Wonderful Collection: यहां सिक्कों से समझिए मानव सभ्यता का इतिहास... जानिए, कैसे बना पांच हजार सिक्कों का अद्भुत कलेक्शन
History Of Coins धनबाद के कुसुम विहार निवासी अमरेंद्र आनंद के पास विभिन्न शासन काल के लगभग पांच हजार से अधिक सिक्कों का कलेक्शन है। यहां कंकड़ पत्थर से लेकर धातु तक के सिक्कों का खजाना देखकर आप दंग रह जाएंगे। कभी धनबाद आइए तो इसे जरूर देखिए।
धनबाद, (आशीष सिंह) : मुद्रा किसी भी देश की आर्थिक संपन्नता का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो प्रत्येक काल में सिक्कों का प्रचलन रहा है। कंकड़, पत्थर से लेकर धातु तक के सिक्कों की खनक सुनाई दे जाया करती थी। आज की पीढ़ी ऐसे सिक्कों और इनके इतिहास के बारे में बहुत कम जानती होगी। धनबाद के कुसुम विहार के अमरेंद्र आनंद के पास मानव सभ्यता के उद्गम से लेकर आज तक जारी हुए सिक्कों और नोटों का विस्तृत खजाना है। विभिन्न शासन काल और सदी के लगभग पांच हजार से अधिक सिक्के उनके टकसाल में हैं।
पहला सिक्का कब जारी हुआ, देख सकते हैं यहां
पहला सिक्का कब जारी हुआ, पहला नोट कब जारी हुआ, यह सब इनके पास है। 40 वर्षों से अमरेंद्र आनंद इनका कलेक्शन करते आ रहे हैं। कई सिक्कों और नोटों को तो इन्होंने ऊंची बोली लगाकर भी खरीदा है। ये सिक्के और नोट हमारी भारतीय और प्राचीनतम सभ्यता दिखाते हैं। अमरेंद्र बताते हैं कि आदिम जातियां, राजा-महाराजा, मुगल शासक, बादशाह और सुल्तानों ने अपनी-अपनी मुद्राएं जारी की थीं। प्रारंभ में भारत में कौड़ी, जानवरों की हड्डी, रांगा, टेराकोटा (मिट्टी) और पत्थर के सिक्के प्रचलन में आए। वक्त गुजरने के साथ धातु के सिक्के आए।
प्रतिमाह 15 से 20 हजार रुपये सिक्कों और नोट पर खर्च
अमरेंद्र ने सिक्कों का एक म्यूजियम बनाया हुआ है। है। प्रतिमाह 25 से 30 हजार रुपये प्राचीन सिक्के खरीदने पर खर्च करते हैं। सिक्के खरीदने देश के किसी भी कोने में चले जाते हैं। अमरेंद्र ने अपने कलेक्शन को 'डिस्कवरी आफ इंडियन क्वाइंस फ्राम कौड़ी टू क्रेडिट कार्ड' नाम दिया है। दस वर्ष की उम्र से सिक्के संग्रह कर रहे हैं। इनके पास कई सिक्के पांच हजार वर्ष पुराने हैं। जानवर की हड्डी से बने रुद्राक्ष के आकार का सिक्का, पत्थर का आड़ा-तिरछा सिक्का भी अमरेंद्र के टकसाल में है। उस समय इनका मूल्य इतना कि गाय-भैंस खरीद सकते थे।
सिक्कों से कर सकते हैं कबिलों की पहचान
अमरेंद्र बताते हैं कि उनके संग्रहालय में मिट्टी के ऐसे सिक्के हैं, जिनसे किसी कबीले की पहचान होती है। आदिम जातियां, राजा-महाराजा, मुगल शासक, बादशाह और सुल्तानों ने अपनी-अपनी मुद्राएं जारी की थीं। भारत में कभी कौड़ी, जानवरों की हड्डी, रांगा, टेराकोटा (मिट्टी) और पत्थर के सिक्के प्रचलन में थे। उस समय इनका धातु के सिक्कों जैसा ही मोल था। ऐसे ही आदिम और प्राचीन भारत के करीब पांच हजार से अधिक सिक्कों का बेशकीमती संग्रह उनके पास है।
अमरेंद्र के संग्रहालय में सिक्कों का अनूठा संसार
- कौड़ी : पांच हजार वर्ष पुराने, समंदर के किनारे बसे राज्यों में इनका चलन था।
- हड्डी के सिक्के : पांच हजार वर्ष पुराने जानवरों की हड्डियों से निर्मित, रुद्राक्ष जैसे दिखने वाले सिक्के। सुरक्षित रखने को धागे में पिरोकर गले या हाथ में पहने जाते थे।
- पत्थर के सिक्के : पांच हजार वर्ष पुराने इन सिक्कों का उत्तर भारत में चलन था।
- मनका : कई हजार वर्ष पुराने रांगा से बने इन सिक्कों का प्रचलन भारत में था। इन पर विशेष क्षेत्र के चिह्न अंकित होते थे।
- टेराकोटा (मिट्टी) : पांच हजार वर्ष पुराने इन सिक्कों का पंजाब के अधिकतर इलाकों में चलन था। सिक्कों पर कबीलों की पहचान के चिह्न बने होते थे। ये सौराष्ट्र (गुजरात) में भी मिले हैं।
- चांदी का पंच मार्क : ये सिक्के मौर्यकालीन हैं। सवा तीन ग्राम के चांदी के ये सिक्के एक हजार साल तक प्रचलन में रहे। पंच मार्क से राजवंश का समय दर्शाया जाता था। तांबे के पंच मार्क के सिक्के उज्जैन में प्रचलित थे। इन सिक्कों पर महाकाल की आकृति बनी है।
- कुषाण काल : कुषाण वंश के राजाओं के समय के ये सिक्के तांबे के बने होते थे। इनमें एक ओर राजा तो दूसरी ओर शिव-नंदी का चित्र अंकित होता था। 16 ग्राम तक के ये सिक्के 80 से 100 एडी में प्रचलन में थे। उस समय के शासक भीम कदाफिस का सिक्का 6.89 ग्राम का था।
- इंडो-ग्रीक : चांदी के 2.3 ग्राम के सिक्के 31 बीसी से 14 एडी में प्रचलन में रहे। इस समय के शासक कुजूल कादफिस हुआ करते थे।
- कश्मीरी सिक्के : ये सिक्के 400 से 1200 एडी में प्रचलन में थे। 7.26 ग्राम के इन सिक्कों में सोना और तांबा का मिश्रण होता था। ये सिक्के कारकोतस ऑफ कश्मीर के नाम से जाने जाते थे।
- दक्षिण भारत के सिक्के : एक कासु के नाम से प्रचलित ये सिक्के दक्षिण भारत में सन 1743 से 1801 एडी में प्रचलित थे।