विकास ही बनेगा वोट का आधार
झारखंड की राजधानी रांची से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर बुढ़मू बाजार में लोग जमे हैं। कहा विकास ही वोट का मुद्दा होगा।
विनोद श्रीवास्तव, बुढ़मू
झारखंड की राजधानी रांची से तकरीबन 30 किलोमीटर दूर बुढ़मू बाजार में दैनिक जागरण की चौपाल सजी है। हर उम्र वर्ग का प्रतिनिधित्व इस चौपाल में है। दिहाड़ी मजदूर से लेकर, छात्र, व्यवसायी, किसान, गृहिणी सभी इस चौपाल में खुले मन से अपनी बातें रख रहे हैं। सभी की परिकल्पनाओं में किसी ऐसे सांसद की छवि है, जो चुनाव के वक्त सिर्फ लंबी-चौड़ी बातें कर नदारद न हो जाए। वह हर सुख-दुख में जनता के बीच हो। जन समस्याओं को लेकर सड़क से लेकर सदन तक संघर्षरत रहे। सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं को जरूरतमंदों का संबल बना जाए। इससे इतर ग्रामीणों की इस भीड़ में से बहुत सारे लोग वर्तमान सांसद का नाम तक नहीं जानते, पहचानने की बात तो बहुत दूर है।
सुरेंद्र यादव कोटारी गांव के हैं, वे कहते हैं विकास किसी खास स्थल तक ही सिमट जाए तो यह अन्य क्षेत्रों के साथ अन्याय है। आसपास के कई ऐसे इलाके हैं, जो जंगल और पहाड़ों पर बसे हैं। चिरुआतरी, मक्का बड़ा, हरिनलेटवा जैसे दर्जनों गांव इसके उदाहरण हैं। कहीं बिजली है तो पानी नदारद, कहीं पानी है तो शौचालय का ठिकाना नहीं। सड़क ऐसी कि कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए तो अस्पताल तक पहुंचाना टेढ़ी खीर। बसेरूल अंसारी चकमे गांव के हैं। वे कहते हैं, इलाके में सुबह-सुबह आकर देख जाइए, सब्जी लदी चार-पांच गाड़ियां यहां से दूसरे प्रदेशों में जाती है। बाहरी मालामाल हो रहे हैं और हम वहीं के वहीं हैं। विकास के बहुत रूप हैं। इससे इतर अगर इस क्षेत्र में सब्जी आधारित इकाइयां लग जाए और किसानों को बाजार मिल जाएं तो आजीविका की समस्या स्वत: दूर हो जाए। स्थानीय संसाधनों के सही इस्तेमाल से ही सही खुशहाली आएगी।
सुरेंद्र गोस्वामी की धागे की दुकान है। वे कहते हैं, छह मई को चुनाव होना है, चुनाव प्रचार अब रफ्तार पकड़ रहा है। वोट देने के आधार को लेकर अभी कंफ्यूजन है, परंतु सशक्त राष्ट्रीय चेहरा के ही पक्ष में मेरा वोट जाएगा। हरिओम साहु युवा व्यवसायी हैं। उनका नजरिया थोड़ा अलग है। विकास नहीं हो रहा है, इससे वे इत्तेफाक नहीं रखते। वे दो टूक कहते हैं, विकास की दर्जनों योजनाएं किनके लिए चल रही है। अगर बिचौलिये जरूरतमंद तक उसे पहुंचने नहीं देते इसके विरुद्ध हमें ही गोलबंद होना होगा। अगर जन प्रतिनिधियों का साथ नहीं मिल रहा तो चुनाव इसकी दवा है। सिरम के बालकुंवर गंझू को कई बार आवेदन देने के बावजूद प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिलने का गम है। जानती को सातवीं के बाद पढ़ाई का मौका नहीं मिला, अन्य महिलाओं के साथ वह मजदूरी करने राय, खलारी जाती है। वहां एक दिन के 250 रुपये मिलते हैं। वह कहती है अगर गांव में ही संसाधन विकसित हो जाए तो राहत मिले। वोट वह भी देगी, विकास ही इसका आधार होगा।
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दाई के भरोसे स्वास्थ्य केंद्र, नर्स पांच केंद्रों के प्रभार में
खूंटर के पंचू लोहार बीच में बोल पड़ते हैं। कहते हैं सुदूर क्षेत्रों की बात तो दूर मुरुपीरी को ही देख लें। बुनियादी सुविधाओं के मामले में इसकी स्थिति थोड़ी अच्छी है, परंतु यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में आपको चिकित्सक नहीं मिलेंगे। सिर्फ दाई रहती है यहां। एक नर्स है, जो चार-पांच स्वास्थ्य केंद्रों के प्रभार में है, यहां हफ्ते में कभी-कभी दिख जाती हैं।
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न सांसद का नाम जानते हैं, न ही पहचानते हैं
विलासो देवी बुढ़मू बाजार की ही निवासी हैं, चुनावी प्रक्रिया की उन्हें बहुत कुछ जानकारी नहीं है। न वर्तमान सांसद का न नाम जानती हैं, न पहचानती हैं। हा, इतना जरूर पता है कि वोट देना जरूरी है। इससे इतर वोट देने का उनका आधार क्या होगा, प्रत्याशियों में क्या देखकर वह वोट करेंगी, यह पूछने पर वह खामोश हो जाती हैं। फिर संभलते हुए कहती हैं, जिसे पूरा गांव वोट देगा, वह भी बटन दबा देंगी। सरिता उनकी बेटी है, वह पहली बार वोट देगी। वह भी अपनी मां की ही बात दोहराती है।
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