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ओल की व्यावसायिक खेती किसानों की आजीविका का बना साधन

ओल की खेती आदिवासी किसानों की आजीविका का महत्त्वपूर्ण साधन बन गया है। इसमें बिरसा कृषि विवि का भरपूर सहयोग मिल रहा है। वर्ष 2016 से नगड़ी प्रखंड के चिपरा एवं कुदलोंग गांव में फामर्स फर्स्ट प्रोग्राम चलाया जा रहा है।

By Vikram GiriEdited By: Published: Sun, 09 May 2021 07:21 AM (IST)Updated: Sun, 09 May 2021 07:21 AM (IST)
ओल की व्यावसायिक खेती किसानों की आजीविका का बना साधन
ओल की व्यावसायिक खेती किसानों की आजीविका का बना साधन। जागरण

रांची/तुपुदाना, जासं । ओल की खेती आदिवासी किसानों की आजीविका का महत्त्वपूर्ण साधन बन गया है। इसमें बिरसा कृषि विवि का भरपूर सहयोग मिल रहा है। वर्ष 2016 से नगड़ी प्रखंड के चिपरा एवं कुदलोंग गांव में फामर्स फर्स्ट प्रोग्राम चलाया जा रहा है। मुख्य परियोजना प्रभारी डा् निभा बाड़ा ने बताया कि वर्ष 2016 में परियोजना अधीन सर्वे में विज्ञानियों ने पाया कि दोनों गांव के आदिवासी किसान सीमित क्षेत्र में गैर व्यावसायिक तरीके से ओल की खेती करते थे। वे कुंआ, नाला व बाड़ी में दो-चार ओल के पौधे लगाते थे।

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विज्ञानी डा. अरुण कुमार तिवारी व शोधार्थी आलोका बागे ने गांव के आदिवासी किसानों के बीच उन्नत तकनीक से ओल की खेती पर जागरूकता अभियान चलाया। ओल की उन्नत किस्म गजेन्द्र की खेती से लाभ की जानकारी दी। देशी किस्म व परंपरागत खेती की अपेक्षा उन्नत किस्म गजेन्द्र की व्यावसायिक खेती के लाभों के बारे में बताया। विज्ञानी का यह प्रयास रंग लाया। गांव के झारी उरांव, करमचंद उरांव, बैद्यनाथ उरांव, राजेन्द्र महतो, भुबनेश्वर महतो, पंचम महतो, देवेन्द्र महतो, सुरेन्द्र महतो सहित 40 से अधिक आदिवासी किसानों ने ओल की व्यावसायिक खेती करने लगे।

हाजीपुर से मंगाया गया ओल की किस्म

परियोजना के तहत हाजीपुर (बिहार) से गजेन्द्र ओल किस्म को मंगाकर दोनों गांव के कुल 40 किसानों को ओल की खेती से जोडा गया। प्रत्येक किसान के करीब 12 -12 डिसमील भूमि सहित कुल करीब पांच एकड़ भूमि में अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण कराया गया। इस प्रत्यक्षण में ओल के साथ अंतरवर्ती/सहायक फसल के रूप में फ्रेंचबीन की खेती को बढ़ावा दिया गया। किसानों ने अंतरवर्ती फसल के साथ या एकल फसल तकनीक से दोनों वर्ष मई माह में ओल की खेती की। करीब 289 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से ओल की उपज किसानों को मिला। किसानों ने ओल को स्थानीय बाजार में थोक भाव में करीब 18 रूपये प्रति किलो की दर से बेचा। ओल की खेती से औसतन 5,20,200 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से आय हुई। सहायक फसल बोदी से भी किसानों को करीब 20000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से आमदनी हुई।

तीन गुना अधिक उपज मिला

किसान झारी उरांव बताते है कि गांव के लोग खेत-बाड़ी में ओल को उपजाकर पारिवारिक उपयोग में लाते थे। अब इससे अच्छा लाभ मिल रहा है।

किसान देवेन्द्र महतो बताते है कि देशी ओल की तुलना में किसानों को गजेन्द्र ओल किस्म से करीब तीन गुना अधिक उपज मिला। इसकी खेती में अंतरवर्ती फसल के रूप में बोदी, फ्रेंचबीन, करेला व पोय साग को कतारों के बीच खाली जमीन में खेती से भी बढ़िया आय संभव है। स्थानीय बाजार में उनके उत्पाद आसानी से बिक रहे है।


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