इस पार्टी में शिकायत करना संस्कार है, जो जीता वही सिकंदर... पढ़ें सियासत की कही-अनकही
Political Gossip. शिकायत तो यह भी कर दी कि जिन्हें मंत्री बना दिया गया है उनका व्यवहार अफसरों जैसा है। इस शिकायत से सभी सकते में हैं।
रांची, [आशीष झा]। छोटे नवाब ने एक बार फिर बड़ी छलांग लगाई है और इस बार अपने बॉस को ही कटघरे में उतार दिया है। पार्टी में और पार्टी के बाहर उन्हें कोई सीरियसली नहीं लेता है और यही कारण है कि छोटे नवाब ने बड़े समय पर बॉस का काम लगाया। प्रदेश के सुपर बॉस को बता दिया कि किस तरह हाथ वाली पार्टी काम कर रही है और यह भी जता दिया जिसे कमान दी गई है उसके हाथ में अब कुछ नहीं रहा। शिकायत तो यह भी कर दी कि जिन्हें मंत्री बना दिया गया है उनका व्यवहार अफसरों जैसा है। इस शिकायत से सभी सकते में हैं। आखिर ऐसी ही शिकायत के बाद पिछले कप्तान निकाले गए थे। इतनी परेशानी हुई कि अंत में पार्टी छोड़ दी। खैर, इस पार्टी में शिकायतों का एक संस्कार है और जो जीता वही सिकंदर।
यह आराम का मामला है
मुख्य सचिव के आदेश पर सोमवार से तमाम सरकारी दफ्तर खुल गए हैं लेकिन कई लोगों को यह निर्णय रास नहीं आ रहा है। दूसरी ओर उन्हीं की बिरादरी के कई लोग अपने दफ्तर में दिन-रात काम कर इस लॉक डाउन अवधि में भी सरकार का झंडा बुलंद किए हुए थे। पहले से काम कर रहे लोगों को आराम करने वाले पसंद नहीं आ रहे थे और अब काम पढ़ाने वाले लोग उन लोगों को कोस रहे हैं जो इस निर्णय के पीछे हैं। यह सब तो चलता ही रहेगा। कल तक जो लोग सैनिटाइजेशन की बात कर निर्णय पर सवाल उठा रहे थे वही सोमवार को कह रहे थे कि कहीं ना कहीं आराम का मामला था। जो भी हो, बाबुओं की लड़ाई में कौन पड़े। जब जिधर ढलान हुआ उधर निकल पडऩा इनकी फितरत है। भगवान ऐसे लोगों से बचाए।
पावर-पावर की बात है
भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे को चिढ़ाने में कभी पीछे नहीं रहने वाली। फिलहाल कांग्रेसी चिढ़े हुए हैं। फिक्र इस बात की है कि पार्टी सत्ता में होने के बावजूद बाहर से दो लोगों को भी नहीं बुला पा रही है जबकि भाजपा के दो सांसद अपनी गाडिय़ों से चले आए। रिस्क लेने में कांग्रेसी भी कम नहीं लेकिन कहीं ना कहीं डर है कि दिल्ली पार करने के बाद उत्तर प्रदेश में रोक लिए गए तो बड़ी फजीहत होगी। हम तो कहेंगे कि दो सांसदों के बदले दो मजदूरों को बुलाने की जिद छोड़कर देखे तो कांग्रेस का ही पलड़ा भारी है। लोग अभी भूले नहीं हैं कि कैसे आप लोगों ने बसों में ठूंस ठूंस कर मज़दूरों को कहां-कहां नहीं पहुंचाया था। इस तरह देखें तो अब तक संख्या के हिसाब से कांग्रेस का पलड़ा भारी है।
खलिहान छोड़ शहर आए बादल
बादल और खेत खलिहान का पुराना रिश्ता है। एक दूसरे पर आश्रित भी हैं। अपने झारखंड के बादल का रिश्ता भी सीधे तौर पर खेतों से ही है। राज्य के कृषि मंत्री जो ठहरे। हालांकि इन दिनों मंत्री जी खेत और खलिहान छोड़कर कई दिनों से शहर में डेरा डाले हुए। लोग जो भी कहें, कांग्रेसी तो इसे जस्टिफाई ही करते हैं। भाजपा के एक भैया ने फेसबुक पर शिकायत की कि कांग्रेस की बैठकों में कभी शारीरिक दूरी का ख्याल नहीं रखा जाता। लड़ाई छिड़ी तो कांग्रेसी ने ही बता दिया कि आप तो दफ्तर भी नहीं खोल रहे तो फिर क्या जाने लोगों का दर्द। अरे अभी बताया कि बादल शहर में इसलिए हैं कि यहां पर आसानी से लोगों की शिकायतें मिल जाती हैं और त्वरित निष्पादन भी हो रहा है। दोनों की लड़ाई अभी खूब चलेगी, यहां चुपचाप तमाशा देखते रहिए।