Jharkhand: तीन परिवार, तीनों में पिता की मौत, बेटियों ने दी मुखाग्नि, किया अंतिम संस्कार...
Jharkhand News Hazaribagh News घरों की बेटियों रीति-रिवाजों की दहलीज पार कर पिता को पितृऋण से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठा रही हैं। ये बेटियां न केवल अपने पिता की अर्थी को कंधा दे रही है बल्कि उन्हें मुखाग्नि देकर भी एक नई इबारत लिख रही है।
हजारीबाग, [रमण कुमार]। Jharkhand News, Hazaribagh News वर्तमान समय में कोरोना संक्रमण की सुनामी चल रही है। इस सुनामी में बडी संख्या में लोगों की संक्रमण के कारण मौत हो रही है। लोगों में कोरोना संक्रमण का खौफ इस कदर है कि संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद दूसरे की बात कौन पूछे अपने भी उसे लावारिस छोड़ कर चले जाते हैं। वहीं अचानक आई इस विपदा की घड़ी में कई घरों में पुरुष उपलब्ध नहीं रहते हैं। मृतकों का अंतिम संस्कार करनेवाला कोई नहीं होता है। ऐसे में इन घरों की बेटियों रीति-रिवाजों की दहलीज पार कर पिता को पितृऋण से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठा रही हैं। ये बेटियां न केवल अपने पिता की अर्थी को कंधा दे रही है, बल्कि उन्हें मुखाग्नि देकर भी समाज को नई सीख दे रही हैं।
पुत्र संतान से मुखाग्नि देने की रही है परंपरा
जानकारों की मानें तो सनातन परंपरा के मुताबिक किसी भी व्यक्ति के ऊपर तीन ऋण - देव ऋण, गुरु ऋण एवं पितृ ऋण होता है। वहीं लोगों को अपने इन ऋणों से मुक्ति के उपाय करने की परंपरा रही है। तीन ऋणों में पितृ ऋण से मुक्ति के लिए लोगों को उनके पुत्र संतान से मुखाग्नि देने की परंपरा रही है। लेकिन कोरोना की इस भयावह आपदा के बीच जब घर का बेटा कहीं दूर प्रदेश में फंसा हुआ है और पिता की मौत हो जाती है।
तो इस हालत में घर की बेटियों ने आगे आकर परंपरा को बदलने का कार्य किया है। बेटियां न केवल अपने माता-पिता की अर्थी को कंधा देकर श्मशान तक पहुंचाने का कार्य कर रही है, बल्कि उन्हें मुखाग्नि देकर मुक्ति दिलाने का कार्य कर रही है। इससे अब समाज में बेटों से ही मुखाग्नि दिलाने का मिथक भी टूटता नजर आ रहा है।
केस स्टडी 2 - 29 अप्रैल को शहर के डेमोटांड मोरांगी निवासी केमिकल इंजीनियर की कोरोना संक्रमण के कारण मौत होने पर उसकी अल्प वयस्क पुत्री ने पिता को मुखाग्नि देकर मुक्ति दिलाने का कार्य किया।
केस स्टडी 3 - इस कड़ी में शहर के विष्णुपुरी निवासी अधेड़ की कोरोना संक्रमण से मौत के बाद उसे मुखाग्नि देनेवाली बेटी का नाम भी जुड़ा है। लंबी होती फेरहिस्त ने एक बार फिर से परंपरा को एक नया मोड़ देने का कार्य किया है।