Jharkhand: पैसे की तकरार, आर्थिक मोर्चे की चुनौती बरकरार
झारखंड राज्य के लिए पिछला पखवारा खासा उथल-पुथल भरा रहा है। कोरोना से जंग के बेहतर परिणाम दिखने शुरू हुए तो आर्थिक हितों को लेकर केंद्र से टकराव तल्खी की हद तक पहुंच गया। झारखंड में कोरोना से उबरने का रिकवरी रेट 92 प्रतिशत से अधिक रहा है...
रांची (आनंद मिश्र) । झारखंड राज्य के लिए पिछला पखवारा खासा उथल-पुथल भरा रहा है। कोरोना से जंग के बेहतर परिणाम दिखने शुरू हुए तो आर्थिक हितों को लेकर केंद्र से टकराव तल्खी की हद तक पहुंच गया। झारखंड में कोरोना से उबरने का रिकवरी रेट 92 प्रतिशत से अधिक रहा है, जो कि राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है। लेकिन इस सुखद उपलब्धि से कहीं अधिक चर्चा केंद्र व राज्य के बीच के टकराव की रही। झारखंड में दो सीटों (दुमका और बेरमो) के लिए हो रहे उपचुनाव के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति भी चरम पर पहुंचती दिख रही है।
कोरोना संक्रमण काल में राज्य के आर्थिक हालात अच्छे नहीं हैं। इस बीच केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने डीवीसी के बकाया की कटौती किश्तों में शुरू कर दी है। पहली किश्त के रूप में 1417 करोड़ की राशि राज्य सरकार के रिजर्व बैंक के खाते से काट ली गई है। यह मुद्दा पूरे राज्य में गरम है। सत्ता पक्ष इस मसले को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर है तो पलटवार भाजपा के स्तर से भी किया जा रहा है। राज्य सरकार ने जीएसटी के मद में बकाया का मसला उठाने के साथ ही तमाम पिछले बकाया का मामला उठाया है।
जीएसटी पर केंद्र के स्तर से सुझाए गए फार्मूले को झारखंड ने पहले ही नकार दिया है। झारखंड सरकार की आर्थिक मोर्चे की चुनौती बढ़ती जा रही है। मुश्किल हालातों मेंं विकास के तमाम कार्य लगभग ठप हो गए हैं। छह माह में 20 फीसद की राशि विकास योजनाओं पर व्यय हो सकी है। उम्मीद के विपरीत आय के तमाम स्रोतों से नकारात्मक परिणाम दे रहे हैं। पैसा हैं नहीं और जनता की अपेक्षाएं दम तोड़ रहीं हैं।
जीएसटी का बकाया 2964.93 करोड़, इस वित्तीय वर्ष अब तक मिले महज 318.89 करोड़
जीएसटी कंपनशेसन (क्षतिपूर्ति) को लेकर झारखंड और केंद्र सरकार आमने-सामने हैं। क्षतिपूर्ति के लिए केंद्र के कर्ज लेने के सुझाव को झारखंड सरकार ने ठुकरा दिया है। झारखंड को जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में अब तक महज 318.89 करोड़ हासिल हुए हैं और बकाया बढ़कर 2964.93 करोड़ हो गया है। केंद्र व राज्य के बीच तय पूर्व के फार्मूले के हिसाब से राज्य को हर माह होने वाले घाटे की भरपाई कंपनशेसन के एवज में की जानी है। इस वित्तीय वर्ष के लिए प्रोटेक्टेड रेवन्यु 1028 करोड़ है लेकिन इसका पचास फीसद भी राजस्व संग्रह नहीं हुआ है। राज्य सरकार शेष बकाए के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बना रहीं है।
इस वित्तीय वर्ष जीएसटी क्षतिपूर्ति की स्थिति (राशि करोड़ रुपये में)
माह जीएसटी संग्रह प्रोटेक्टेड रेवन्यु रेवन्यु गैप
अप्रैल 133.22 1028.00 894.78
मई 349.5 1028.00 678.50
जून 553.25 1028.00 474.75
जुलाई 589.82 1028.00 438.08
अगस्त 596.53 1028.00 431.47
सितंबर 652.46 1028.00 375.54
कुल 2874.88 6168.00 3293.12
अप्रैल-मई का कंपनशेसन मिला 318.89
कुल बकाया 2964.93
पैसा हैं नहीं और जनता की अपेक्षाएं दम तोड़ रहीं
झारखंड सरकार का अपने संसाधनों से बेड़ा पार नहीं होगा यह तय है। राज्य सरकार की अपने संसाधनों से होने वाली आय कुल बजट आउटे का महज 20-25 फीसद तक सीमित है। कोयला को छोड़कर माइनिंग लगभग ठप है, इससे गैर कर राजस्व से होने वाली आय के स्रोत भी थम गए हैं। झारखंड को केंद्रीय करों में मिलने वाली हिस्सेदारी की राशि में भी कटौती की गई है, जिसका असर भी दिख रहा है। इस वित्तीय वर्ष के शुरुआती महीनोंं में औसतन 1550 करोड़ झारखंड को हासिल हो रहे थे जो अब घटकर 1390 करोड़ प्रतिमाह रह गए हैं। माना जा रहा है कि इस वित्तीय वर्ष के लिए यह कटौती करीब नौ हजार करोड़ तक की हो सकती है। पैसा हैं नहीं और जनता की अपेक्षाएं दम तोड़ रहीं हैं।
खुद का वित्तीय बोझ भी कम नहीं
आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहीं झारखंड सरकार सीमित आमद में विकास योजनाओं को अंजाम दे या वेतन इत्यादि के मद में होने वाले आवश्यक खर्च को देखें इसे लेकर व्यूतक्रमानुपाती स्थिति पैदा हो गई है। सीमित आय का व्यय यदि जनकल्याण की विकास योजनाओं पर होगा तो सरकारी कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ सकते हैं। बता दें कि प्रति माह वेतन के मद में करीब 1200 करोड़, पेंशन के मद में 500 करोड़ और ऋण चुकाने के मद में 450 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। 2150 करोड़ का यह खर्च ही फिलहाल भारी पड़ रहा है। जाहिर है विकास योजनाएं दम तोड़ेंगी ही।
20 फीसद के दायरे में रहा योजना मद का व्यय
झारखंड सरकार के पिछली दो तिमाही के बजट व्यय को एक नजर देखने से बहुत कुछ स्थिति स्पष्ट हो जाती है। पैसा है नहीं तो खर्च कहां से हो। 20 सितंबर तक योजना मद का कुल व्यय 19-20 फीसद के दायरे में रहा। योजना मद के कुल बजट 48,924.96 करोड़ में से छह माह में महज 9618 करोड़ रुपये ही व्यय हो सके। ग्रामीण विकास और गृह एवं आपदा प्रबंधन जैसे कुछ अहम विभागों को छोड़ दिया किसी विभाग ने योजना मद में न के बराबर राशि व्यय की। ग्रामीण विकास ने सर्वाधिक 33.47 फीसद (3595.90 करोड़) की राशि व्यय की। कृषि जैसे अहम महकमे का व्यय महज पांच करोड़ के दायरे में सिमटा रहा।
20 सितंबर तक किस विभाग में कितना खर्च (करोड़ रुपये में)
विभाग बजटीय प्रावधान व्यय प्रतिशत
कृषि, पशुपालन 3362.78 3.96 0.12
भवन निर्माण 628.00 10.72 1.71
वाणिज्यकर 10.00 0.00 0.00
पेयजल एवं स्वच्छता 2906.20 410.50 14.12
ऊर्जा 3900.00 438.08 11.23
उत्पाद 10.00 0.00 0.00
खाद्य आपूर्ति 1514.87 348.77 23.02
वन एवं पर्यावरण 550.00 35.49 6.45
स्वास्थ्य 3022.89 708.02 23.42
उच्च शिक्षा 862.44 87.59 10.16
गृह कारा, आपदा 797.68 354.99 44.50
उद्योग 268.00 0.41 0.15
खान एवं भूतत्व 35.00 0.62 1.77
सूचना प्रौद्योगिकी 180.00 12.87 7.15
सूचना जनसंपर्क 39.00 3.55 9.10
श्रम नियोजन 427.06 10.14 2.37
कार्मिक 10.00 0.00 0.00
योजना सह वित्त 144.53 3.71 2.57
राजस्व एवं भूमि सुधार 189.00 10.96 5.80
पथ निर्माण 3384.00 412.60 12.19
ग्रामीण विकास 10744.71 3595.90 33.47
स्कूली शिक्षा 5410.55 1130.82 20.90
पर्यटन, खेल 320.00 3.01 0.94
परिवहन 410.00 1.85 0.45
नगर विकास 2422.05 450.76 18.61
जल संसाधन 1018.65 3.90 0.38
कल्याण 1718.00 6.50 0.38
महिला एवं बाल विकास 4639.54 1572.67 33.90
कुल 48,924.96 1572.67 19.66
नोट : बजटीय प्रावधान और व्यय का ब्योरा सिर्फ योजना मद का है।