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RANCHI NEWS : राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के विरोध में शिक्षक काला बिल्ला लगाकर काम करेंगे झारखंड के कर्मचारी

पेंशन योजना का विरोध राष्ट्रीय स्तर पर एनएमओपीएस के बैनर तले किया जा रहा है तथा फिर से पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग की जा रही है। इसके लिए झारखंड में भी कर्मचारी आंदोलनरत हैं।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 02:50 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 02:50 PM (IST)
RANCHI NEWS : राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के विरोध में शिक्षक काला बिल्ला लगाकर काम करेंगे झारखंड के कर्मचारी
झारखंड में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली का व‍िरोध शुरू, दो द‍िसंबर को काला ब‍िल्‍ला लगाएंगे कर्मचारी

जागरण संवाददाता, रांची : झारखंड में राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) लागू होने की तिथि दिन यानी एक दिसंबर को सभी सरकारी कर्मचारी काला दिवस मनाएंगे। झारखंड के सभी प्लस 2 शिक्षक एनपीएस के विरोध में एक दिसंबर को काला बिल्ला लगाकर कार्य करेगें। साथ ही ट्वीटर पर भी इसके विरोध में कैंपेन चलाया जायेगा।झारखंड प्लस 2 शिक्षक संघ ने आंदोलन में समर्थन दिया है। इसकी जानकारी झारखंड प्लस 2 शिक्षक संघ के संरक्षक सुनील कुमार ने दी।  उन्होंने बताया कि  पेंशन योजना का विरोध राष्ट्रीय स्तर पर एनएमओपीएस के बैनर तले किया जा रहा है तथा फिर से पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग की जा रही है।  इसके लिए झारखंड में भी कर्मचारी आंदोलनरत हैं।

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उल्लेखनीय है कि झारखंड में एक दिसंबर 2004 से पुरानी पेंशन प्रणाली के बदले राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली  को अपनाया गया। एनपीएस के अंतर्गत आनेवाले सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्त के बाद मिलने वाली पेंशन उनकी एनपीएस में जमा राशि पर निर्भर करती है। सुनील कुमार ने बताया कि सेवाकाल में वेतन और महंगाई भत्ता का 10 फीसद कर्मचारियों के वेतन से काटा जाता है और उतनी ही राशि सरकार द्वारा देकर एनपीएस  एकाउंट में जमा की जाती है और इस राशि को शेयर आधारित मार्केट में निवेश किया जाता है।

एनपीएस के तहत कर्मचारी सेवानिवृत्ति के समय कुल जमा कोष में से 60 प्रतिशत राशि निकालने का पात्र है। शेष 40 प्रतिशत जुड़ी राशि पेंशन योजना में चली जाती है, जिसका उपयोग वार्षिकी खरीदने में किया जाता है। इस योजना के सहारे सरकार ने स्वयं को पेंशन की जिम्मेदारी से मुक्त कर ली है। सरकार की भूमिका केवल शुरुआती दौर में बराबर के अंशदाता के रूप में है। कर्मचारियों को उनके सेवानिवृत्ती के बाद निजी संस्थानों के भरोसे छोड़ दिया जाता है।  ऐसी परिस्थिति में सेवानिवृत्त कर्मचारी को अपने जीवन यापन में घोर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।


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