झारखंड में विकास की संभावनाएं, यूपी का चार राज्यों में विभाजन जरूरी: जयराम रमेश
छोटे राज्यों की वकालत करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि छोटे राज्य देश के लिए जरूरी हैं। झारखंड छोटा राज्य है, इसलिए यहां तेजी से विकास की संभावनाएं हैं।
जागरण संवाददाता, रांची। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने रविवार को चैंबर भवन में अपनी नई पुस्तक 'इंटरट्वाइंड लाइव्स पीएन हक्सर एंड इंदिरा गांधी' पर बात की। बात छिड़ी तो किताब से लेकर राजनीति और राजनेताओं और सत्ता के गलियारे तक पहुंची। रांची के चैंबर भवन में पूरे सवा दो घंटे तक किताब पर बातचीत का यह क्रम चला। छोटे राज्यों की वकालत करते हुए जयराम रमेश ने कहा कि छोटे राज्य देश के लिए जरूरी हैं। झारखंड छोटा राज्य है, इसलिए यहां तेजी से विकास की संभावनाएं हैं। बड़े राज्यों को संभालना अपेक्षाकृत मुश्किल होता है। इसी आधार पर उन्होंने उत्तर प्रदेश को कई छोटे-छोटे चार राज्यों में बांटने की भी वकालत की।
उन्होंने कहा कि यूपी की आबादी अभी 22 करोड़ है। 25 साल बाद 40 करोड़ हो जाएगी। कैसे करेंगे विकास? इसलिए उत्तर प्रदेश का विकास करना है तो उसमें चार नए राज्य बनाए जाने चाहिए। तभी यूपी का विकास हो सकता है। राष्ट्रीय चुनाव के साथ राज्यों के चुनाव के सवाल पर कहा कि यदि ऐसा हुआ तो झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव राष्ट्रीय चुनाव के साथ संभव हैं। यहां भाजपा की सरकार है, लेकिन अभी कुछ कहना संभव नहीं है। पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश से किताब पर बातचीत एंथोनी कर रहे थे। इस दौरान जयराम ने किताब से लेकर पर्यावरण, सारंडा, विकास और चुनावों तक पर अपनी बेबाक राय रखी। वह पाकिस्तान में नई सरकार पर भी बोले।
झारखंड में सिंचाई का काम सबसे महत्वपूर्ण
बातचीत के क्रम में एक श्रोता ने उनसे सवाल किया गया कि यदि आपको 10 साल के लिए झारखंड का सीएम बना दिया जाए तो पहला काम क्या करेंगे? जयराम ने अपने अंदाज में कहा कि पहले तो सीएम बनना संभव नहीं। यदि बना भी तो सबसे पहला काम यहां हर खेत तक पानी पहुंचाने का काम करेंगे। झारखंड में 2009 में जब सारंडा आदि क्षेत्रों का दौरा किया तो यहां मात्र आठ फीसद ही सिंचाई होती थी। दूसरे प्रदेशों में यह प्रतिशत काफी ज्यादा है। यहां अभी भी लोग बारिश पर निर्भर हैं। इस कारण सबसे पहला काम यही होगा कि सिंचाई की व्यवस्था हो। छोटे-छोटे बांध बनें। किसान यहां एक फसल पर निर्भर न रहे। दो फसल और तीन फसल अपनी खेतों से ले। पर्यावरण और विकास के सवाल पर कहा कि दोनों के बीच संतुलन होना चाहिए। ये रथ के दो पहिए हैं। उन्होंने झारखंड के सारंडा प्लान की तारीफ की। कहा कि उस समय मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व सुदेश महतो तीनों एक मंच पर आए थे। यह भी जोड़ा कि जब मंत्री था, तब यहां हर महीने आता था। हमारा लक्ष्य यहां का विकास था।
पीएन हक्सर को छोड़ संजय गांधी की बात मानने के कारण इंदिरा गांधी के बुरे दिन हुए शुरू
किताब पर चर्चा करते हुए जयराम ने बहुत साफगोई से कहा कि जब तक इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीएन हक्सर इंदिराजी के कार्यकाल के दौरान प्रमुख रणनीतिकारों में थे। हक्सर नेहरू परिवार से बहुत पहले से जुडे़ थे। जब तक इंदिरा उनके अनुसार चल रही थीं तब तक जीत रही थीं लेकिन जब उन्होंने अपने पुत्र संजय गांधी की बातें मानकर हक्सर से किनारा करना आरंभ कर दिया तो उनके बुरे दिन आरंभ हो गए।जयराम ने कहा कि इंदिरा गांधी के जो भी उस समय के फैसले रहे, उनमें हक्सर की भूमिका रही। 1971 की लड़ाई, रूस के साथ संधि, शिमला समझौता और भारत के पहले परमाणु परीक्षण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण आदि में उनकी बड़ी भूमिका रही। हक्सर और इंदिरा के बीच खटास तब हुई, जब संजय गांधी मारूति की फैक्ट्री लगाना चाहते थे। हक्सर ने इंदिरा से कहा कि यह ठीक कदम नहीं। प्रधानमंत्री के घर से बिजनेस का काम नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ब्यूरोक्रेट्स हवा की दिशा देख अपनी बात रखते हैं, लेकिन हक्सर ऐसे नहीं थे।
आदिवासियों को सशक्तबनाने की जरूरत
विस्थापन, विकास के सवाल पर कहा कि दलितों का सशक्तीकरण हो गया है। वे राजनीतिक तौर पर भी सशक्त हो गए हैं, लेकिन आदिवासियों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। आदिवासियों को अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। आज जहां-जहां विस्थापन-पुनर्वास की समस्या है, वहां माओवादी हैं। आदिवासियों की समस्या को दूर करना होगा। सारंडा प्लान यही था। उन्होंने कहा कि यहां सिर्फ माइनिंग पर जोर है, जबकि इसके अलावा भी यहां बहुत कुछ हो सकता है। यहां शिक्षा का हब बनाया जा सकता है
अटलजी थे अजातशत्रु
अटल बिहारी वाजपेयी का सवाल आया तो कहा कि अटलजी अजातशत्रु थे। उस समय संसद में दो ही ऐसे व्यक्ति थे, जिनका सम्मान पूरा सदन करता था, अटलजी और चंद्रशेखरजी। उनकी बोली में मधुरता थी।
बायोग्राफी की कमी
उन्होंने कहा कि अपने देश में बायोग्राफी की कमी है। हमारे यहां श्रुति और स्मृति के आधार पर काफी रचनाएं की गई हैं। यही परंपरा रही है। बायोग्राफी के लिए तथ्य चाहिए, लिखित सबूत चाहिए। अपनी अगली किताब के बारे में कहा कि नेहरू की जीवनी लिखना चाहता हूं आज के संदर्भ में। इस मौके पर चैंबर अध्यक्ष रंजीत गाड़ोदिया, अरुण बुधिया, असीत कुमार, दैनिक जागरण के वरीय महाप्रबंधक मनोज गुप्ता, डॉ.विनय भरत, प्रदीप जैन, सुबोध गुप्ता, संजय बसु मलिक, हरीश्वर दयाल, लॉ यूनिवर्सिटी के छात्र आदि मौजूद थे।