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16saal16sawal: बन जाती ग्रेटर रांची, तो हो जाती बेहतर रांची

Greater Ranchi. ग्रेटर रांची की परिकल्पना करते हुए 15 नवंबर 2002 को तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने इसकी आधारशिला रखी थी।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 02:15 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 02:15 PM (IST)
16saal16sawal: बन जाती ग्रेटर रांची, तो हो जाती बेहतर रांची
16saal16sawal: बन जाती ग्रेटर रांची, तो हो जाती बेहतर रांची

राजधानी रांची के कांके प्रखंड स्थित सुकुरहुटू में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा रखी गई ग्रेटर रांची की नींव बहुत पहले ही हिल चुकी है। झारखंड गठन के ठीक दो वर्ष बाद 15 नवंबर 2002 को जिस उत्साह के साथ ग्रेटर रांची की आधारशिला रखी गई थी, सही मायने में वह परवान नहीं चढ़ सकी। तत्कालीन बाबूलाल मरांडी की सरकार गिरने के बाद कई सरकारें आईं-गईं। सभी सरकारों ने इसे अपने-अपने नजरिए से देखा। इस परिकल्पना को मूर्त रूप देने के प्रयास भी हुए, परंतु राजनीतिक अस्थिरता, जमीन की किल्लत, स्थानीय विरोध आदि के बीच ग्रेटर रांची की परिकल्पना झंझावतों के बीच झूलती रही।

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इस अवधि में न सिर्फ ग्रेटर रांची के लोकेशन बदलते रहे, बल्कि कंसलटेंट एजेंसियों के खाके में इसका स्वरूप भी बदलता रहा। पहले सुकुरहुटू, फिर नामकुम, तुपुदाना और उसके बाद एचइसी में इसके ठिकाने ढूंढे जाने लगे। बहरहाल गे्रटर रांची से नई राजधानी में तब्दील इस योजना को आज तक आकार नहीं मिल सका है। इससे इतर टुकड़ों-टुकड़ों में ही सही सरकार ने आधारभूत संरचनाओं के निर्माण का खाका तैयार किया है। एचइसी की ही जमीन पर हाई कोर्ट बनकर लगभग तैयार है। विधानसभा भवन का निर्माण कार्य प्रगति पर है। स्मार्ट सिटी के रूप में रांची का चयन होने के बाद अर्बन सिविक टावर, झारखंड अर्बन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट इंस्टीच्यूट का निर्माण हो रहा है।

फ्लैश बैक
- राज्य गठन के बाद नई राजधानी के लिए सर्वे, बेस मैप, लैंडयूज प्लान आदि तैयार करने के लिए ओआरजी, नई दिल्ली का चयन परामर्शी के तौर पर हुआ।
- नई राजधानी के लिए ओआरजी ने अलग-अलग तीन साइट चिह्नित किए। जिसका कुल रकवा था 14500 हेक्टेयर।
- परामर्शी ओआरजी का कार्य असंतोषजनक पाए जाने पर छह जून 2005 को एकरारनामा रद कर दिया गया।
- साइट एक एयरपोर्ट के फ्लाइंग फनेल जोन मेंं अवस्थित होने के कारण रद कर दिया गया।
- साइट दो, रांची के उत्तर-पश्चिम व साईट तीन के रूप में चिह्नित रांची का उत्तर-पूर्व क्षेत्र में नई राजधानी बनाने पर चार अप्रैल 2007 को राज्य मंत्रिपरिषद की सहमति बनी।
- 20 दिसंबर 2008 को नई राजधानी से संबंधित कार्यों को निष्पादित करने के लिए ग्रेटर रांची डेवलपमेंट एजेंसी (जीआरडीए) का गठन हुआ।
- जीआरडीए की पहल पर 23 परामर्शी संस्थानों ने नई राजधानी विकसित करने की इच्छा जताई।
- 16 मार्च 2009 में लोकसभा व  24 नवंबर 2009 में विधानसभा चुनाव के बाबत जारी आचार संहिता के कारण बात आई-गई हो गई।
- फिर निविदा निकाली गई। एक फरवरी 2010 को चार परामर्शियों ने निविदा में भाग लिया। तब सीइएस, नई दिल्ली का चयन अंतिम रुप से किया गया।
- फिर तय हुआ 'स्कूल आफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चरÓ (एसपीए), नई दिल्ली इसकी डिजाइन तैयार करेगा।
- बहरहाल मामला ठंडे बस्ते में है। कहने को इंफ्रास्ट्रक्चर जरूर विकसित हो रही है, परंतु टुकड़ों में। स्वरूप नई राजधानी का कतई नहीं दिखता।

क्या थी परिकल्पना :
 - एचइसी की 1800 एकड़ भूमि पर सचिवालय/विधानसभा, मंत्रियों व पदाधिकारियों का बनना था आवास।
- सुकुरहूटू में प्रस्तावित था  इंस्टीच्यूशनल एरिया, 265 करोड़ खर्च कर 500 एकड़ रैयती जमीन खरीदने की थी तैयारी।
- पुरानी रांची में बगैर छेड़छाड़ किए  ङ्क्षरग रोड से बाहर की जमीन नई राजधानी के लिए अधिग्रहित करने की थी तैयारी।

यहां फंसा पेंच :
- सरकारी मूल्य पर जमीन देने का होता रहा विरोध। बाजार मूल्य से मुंह मोड़ती रही सरकार।
- राजनैतिक अस्थिरता की भेंट चढ़ती रही परियोजना। जो भी सरकारें आई इसे अपने नजरिए से देखा।
- बार-बार बदलता रहा लोकेशन, एक ही जगह नहीं मिली एकमुश्त जमीन।

ग्रेटर रांची का 237 करोड़ एचइसी को हस्तांतरित :
ग्रेटर रांची (नई राजधानी) की परिकल्पना परवान तो नहीं चढ़ी। अलबत्ता इस मद में जीआरडीए के पास उपलब्ध 237 करोड़ रुपये पिछले दिनों एचइसी को सुपुर्द कर दिए गए। यह राशि राजधानी रांची के कोर कैपिटल एरिया में स्मार्ट सिटी के निर्माण के लिए एचइसी से ली गई जमीन के एवज में दिया गया।

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