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जब नक्‍सली की जान बचाने के लिए आठ किमी तक पैदल चले कमांडो, तीन जवानों ने दिया खून

सीआरपीएफ और नक्‍सलियों के बीच हुई सीधी गोलीबारी में एक नक्‍सली गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस नक्‍सली की जान बचाने के लिए सीआरपीएफ के जवान ने अपना खून तक दिया।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 05 Feb 2019 05:08 PM (IST)Updated: Tue, 05 Feb 2019 05:08 PM (IST)
जब नक्‍सली की जान बचाने के लिए आठ किमी तक पैदल चले कमांडो, तीन जवानों ने दिया खून
जब नक्‍सली की जान बचाने के लिए आठ किमी तक पैदल चले कमांडो, तीन जवानों ने दिया खून

नई दिल्ली। झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में आए दिन नक्सली मुठभेड़ की खबरें सामने आती रहती हैं। आज हम आपको जो खबर बताने जा रहे हैं उसके बाद आपका सम्मान सुरक्षा बलों के प्रति और भी बढ़ जाएगा। मानवता की रक्षा में हमारी सेना और सुरक्षाबल हमेशा आगे रहे हैं। इसकी ही एक मिसाल झारखंड में उस वक्‍त देखने को मिली जब एक एनकाउंटर में घायल हुए नक्‍सली को बचाने के लिए सीआरपीएफ के तीन जवान सामने आए। उन्‍होेंने इस नक्‍सली की न सिर्फ खून देकर जान बचाई बल्कि मानवता के लिए एक मिसाल भी कायम की।

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दरअसल, कोबरा बटालियन और नक्‍सलियों के बीच हुई सीधी गोलीबारी में एक नक्‍सली गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस नक्‍स‍ली को सुरक्षाबलों ने एनकाउंटर स्थल से निकालकर रांची के राजेंद्र इंस्टिट्यूट मेडिकल साइंसेज (RIMS) में भर्ती कराया। घायल नक्सली को जब तक अस्पताल में भर्ती कराया गया उसका काफी खून बह चुका था। उसको तुरंत खून चढाने की ज़रूरत थी। जब सीआरपीएफ को इस बात की जानकारी मिली तो कांस्टेबल रतन मंजुलकर, समेत परविंदर और मेहबूब पीरा ने मानवता की मिसाल पेश करते हुए नक्‍सली के लिए रक्तदान करने का फैसला किया। राजकमल कोबरा बटालियन से संबंधित हैं, जबकि घायल नक्‍सली का नाम लिंगा सोडी है। आपको बता दें कि लिंगा की जान बचाने के लिए जवान करीब आठ किमी तक उसको अपनी पीठ पर पैदल लेकर चले थे। एनकाउंटर साइट से दूर उसको पहले सीआरपीएफ का बेस अस्‍पताल लाया गया फिर यहां से उसको एयरफोर्स के हेलीकॉप्‍टर से तुरंत जगदलपुर के सरकारी अस्‍पताल पहुंचाया गया।  

कांस्‍टेबल राजकमल ने उस नक्सली की जान बचाई, जो सीआरपीएफ के जवानो का खून का प्यासा था। लिंगा और उसके कॉमरेड ने सुरक्षाबलों की टुकड़ी पर आईईडी ब्‍लास्‍ट के जरिए हमला बोला था। इसके बाद इन्‍होंने बटालियन के जवानों पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी थी। यह पूरी घटना 18 जनवरी की है। बटालियन को कोरसेरमेटा, हिदांपरा और गोटपल्‍ली के घने जंगल में नक्‍सलियों के छिपे होने की जानकारी मिली थी। इसके बाद  बटालियन ने इन्‍हें खत्‍म करने की मंशा से जंगल में प्रवेश किया था, जहां उनपर आईईडी से हमला किया गया। 

यह पहला मौका नहीं है इसके पहले भी सीआरपीएफ ने किसी दुश्मन की जान बचाई है। इसके पहले पिछले साल 8 फरवरी को पलामू में एक महिला नक्सली मंजू बैगा एनकाउंटर में घायल हो गई थी। घायल नक्सली को सीआरपीएफ ने घटनास्थल से निकाल अस्पताल में भर्ती कराया था। इस महिला नक्सली को सीआरपीएफ के कांस्टेबल गुलज़ार ने खून दिया था। सीआरपीएफ जवानों द्वारा उठाया यह कदम अभूतपूर्व है, जिसकी हर कोई तारीफ करता है। कांस्टेबल राजकमल के इस कदम की सराहना करते हुए झारखण्ड सेक्टर के आईजीपी संजय आनंद लाठकर ने पुरस्कृत भी किया है। 

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