेपीएससी अक्सर विवादों में रहा है। यहां होने वाली हर परीक्षा विवादों के घेरे में आती रही है।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस दीपक रौशन की अदालत में सातवीं जेपीएससी नियुक्ति को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने जेपीएससी को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले में अगली सुनवाई छह जनवरी को निर्धारित की गई है। इस संबंध में अदिति ईशा प्राची तिर्की की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है।
जेपीएससी ने विज्ञापन जारी किया था
सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से कहा गया कि सातवीं जेपीएससी की नियुक्ति के लिए जेपीएससी ने विज्ञापन जारी किया था। उन्होंने आवेदन दिया था और प्रारंभिक परीक्षा में भी शामिल हुईं। लेकिन उनका चयन नहीं किया गया जबकि उन्होंने अंतिम चयनित अभ्यर्थी से ज्यादा अंक प्राप्त किए हैं।
अधिवक्ता ने बताया कि प्रार्थी ने ओएमआर शीट सही से भरा नहीं
इस पर जेपीएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल और प्रिंंस कुमार सिंंह ने अदालत को मौखिक रूप से बताया कि प्रार्थी ने अपने ओएमआर शीट को सही से भरा नहीं है। इसलिए उनका आवेदन निरस्त कर दिया गया है। इस पर अदालत ने जेपीएससी को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
कुमारी कंचना की ओर से भी याचिका दाखिल
सातवीं जेपीएससी से जुड़े मामले में कुमारी कंचना की ओर से भी हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से दावा किया गया कि उन्हें चयनित होने के लिए निर्धारित अंक प्राप्त किया है, लेकिन उनका चयन नहीं किया गया है। इस पर अदालत ने जेपीएससी से जवाब मांगा है।
जेएसएससी परीक्षा संशोधन नियमावली के मामले में सुनवाई टली
उधर, जेएसएससी नियुक्ति के लिए बनी परीक्षा संशोधित नियमावली पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई टल गई है। यह मामला झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था, लेकिन इस पर सुनवाई नहीं हो सकी। इस दौरान महाधिवक्ता की ओर से कोर्ट को अवगत कराया गया कि कोर्ट के आदेश पर जेएसएससी परीक्षा संशोधन नियमावली से संबंधित मूल संचिका जमा कर दी गई है। इसपर अदालत ने उक्त संचिका को सीलबंद कर रजिस्ट्रार जनरल के यहां जमा कराने का निर्देश दिया है।
संशोधन नियमावली का अध्ययन के लिए कमेटी
21 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से अंतरिम आवेदन (आइए) दाखिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि नियुक्ति के लिए बनी संशोधन नियमावली का अध्ययन करने के लिए राज्य सरकार ने एक कमेटी का गठन किया है, जिसने दूसरे राज्यों की नियमावली का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी है। सरकार समेकित रूप से इस मामले में शपथ पत्र दाखिल करना चाहती है।
वादी की ओर से अधिवक्ता ने किया विरोध
इस पर वादी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, रूपेश सिंंह और अपराजिता भारद्वाज ने इसका विरोध करते हुए कहा कि संशोधन नियमावली बनाने और उसे लागू करने के बाद सरकार ऐसा कैसे कह सकती है कि दूसरे राज्यों की नियमावली का अध्ययन किया जा रहा है। इससे प्रतीत होता है कि सरकार ने बिना किसी सोच-समझ के बनाई गई है और उसे जल्दबाजी में अधिसूचित कर दिया गया है। किसी भी आधार पर इस नियमावली को संवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता है।
हिन्दी और अंग्रेजी को हटा दिया गया है
बता दें कि रमेश हांसदा और कुशल कुमार की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दाखिल सरकार के उस नियमों को असंवैधानिक बताया है जिसमें राज्य के संस्थान से दसवीं और 12वीं की योग्यता अनिवार्य करने और भाषा के पेपर से हिन्दी और अंग्रेजी को हटा दिया गया है।