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Friendship Day 2021: श्री कृष्ण हैं सृष्टि के परम मित्र, आदर्श मित्रता का दिया सिद्धांत; जानें क्या है पौराणिक कथा

शास्त्रों में सभी देवी देवता की अलग-अलग संज्ञा है। जैसे भगवान शिव को महादेव श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम विष्णु को हरि ऐसे ही अन्य। ऐसे ही शास्त्रों में भगवान श्री कृष्ण को परम मित्र की संज्ञा दी गयी है।

By Vikram GiriEdited By: Published: Sun, 01 Aug 2021 02:32 PM (IST)Updated: Sun, 01 Aug 2021 02:38 PM (IST)
Friendship Day 2021: श्री कृष्ण हैं सृष्टि के परम मित्र, आदर्श मित्रता का दिया सिद्धांत; जानें क्या है पौराणिक कथा
Friendship Day 2021: श्री कृष्ण हैं सृष्टि के परम मित्र, आदर्श मित्रता का दिया सिद्धांत। जागरण

रांची, जासं। शास्त्रों में सभी देवी देवता की अलग-अलग संज्ञा है। जैसे भगवान शिव को महादेव, श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम, विष्णु को हरि ऐसे ही अन्य। ऐसे ही शास्त्रों में भगवान श्री कृष्ण को परम मित्र की संज्ञा दी गयी है। उन्होंने अपने जीवन के हर चरित्र से हमें कई सीख दी है। उन्होंने जीवन पर परम ज्ञान गीता के रूप में दिया। श्री कृष्ण की विशेषताओं को हम अपने जीवन में उतार कर रिश्तों और दोस्ती को और मजबूत कर सकते हैं। फ्रेंडशिप डे पर श्री कृष्ण की दोस्ती के इन खास पहलुओं को आपको भी जानना चाहिए। इसके साथ ही जानते हैं कि श्री कृष्ण के पांच दोस्त कौन थे।

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सुदामाः

कृष्ण सुदामा की मित्रता की संज्ञा जब तक मानव जाति है तब तक दी जाएगी। जब गरीब सुदामा श्रीकृष्ण के पास आर्थिक सहायता मांगने जाते हैं तो वो उन्हें मना नहीं करते। बल्कि समृद्ध और संपन्न कर देते हैं। इसके अलावा सुदामा द्वारा उपहार स्वरूम लाए गए चावल के दानों को प्रेमपूर्वक ग्रहण करते हैं। उन्हें बिना भेद की मित्रता की सीख दी।

अर्जुनः

श्रीकृष्ण कुंती को बुआ कहते थे। मगर उन्होंने अर्जुन को सदा ही मित्र माना। महाभारत में उनसे जुड़े हुए कई प्रसंग मिलते हैं। महाभारत के रणक्षेत्र में श्रीकृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर, उन्हें सच्चाई और न्याय का मार्ग दिखाया। उन्होंने विपदा में मित्र का साथ दिया यानि अपने मित्र को प्रोत्साहित किया।

द्रौपदीः

कृष्ण द्रौपदी को भी अपने परम मित्रों में शामिल करते थे। महाभारत में द्रौपदी को एक कुशल योद्धा की संज्ञा दी गयी है। उन्होंने अपने अपमान पर मौन रहना स्वीकार नहीं किया। वो भी तब जब उनके चीरहरण पर सभी योद्धा मौन थे। उस वक्त श्री कृष्ण सभा में उपस्थित न होते हुए भी द्रौपदी का चीरहरण होने बचा लिया। इससे हमें सीख मिलती है कि विपदा में कभी भी किसी तरह का बहाना न बनाते हुए अपने मित्र की सहायता करनी चाहिए।

अक्रुरः

अक्रुर जी से श्रीकृष्ण का संबंध चाचा का था। लेकिन वो उन्हें अपना मित्र मानते थे। एक बात ये भी थी कि दोनों के उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था। इन दोनों की मित्रता ने सिखाया कि खून के रिश्तों में भी मित्रता का तत्व होता है। यदि मन को साफ रखा जाए तो पारिवारिक सम्बधों में हुई दोस्ती समय के साथ काफी मजबूत होती है।

सात्यकि

श्रीकृष्ण की नारायणी सेना की कमान सात्यकि के हाथों में थी। सात्यकि ने अर्जुन से धनुष चलाना सीथा था। जब भगवान पांडवों के शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए तब अपने साथ केवल सात्यकि को लेकर गए। कौरवों की सभा में घुसने से पहले उन्होंने सात्यकि को कहा कि अगर महाभारत में मुझे कुछ हो जाए तो भी तुम्हें पूरे मन से दुर्योधन की सहायता करनी होगी क्योंकि नारायणी सेना तुम्हारे नेतृत्व में है। सात्यकि सदैव श्रीकृष्ण के साथ रहते थे और उनपर पूरा विश्वास करते थे। मित्रता में विश्वास के सिंद्धात को इनकी मित्रता से समझा जा सकता है।


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