Covid 19 Third Wave: कोरोना की तीसरी लहर के बारे में यह खबर आप भी जानिए, कितना सच है ये दावा?
Covid 19 Third Wave कोरोना वायरस संक्रमण की तीसरी लहर में बच्चों के प्रभावित होने की आशंका जताई गई है। ऐसे में पेडियाट्रिक्स डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी होगी। पहले से ही कुपोषण की बड़ी समस्या से जूझ रहे बच्चों को आसन्न खतरे से बचाने को युद्धस्तर पर तैयारी करनी होगी।
रांची, [नीरज अम्बष्ठ]। देश के कई वैज्ञानिक और चिकित्सा विशेषज्ञ कोरोना की तीसरी लहर आने की चेतावनी दे रहे हैं। भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के. विजय राघवन ने भी सचेत करते हुए कहा है कि कोरोना वैरिएंट में बदलाव के चलते इसकी तीसरी लहर भी आएगी। कई देशों में तो कोरोना की चौथी लहर तक आ चुकी है। हालांकि देश में कोरोना की तीसरी लहर कब तक आएगी, इस पर अभी स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा गया है।
जहां तक झारखंड में इस लहर से निपटने की तैयारी की बात है तो चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, राज्य सरकार को अपने संसाधन चार से पांच गुना बढ़ाने होंगे। इसके पीछे तर्क यह दिया जाता है कि कोरोना की पहली लहर में संक्रमित मरीजों (जो अस्पतालों में इलाजरत थे या होम आइसोलेशन में थे) की संख्या 15 हजार तक ही पहुंची थी। इस बार यह संख्या 60 हजार से पार हो गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दूसरी लहर में यूके स्ट्रेन के कारण पिछली बार की अपेक्षा 70 फीसद अधिक संक्रमण फैल रहा है।
यदि इसी हिसाब से कोरोना की तीसरी लहर इससे भी खतरनाक रही तो उस लहर में संक्रमितों की संख्या 2.40 लाख तक पहुंच सकती है। ऐसे में राज्य सरकार को न केवल सभी श्रेणी के बेड बढ़ाने होंगे, बल्कि, ऑक्सीजन, जीवन रक्षक तथा कोराना के इलाज में इस्तेमाल की जानेवाली दवाइयों का पूरा स्टाॅक पहले से रखना होगा। सभी अस्पतालों में टैंक व पाइपलाइन से ऑक्सीजन की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी।
कहा जा रहा है तीसरी लहर में वयस्कों से ज्यादा बच्चों पर असर पड़ सकता है। इसकी आशंका इसलिए भी जताई जा रही है, क्योंकि पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में कम उम्र के लोग भी बड़ी संख्या में संक्रमित हुए। यदि तीसरी लहर का कोरोना बच्चों पर असर करेगा तो यह निश्चित रूप से चिंता की बात है, क्योंकि राज्य में सरकारी क्षेत्र में एक भी शिशुओं के लिए अलग अस्पताल नहीं है। निजी क्षेत्र में रांची में रानी चिल्ड्रेन अस्पताल के अलावा एक-दो अन्य ही छोटे अस्पताल शिशुओं के लिए हैं। हालांकि सरकारी क्षेत्र में 18 जिलों में स्पेशन न्यू बार्न केयर यूनिट क्रियाशील हैं, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं। राज्य के सरकारी अस्पतालों में पेडियाट्रिक्टस डॉक्टरों की भी भारी कमी है। वहीं, राज्य के बच्चों में कुपोषण की समस्या पहले से है।
जानकारों के अनुसार, काेराेना की तीसरी लहर से बचने के लिए टीकाकरण ही सबसे बड़ा हथियार हो सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर नवंबर माह में आ सकती है। यदि इतना समय भी मिलता है तो राज्य को 1.57 करोड़ बालिगों को अक्टूबर माह तक पूरी तरह प्रतिरक्षित करने के लिए रोज 95 हजार लोगों का टीकाकरण करना होगा। ऐसा तब होगा जब 15 मई से पहले इस आयु वर्ग का टीकाकरण शुरू हो जाएगा। वर्तमान में तो 20 से 25 हजार लोगों का ही टीकाकरण हो रहा है।
बेड की श्रेणी - उपलब्ध - वर्तमान में भरा हुआ - तीसरी लहर के अनुसार आवश्यकता
- सामान्य बेड 10,012 2,310 11,550
- ऑक्सीजन सपोर्ट बेड (सिलेंडर) 4,242 2,559 12,795
- ऑक्सीजन सपोर्ट बेड (पाइप लाइन) 2,770 2,327 11,635
- ऑक्सीजन सपोर्ट बेड (कंसेंट्रेटर) 1,251 696 3,480
- आइसीयू बेड (हाई फ्लो नेजल कैनुला के साथ) 494 349 1,745
- आइसीयू बेड (बीआइपीएमपी तथा सीपीएपी के साथ) 341 235 1,175
- आइसीयू बेड (वेंटिलेटर के साथ) 667 420 2,100
- आइसीयू बेड (बिना एनआइवी या वेंटिलेटर सपोर्ट) 2,406 1,115 5,575
वर्तमान में जांच क्षमता और तीसरी लहर में आवश्यकता
- वर्तमान में जांच क्षमता : 40,000 प्रतिदिन
- मई के अंत तक हो सकेगी जांच : 60,000 प्रतिदिन
- तीसरी लहर में जांच की आवश्यकता : एक लाख प्रतिदिन
राज्य सरकार वर्तमान में दूसरी लहर से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही है। साथ ही संभावित तीसरी लहर को भी ध्यान में रखकर आधारभूत संरचनाएं लगातार बढ़ाई जा रही हैं। इन आधारभूत संरचनाओं के सापेक्ष मानव बल तैयार करने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इसमें विशेषज्ञ चिकित्सकों से लेकर नर्स तक शामिल हैं। सभी बड़े अस्पतालों में अपना ऑक्सीजन प्लांट हो यह सुनिश्चित किया जा रहा है। उन कमियों की पहचान की जा रही है जिन्हें दूर करना जरूरी है। कोरोना से निपटने में हमें सभी लोगों के सहयोग की भी आवश्यकता है। लोग कोविड प्रोटोकॉल का अनिवार्य रूप से पालन करें। टीकाकरण जरूर कराएं। अरुण कुमार सिंह, विकास आयुक्त सह अपर मुख्य सचिव, स्वास्थ्य विभाग, झारखंड सरकार।
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में टीकाकरण ही सबसे बड़ा हथियार होगा। यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि दोनों डोज का टीका लेनेवालों का संक्रमण बहुत कम हुआ। जो संक्रमित भी हुए उन्हें अपनी जान गंवानी नहीं पड़ी। ऐसे लोगों में मृत्यु दर 0.02 फीसद ही रही है। पहली लहर के बाद सरकार और हम दोनों ओवर रिलैक्स हो गए थे। इस बार ऐसा न हो। अब ऑक्सीजन को लेकर भगदड़ न हो इसे लेकर सभी अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगना चाहिए। डा. अजय कुमार सिंह, वरिष्ठ चिकित्सक सह आइएमए के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष।
सरकार को दूसरी लहर से बहुत कुछ सीख मिली होगी। राज्य में लगातार सभी श्रेणी के बेड बढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन डॉक्टरों और पारा मेडिकल कर्मियों की नियुक्ति पर भी काम करना होगा। खासकर शिशु रोग विशेषज्ञों की, क्योंकि कहा जा रहा है कि तीसरी लहर में बच्चे भी अधिक प्रभावित होंगे। उनके अनुसार, तीसरी लहर में कम से कम नुकसान हो इसके लिए युद्ध स्तर पर अभी से ही काम करना होगा। डा. एके सिंह, अध्यक्ष, आइएमए, झारखंड
पिछले साल जब कोरोना का मामला सबसे पहले सामने आया था तब उस समय झारखंड में कोरोना जांच की कोई व्यवस्था नहीं थी। शुरू में जांच के लिए सैंपल कोलकाता और भुवनेश्वर भेजे जा रहे थे, लेकिन अब राज्य में ही प्रतिदिन 35 से 40 हजार सैंपल की जांच की क्षमता हो गई है। जांच की रफ्तार बढ़ाने के लिए और भी लैब स्थापित करने की तैयारी चल रही है। अगले माह तक लैब के संचालन शुरू हो जाने से लगभग 60 हजार सैंपल की जांच प्रतिदिन हो सकेगी।
राज्य सरकार ने रांची के रिम्स तथा दुमका स्थित फूलो झानो मेडिकल कॉलेज में कोबास मशीनें लगाने के लिए रोचे कंपनी को वर्क आर्डर जारी कर दिया है। इस मशीन के माध्यम से प्रत्येक दिन 1,344-1344 सैंपल की जांच हो सकेगी। दोनों मशीनों को लगाने पर 8.73 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। वहीं, राज्य के सात जिलों रांची, जमशेदपुर, बोकारो, चाईबासा, गुमला, देवघर व गोड्डा में कोरोना की आरटी-पीसीआर जांच के लिए एक-एक लैब की स्थापना का काम शुरू कर दिया गया है। ये सभी लैब चालू हो जाने से प्रत्येक में दो हजार सैंपल की जांच प्रतिदिन हो सकेगी।
हालांकि जानकारों का कहना है कि कोरोना पर काबू पाने के लिए अधिक से अधिक जांच जरूरी है। जांच में झारखंड अभी भी कई राज्यों से पीछे है। वर्तमान में जांच की रफ्तार बढ़ाने के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट से जांच का अभियान चलाया जाता है। लेकिन, राज्य सरकार को तीसरी लहर के लिए भी तैयार रहना होगा। राज्य में प्रतिदिन कम से कम एक लाख सैंपल जांच की क्षमता विकसित करनी चाहिए। बता दें कि राज्य में वर्तमान में सरकारी क्षेत्र में आठ आरटी-पीसीआर लैब है, जबकि सभी सदर अस्पतालों व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ट्रूनेट मशीनें लगाई गई हैं। राज्य में 15 निजी लैब में भी कोरोना की जांच हो रही है।
हाल के दिनों में जांच में तेजी आने से बैकलॉग सैंपल में कमी आई है। एक समय 37 हजार सैंपल जांच के लिए लंबित हो गए थे। अब यह घटकर लगभग 16 हजार तक पहुंच गई है। इसके बावजूद इतनी बड़ी संख्या में सैंपल लंबित रहना ठीक नहीं कहा जा सकता। रांची में देर से रिपोर्ट की समस्या अब भी बनी हुई है। रिपोर्ट आने में चार से पांच दिन लग जा रहे हैं।
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58,55,874 सैंपल की जांच 31 मार्च 2021 तक राज्य में हुई थी। -
एक माह बाद यह संख्या बढ़कर 71,04,274 हो गई है। -
इस तरह लगभग एक माह में 12,48,400 लोगों की जांच हुई। -
10 लाख की आबादी पर 1,56,561 लोगों की जांच राज्य में 31 मार्च 2021 तक हुई थी। -
अबतक इतनी आबादी पर 1,89,856 लोगों की कोरोना जांच हो चुकी है।