सरकार के खिलाफ था मामला, गोड्डा के एसपी ने बिना जांच वापस कर दी फाइल
लोकायुक्त के आदेश के बावजूद गोड्डा के एसपी ने सैरात बंदोबस्ती को लेकर हुई मारपीट से संबंधित फाइल बगैर जांच के वापस कर दी है। यह मामला सरकार के खिलाफ था।
रांची, दिलीप कुमार
लोकायुक्त के आदेश के बावजूद गोड्डा के एसपी ने सैरात बंदोबस्ती को लेकर हुई मारपीट से संबंधित फाइल बगैर जांच के वापस कर दी है। यह मामला सरकार के खिलाफ था। गोड्डा के एसपी ने इस मामले में तर्क दिया है कि मामला साहिबगंज का है, फिर वे इसकी जांच कैसे कर सकते हैं। इससे इतर लोकायुक्त ने नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि उन्होंने जान-बूझकर इस मामले की जांच का आदेश गोड्डा के एसपी को दिया है, ताकि निष्पक्ष जांच हो सके। बहरहाल लोकायुक्त कार्यालय ने एक बार फिर गोड्डा के एसपी को रिमाइंडर भेजा है और आदेश दिया है कि मामले की शीघ्र जांच कर पूरी रिपोर्ट सौंपें।
बताते चलें कि पूरी जांच भाजपा विधायक दल के नेता सह पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के आवेदन पर हो रही है। बाबूलाल की शिकायत पर ही लोकायुक्त के न्यायालय में एक वाद दायर किया गया है। शिकायत पत्र के साथ एक आडियो रिकार्डिग न्यायालय को उपलब्ध कराकर बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया था कि साहिबगंज जिले के बड़हरवा नगर पंचायत से संबंधित सैरात बंदोबस्ती प्रक्रिया में मारपीट की गई थी। इस प्रकरण में कैबिनेट मंत्री आलमगीर आलम तथा बरहेट विधानसभा क्षेत्र से विधायक व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रतिनिधि पंकज मिश्रा की भूमिका से सामने आई है।
इससे संबंधित धमकी भरे आडियो डिजिटल मीडिया पर वायरल होने का हवाला देते हुए बाबूलाल ने इसे गंभीर व संगीन मामला बताया था और कहा था कि यह कार्यपालिका के लिए निर्धारित मापदंडों एवं प्रावधानों के प्रतिकूल है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार गठन के बाद इस तरह की यह अकेली घटना नहीं है। इस प्रकार के मामलों की चौतरफा शिकायतें आ रही हैं। जगह-जगह ठेका-पट्टा व टेंडर मैनेज करने की होड़ लगी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मंत्री व मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि धमकी देते हैं कि सब कुछ उनके हाथ में है। ठेकेदार जब उनकी बात नहीं मानता है तो उसके साथ मारपीट की जाती है। स्पष्ट तौर पर मंत्री व मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि की इस घटना में सीधी संलिप्तता है।
बाबूलाल मरांडी ने लोकायुक्त से आग्रह किया था कि वे किसी उपयुक्त व निष्पक्ष एजेंसी से पूरे प्रकरण की जांच कराएं और नियमानुसार कार्रवाई करें, ताकि मंत्री व अन्य लोगों की असली करतूत जनता के सामने आ सके। साथ ही दलाली, बिचौलियागिरी और ठेका-पट्टा मैनेज करने के खेल के साथ ही ट्रासंफर-पोस्टिग को कमाऊ उद्योग बनाने के काम में लगे लोगों पर अंकुश लग सके।