बढ़ सकता है ताला मरांडी का संकट
अपनी ही सरकार पर निशाना साधने की कोशिश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी को भारी पड़ सकती है।
किशोर झा, रांची। पहले बिना वरिष्ठ नेताओं को विश्वास में लिए प्रदेश कार्यकारिणी की घोषणा फिर सीएनटी एक्ट में संशोधन के विरोध के बहाने अपनी ही सरकार पर निशाना साधने की कोशिश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी को भारी पड़ सकती है। बेटे पर लगे नाबालिग के यौन शोषण के आरोप एवं नाबालिग लड़की से बेटे की शादी कराने के मामले में कानूनी प्रक्रिया का सामना कर रहे मरांडी के कारण पहले ही पार्टी और राज्य सरकार की किरकिरी हो चुकी है। ऊपर से उनके इन कदमों ने पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं सहित मुख्यमंत्री रघुवर दास के समक्ष भी असहज स्थिति उत्पन्न कर दी है।
भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी के गठन की घोषणा के साथ ही रविवार देर शाम से राजनीतिक क्षेत्र में सरगर्मी काफी बढ़ गई। प्रदेश प्रभारी त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कार्यकारिणी गठन की सूचना से ही इन्कार कर दिया था। आज उन्होंने एक कदम और आगे बढ़ते हुए स्पष्ट किया कि मनोनीत अध्यक्ष को केंद्रीय नेतृत्व को विश्वास में लिए बिना कमेटी गठन का अधिकार नहीं है।
हैरानी की बात यह है कि कमेटी गठन की घोषणा में कई लोगों को छुट्टी कर नए नाम शामिल किए गए हैैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण नाम है पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा। मीरा भाजपा की सदस्य अवश्य हैैं लेकिन उन्हें सार्वजनिक कार्यक्रमों में कम ही देखा जाता है। इसके बावजूद प्रदेश अध्यक्ष ने उन्हें उपाध्यक्ष का पद दिया।
माना जाता है कि मरांडी ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की। सीएनटी एक्ट में संशोधन का विरोध एवं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी को संगठन में बड़ा पद देकर उन्होंने प्रदेश और पार्टी में खुद को सबसे बड़े आदिवासी नेता के रूप में उभारने की कोशिश की।
राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी मुंडा को यह भांपने में देर न लगी और उनकी पत्नी ने सार्वजनिक रूप से पदग्रहण करने में असमर्थता जता कर उनका दांव वापस कर दिया। इसके साथ ही अन्य दो वरिष्ठ पदाधिकारियों-प्रदेश उपाध्यक्ष आदित्य साहू और महामंत्री अजय नाथ शाहदेव ने भी पद स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है। जैसे हालात हैैं उनमें निश्चय ही कुछ अन्य पदाधिकारी भी पद छोडऩे की घोषणा करेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मरांडी ने अपने और अपने पुत्र के ऊपर चल रहे कानूनी मामलों में सरकार को दबाव में लाकर छूट पाने की चाल चली थी। इसी कारण सीएनटी एक्ट में संशोधन का विरोध करने के लिए उन्होंने पार्टी फोरम के बदले सार्वजनिक मंच चुना। इसी तरह संगठन में पकड़ मजबूत कर सरकार को दबाव में लाने की रणनीति के तहत कई महत्वपूर्ण पदों से पुराने लोगों की छुट्टïी कर बिना वरिष्ठ नेताओं और मुख्यमंत्री को विश्वास में लिये अपने समीकरण के तहत लोगों को मनोनीत किया। लेकिन उनके दोनों दांव उलटे पड़ गए हैैं। अपने लोग तो बने नहीं केंद्रीय नेतृत्व और राज्य सरकार की नजर में इनकी निष्ठा और नीयत पर सवाल खड़े हो गए हैैं।
माना जा रहा है कि जल्द ही मरांडी के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो सकती है। उनकी प्रदेश अध्यक्ष पद से छुट्टïी के साथ ही नाबालिग प्रकरण में कानूनी शिकंजा भी कस सकता है।