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संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र दिगंबर जैन मंदिर

राची अपर बाजार स्थित प्रसिद्ध दिगंबर जैन मंदिर के गौरवशाली इतिहास के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 May 2020 02:11 AM (IST)Updated: Thu, 14 May 2020 06:12 AM (IST)
संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र दिगंबर जैन मंदिर
संस्कृति और अध्यात्म का केंद्र दिगंबर जैन मंदिर

नीलमणि चौधरी,

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राची : अपर बाजार स्थित प्रसिद्ध दिगंबर जैन मंदिर के गौरवशाली इतिहास के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। आज ही के दिन 14 मई 1920 को राजधानी के हृदयस्थली में मंदिर की स्थापना हुई थी। इसका निर्माण अपर बाजार के धनाढ्य व्यवसायी केदार लाल जी नंदलाल जी सरावगी परिवार के द्वारा कराया गया था। छह सालों तक व्यवस्था संभालने के बाद आठ जुलाई 1927 को मंदिर का कार्यभार जैन समाज को सौंप दिया गया। तब से मंदिर का संचालन श्री दिंगबर जैन पंचायत द्वारा किया जा रहा है। स्थापना के इन सौ वर्षो में दिगंबर जैन मंदिर की पहचान अध्यात्म ही नहीं बल्कि समाज के प्रमुख सास्कृतिक केंद्र के रूप मे बन गई है। राची को तीर्थराज सम्मेद शिखर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। इस कारण सालों भर देशभर से जैन मुनियों का यहा प्रवास लगा रहता है। खासकर, चातुर्मास के लिए दिगंबर जैन मंदिर जैन मुनियों की पहली पसंद होती है। आचार्य सन्मति सागर जी, आचार्य कुंथु सागर जी, आचार्य ज्ञानसागर जी, मुनि श्री प्रज्ञा सागर जी आदि दर्जनों प्रख्यात साधुओं ने राची में अपना चातुर्मास पूरा किया। बुजुर्गो की माने तो करीब 18 कट्ठा में फैले मंदिर परिसर के इर्द-गिर्द ही जैन समाज पल्लवित हुआ था जो कि आज वटवृक्ष के रूप में हम सबके सामने है।

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इंदौर के एक सेठ की प्रेरणा से बना मंदिर

मंदिर के निर्माण के पीछे इंदौर के एक सेठ के आहार नियम को माना जाता है। श्री दिगंबर जैन पंचायत के मंत्री कमल जैन के अनुसार एक बार इंदौर के सेठ हुकुमचंद जी का सम्मेद शिखर जाने के क्रम में राची में रुकना हुआ। उनका नियम था कि देव दर्शन के बिना आहार ग्रहण नहीं करेंगे। उस समय अपर बाजार में कोई मंदिर नहीं था। खैर, घर में रखे भगवान के मूíत का दर्शन कर आहार तो कर लिया लेकिन मंदिर जैसी संतुष्टि नहीं मिली। कहा जाता है उन्हीं की प्रेरणा से सरावगी परिवार के द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया। वहीं, मंदिर में स्थापित भगवान की मूíतया विभिन्न स्थानों से खुदायी में प्राप्त हुई हैं।

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राची में 150 साल पुराना है जैन समाज का इतिहास

आज से करीब 150 साल पहले राजस्थान के मुकंदगढ़ से जमुनादास जी छावड़ा व्यवसाय के सिलसिले में राची आए थे। अपर बाजार में किराना दुकान से व्यवसाय आरंभ किए। इसके बाद जोधराज कस्तूरचंद, जोखीराम मुंगराज, बैजनाथ मुंगराज, रतन लाल सूरजमल का परिवार राजस्थान से राची पहुंचे।

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जमुनादास की ऐसी धाक थी कि अंग्रेज भी करते थे परहेज

जमुनादास छावड़ा की चौथी पीढ़ी राची में हैं। उनके परपौत्र सुनील छावड़ा आज सफल व्यवसायी हैं। हरमू में नया घर है। सुनील के अनुसार उनके दादा चिरंजीलाल शुरुआती दिनों के कई किस्से सुनाते थे। उनके दादा बताते थे कि अंग्रेज साधु सन्यासियों की इज्जत करते थे। कई अंग्रेज अधिकारी उनके परदादा की दुकान से सामान लेने आते थे। जब अंग्रेजों को यह पता चला कि वे शाकाहारी हैं तो सामान छूना तो दूर दुकान में पैर भी नहीं रखते थे। जो सामान चाहिए होता था दूर से ही माग लेते थे।

-------------- जब मंदिर बना उस समय महज 10-12 परिवार थे जैन समाज के दिगंबर जैन महासभा के प्रदेश अध्यक्ष धर्मचंद्र रारा वर्षो तक मंदिर के संचालन से जुड़े रहे। 2003 में पहली बार श्री दिगंबर जैन पंचायत के अध्यक्ष बने। कहते हैं सबसे पहले जोखीराम धर्मशाला में छोटा मंदिर बना। बाद में सरावगी परिवार व समाज के अन्य लोगों के सहयोग से भव्य मंदिर बनाया गया। 1920 में जब मंदिर बन रहा था उस समय जैन समाज के महज 10-12 परिवार थे। आज राजधानी में करीब पाच सौ परिवार हैं। आबादी लगभग तीन हजार होगी।

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बंगाल के मानभूम से खोदाई में प्राप्त हुई थी प्रतिमा

मंदिर के मुख्य अर्चक अरविंद शास्त्री के अनुसार मंदिर ऐतिहासिक रूप से भी काफी महत्व रखता है। मंदिर में एक प्रतिमा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की है। यह पश्चिम बंगाल के मानभूम जिले से खोदाई से प्राप्त हुआ था। प्रतिमा के चारों ओर से 24 तीर्थंकर की आकृति उकेरी हुई है। 1970 के आसपास अपरबाजार निवासी छगन लाल सरावगी के प्रयास से यह प्रतिमा मंदिर में स्थापित किया गया।

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सामाजिक क्षेत्र में जैन समाज की प्रमुख भूमिका

श्री दिगंबर जैन पंचायत के अध्यक्ष उम्मेदमल जैन के अनुसार जैन समाज का धाíमक के साथ-साथ समाजिक कार्य में भी प्रमुख भूमिका रही है। समाज द्वारा शहर में कई स्कूल व धर्मशाला बनाये गए। भगवान महावीर मेडिका अस्पताल, रतन लाल सूरजमल मध्य विद्यालय आदि प्रमुख हैं। कहते हैं भगवान की सेवा का अवसर मिलना अपने आप में बड़ा पुण्य का काम है।

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मंदिर के सौ वर्ष पूरा होना गर्व की बात

श्री दिगंबर जैन पंचायत के मंत्री कमल जैन कहते हैं मंदिर का सौ वर्ष पूरा होना सौभाग्य की बात है। मंदिर बनवाने वाले तो पुण्य के भागी हैं ही आज पाच सौ परिवार पूजा कर पुण्य के भागी बन रहे हैं। मंदिर के साथ पूरे समाज की भावनाएं जुड़ी हुई है। सम्मेद शिखर राची उनका द्वार माना गया है। जहा मंदिर होता है वहीं जैन समाज विकसित होते हैं। ............

पूर्वजों के कार्य से परिवार को मिला सौभाग्य

मंदिर निर्माण कराने वाले सरावगी परिवार के वंशज आरके सरावगी के अनुसार पूर्वजों ने मंदिर बनाकर आने वाले पीढि़यों को सौभाग्य से परिपूर्ण कर दिया। पूर्वजों के कर्मो का प्रसाद आज भी ईश्वर से मिल रहा है। आज मंदिर के सौ साल पूरे होने पर आत्मसंतोष की अनुभूति हो रही है। पूर्वज धर्मात्मा थे उनकी बराबरी नहीं कर सकते हैं लेकिन अपने स्तर से यथा संभव मंदिर से जुड़कर सेवा कार्य करते हैं।


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