यहां मां दुर्गा को ताज पहनाने का है अनोखा रिवाज, पिता लगाते हैं नंबर और बेटा को मिलता है मौका
Jharkhand Durga Puja यह परंपरा वर्ष 1941 से चली आ रही है। 2060 तक के लिए नाम तय हो गया है। ढाई दशक की प्रतीक्षा के बाद इस बार अनंत कुमार सिन्हा के परिवार को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
चतरा, [जुलकर नैन/आकाश सिंह]। चतरा जिले के मयूरहंड प्रखंड मुख्यालय में मां दुर्गे को ताज पहनाने की अनोखा रिवाज है। पिता नंबर लगाते हैं और बेटा को उसका सौभाग्य प्राप्त होता है। अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि माता रानी को मुकुट चढ़ाने वालों का नाम 2060 तक के लिए तय हो चुका है। यदि अब कोई मुकुट चढ़ाने के लिए इच्छा व्यक्त करेंगे, तो उन्हेंं चार दशक अर्थात 2060 तक इंतजार करना होगा। दुर्गा पूजा को लेकर गांव में होने वाली पहली बैठक में नंबर लगाया जाता है।
यह परंपरा वर्ष 1941 से चली आ रही है। ढाई दशक की प्रतीक्षा के बाद इस बार अनंत कुमार सिन्हा के परिवार को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अनंत कुमार सिन्हा के पिता बलदेव प्रसाद ने 1995 में नंबर लगाया था। जबकि पिछले वर्ष 2019 में चौपारण प्रखंड के रानिक गांव के उमेश कुमार ने मुकुट चढ़ाया था। उसके पूर्व भुनेश्वर प्रजापति ने ताज पहचाना था। भुनेश्वर के पिताजी ने नंबर लगाया था। दरअसल कई ऐसे भक्त होते हैं जो नंबर लगाकर इंतजार करते-करते स्वर्ग सिधार जाते हैं।
वैसे में उनके परिजन मुकुट पहनाते हैं। दुर्गा पूजा समिति के अध्यक्ष अश्विनी सिंह ने बताया कि मां दुर्गे के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता के रूप में मुकुट चढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा कि यह परंपरा सात दशक से चली आ रही है। पूजा सेे एक महीना पहले दुर्गा पूजा कमेटी की बैठक होती है। बैठक में आसपास के विभिन्न गांवों के लोग शामिल होते हैं।
मुकुट चढ़ाने के लिए भक्त स्वयं अपनी इच्छा जताते हैं। एक से अधिक होने पर जो पहले इच्छा व्यक्त करते हैं, उन्हेंं बुकिंग के बाद का पहला नंबर दिया जाता है। अश्विनी सिंह ने बताया कि उनमें अशोक सिंह की बारी 2058, गोखुलनंदन सिंह को 2059 तथा श्रवण कुमार सिंह को 2060 का नंबर दिया गया है।
विधि-विधान के साथ होती है पूजा
नवरात्र के पांचवें दिन माता को मुकुट पहनाया जाता है। माता रानी को स्कंदमाता स्वरूप में पूजा की जाती है। श्रद्धालु बताते हैं कि मुकुट चढ़ाने को लेकर गांव में काफी उत्साह होता है। संबंधित भक्त के घर से मुकुट के साथ जुलूस की शक्ल में श्रद्धालु दुर्गा मंडप तक पहुंचते हैं। उसके बाद वहां पर विधि-विधान के साथ पूजा होती है। पूजा के पश्चात माता रानी को मुकुट पहनाया जाता है। चढ़ावा के समय पूरा गांव दुर्गा मंडप में उपस्थित रहता है।
बंगाल के कारीगर बनाते हैं मुकुट
मातारानी के मुकुट का निर्माण बंगाल के कारीगर करते हैं। जिस पर करीब अठारह से बीस हजार रुपये का खर्च आता है। नवरात्र शुरू होते ही कारीगर मयूरहंड पहुंच जाते हैं और मूर्ति के साथ मातारानी का मुकुट निर्माण कार्य में जुट जाते हैं।