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फर्जीवाड़ा : केसर बोल कर ये कौन सा बीज दे दिया, खेतों में कुसुम के फूल खिले तो ठगे रह गए किसान

औषधीय गुणों और खुशबू व स्वाद से भरपूर केसर की खेती के नाम पर झारखंड के विभिन्न जिलों में सक्रिय ठग किसानों से लाखों रुपये ठग रहे हैैं। खूंटी पलामू चतरा हजारीबाग समेत राज्य के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे मामले सामने आने पर किसानों को अलर्ट किया गया है।

By Sanjay Kumar SinhaEdited By: Published: Mon, 05 Apr 2021 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 05 Apr 2021 06:00 AM (IST)
अपने खेत में लगी फसल के साथ अनुज कुमार यादव।

रांची (जासं) : औषधीय गुणों और खुशबू व स्वाद से भरपूर केसर की खेती के नाम पर झारखंड के विभिन्न जिलों में सक्रिय ठग किसानों से लाखों रुपये ठग रहे हैैं। खूंटी, पलामू, चतरा, हजारीबाग समेत राज्य के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे मामले सामने आने पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कृषि विभाग और किसानों को इस संबंध में अलर्ट किया है। वहीं लाखों रुपये गंवा चुके किसान माथा पीट रहे हैैं। 

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भुक्तभोगी किसानों के अनुसार पिछले कुछ महीनों से अलग-अलग गांवों में कुछ लोगों (ठगों) का दल घूम-घूम कर किसानों से केसर की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहा है। कहीं अपना परिचय उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारी के रूप में दिया तो कहीं किसी संस्था के प्रतिनिधि के रूप में। इन ठगों ने किसानों से कहा कि केसर के फूल खिलने के बाद वे खुद ही किसानों के खेत से ही तीन लाख रुपये किलो की दर से खरीदकर केसर ले जाएंगे। जो किसान इस झांसे में आए उन्होंने 20 हजार रुपये प्रति किलो की दर से बीज खरीदे और अपने खेतों में बोए। महीनों फसल की देखरेख और सिंचाई के बाद उनकी उम्मीदों पर पानी तब फिर गया, जब पौधों में फूल खिले। ये फूल कुसुम के थे। किसानों को ठगे जाने का अहसास हुआ तो उन्होंने जगह-जगह इसकी शिकायत की। जिस कुसुम के बीज किसानों ने 20 हजार रुपये की दर से ठगों से खरीदे, वे बीज बाजार में आसानी से 40 से 50 रुपये किलो की दर से बाजार में उपलब्ध हैं।  

कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि झारखंड का मौसम केसर की खेती के लिए अनुकूल भी नहीं है। केसर का वहीं केसर और कुसुम के बीज देखने में भी  अलग-अलग होते हैं। केसर ठंडे स्थानों में उपजता है। जागरूक बन इस तरह की ठगी से बच सकते हैैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की राची के पलांडु में स्थित शाखा के प्रधान वैज्ञानिक डा. विकास दास बताते हैं कि राज्य में करीब 300 से ज्यादा किसानों से केसर के बीज के नाम पर कुसुम का बीज 20 हजार रुपये से एक लाख रुपये प्रति किलो की दर से बेचे जाने की सूचना मिल रही है। केवल रांची व खूंटी में ही 100 के करीब किसान ठगे जा चुके हैैं। किसानों को गुमराह करने वाले बीज बेचकर फरार हो गए हैैं। अब उनका कोई सुराग नहीं मिल रहा है।

देशभर में किसानों को ठग रहा गैंग

केसर की खेती के नाम पर किसानों को ठगने की खबरें देश के कई हिस्सों से आ रही हैैं। हरियाणा के फतेहाबाद में भी दो साल पहले ऐसा मामला प्रकाश में आया था।  इसके बाद हरियाणा के अलग-अलग जिले और फिर पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारत के कई जिलों में किसानों के साथ ठगी हुई है। हालांकि किसानों के जागरूक होने के बाद इस गैंग को वहां से भागना पड़ा है। झारखंड में भी इस गैंग ने हाल में ही पैर पसारना शुरू किया है।

बीज नहीं कंद से उपजता है केसर

केसर बीज से नहीं उपजता, बल्कि कंद से लगाया जाता है। इसकी खेती ठीक वैसे होती है जैसे हम आलू बोकर आलू उपजाते हैं। केसर के कंद प्याज की तरह आकार में होते हैं। इसके पौधे ज्यादा से ज्यादा 6-12 इंच तक हो सकते हैं। केसर का फूल बैगनी रंग का होता है। 

जो बीज बो चुके, वो क्या करें 

केसर के नाम पर ठगे जाने वाले किसानों के सपने टूट गए हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे किसानों को ज्यादा निराश होने की जरूरत नहीं है। थोड़ी कमाई कुसुम के फूल से भी संभव है। कुसुम के फूल से खाने का रंग और फ्लेवर बनाया जाता है। इसके साथ ही कुसुम के बीज से रिफाइन तेल बनता है। जैविक रंग होने के कारण कुसुम के रंग का इस्तेमाल सौदर्य प्रसाधनों में भी किया जाता है।

दिन-रात देखरेख के बाद पता चला केसर का सच

चतरा के गिद्धौर प्रखंड के सैकड़ों किसानों के साथ ठगी हुई है।रातों रात लखपति बनने का सपना देख रहे किसानों को जब पौधों में केसर की जगह कुसुम खिलने की जानकारी मिली तो उनके होश उड़ गए। यहां किसानों को केसर के नाम पर कुसुम का बीज जिले के कान्हाचट्टी प्रखंड के आपूर्तिकर्ता ने उपलब्ध कराया था। उसने दो लाख रुपये किलो की दर से केसर खरीदने का आश्वासन भई दिया था। आपूर्तिकर्ता भंडाफोड़ होने के बाद फरार हो गया है।  

फर्जीवाड़े के शिकार ः चतरा के सीमावर्ती कुसमी, बरगांव, पदमा व मिटार गांव के दर्जनों किसानों ने केसर के नाम पर यह फसल लगाई थी। इन में अधिकांश वे लोग हैं जो पहले पोस्ता की खेती से जुड़े थे। कुसमी गांव के अनुज यादव बताते हैं कि 20,000 रुपये किलो बीज खरीद कर केसर की खेती की थी। इससे इन्होंने आर्थिक स्थिति में सुधार की उम्मीद लगा रखी थी। मार्च माह के मध्य में जब फूल निकले तो इन्हें ठगे जाने का एहसास हुआ। इसी तरह महेंद्र यादव, सुरेंद्र यादव, लालजी साव सहित दर्जनाधिक लोग इस बीज फर्जीवाड़े के शिकार हुए हैं।

बड़कागांव में एक  दर्जन किसान बने शिकार 

हजारीबाग के बड़कागांव में भी एक दर्जन किसानों से केसर के खेती के नाम पर ठगी करने का मामला प्रकाश में आया है। बड़कागांव प्रखंड अंतर्गत टिकरा गांव के पारस नाथ महतो, द्वारका महतो, कृतिनाथ महतो, फुलेश्वर महतो अनीता देवी, रूपमती देवी समेत दर्जनों किसानों ने बड़े लगन से अपने खेतों में एक जगह चकबंदी तौर पर केसर समझकर कुसुम का पौधा लगाया था।  फूल खिलने पर राज खुला। किसानों को ये बीज चतरा के कुंदा प्रखंंड के आपूर्तिकर्ता ने उपलब्ध कराए थे। बड़कागांव प्रखंड के महाटिकरा गांव के दर्जनों किसानों ने कई एकड़ खेतों में 20 हजार रुपये प्रति किलो की दर से बीज खरीदकर केसर की फसल लगाई थी। ये भी ठगे गए।

पोस्ते की खेती में गए थे जेल, अब केसर की खेती में हो गए ठगी के शिकार

पलामू  जिले के मनातू थाना के कई गांवों में केसर की खेती के नाम पर दर्जनों से किसानों से ठगी का मामला प्रकाश में आया है। ठगी के शिकार कई लोग पूर्व में पोस्ते की खेती करते थे। इनमें एक कुसमी गांव के अनुज यादव वर्ष 2017 में प्रतिबंधित पोस्ते की खेती करने के आरोप में जेल जा चुके है। जमानत मिलने पर पिछले वर्ष उन्होंने चतरा से 20 हजार रुपये किलो की दर से केसर के बीज की खरीद की। पौधों में फूल आए तो पता चला कि ये कुसुम के फूल हैैं। सिर्फ अनुज ही नहीं बल्कि मनातू के कुसमी, बरगांव, पदमा, मिटार व चतरा जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों के दर्जनों किसान केसर की खेती के नाम पर ठगे गए है। किसान रवींद्र यादव बताते हैं कि विक्रेता ने दो लाख रुपये किलो की दर से पूरी फसल को खरीदने का भरोसा दिलाया था, लेकिन अब आपूर्तिकर्ता गायब हो चुका है। मनातू के ही महेंद्र यादव, सुरेंद्र यादव सहित कई अन्य किसान भी केसर की खेती के नाम पर ठगे गए है। 

जानकारी मिलने के बाद खेतों का मुआयना किया और कृषि वैज्ञानिकों को उक्त फूलों का सैंपल भेजा गया । इसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया कि उक्त पौधे केसर नहीं बल्कि कुसुम (करंडी) के हैं। किसानों को सतर्क रहने की आवश्यकता है 

रविरंजन कुमार,  कृषि पदाधिकारी, रांची।


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