जेल में बंदियों के बच्चे सीख रहे ए, बी, सी.. गढ़ा जा रहा भविष्य
ऐसे मासूम जिनकी समझ के परे है दुनियादारी। जिन्हें ये शायद ही पता हो दुनिया क्या होती है।
श्रद्धा छेत्री, रांची: ऐसे मासूम जिनकी समझ के परे है दुनियादारी। जिन्हें ये शायद ही पता हो कि जेल की चार दीवारी के आगे भी एक दुनिया है। कई बच्चों ने तो दूध पीना छोड़ा भी नहीं था कि आ गए मां के साथ सजा काटने। मां के दूध से रिश्ता ऐसा कि बच्चे को खींच लाई सलाखें। होटवार स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारावास में नौनिहालों को सामान्य जिदगी दी जा रही है। उनका भी लालन-पोषण बाहरी दुनिया के सामान्य बच्चों की तरह ही होता है। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए प्ले स्कूल खोला गया है। जेल में रह रहे नन्हें बच्चों को ग्रेजुएट महिला बंदी पढ़ाती हैं। बच्चों के लिए प्ले स्कूल का माहौल दिया जाता है। 6 साल की उम्र तक बच्चों की पूरी तरह से देख-भाल की जाती है। 6 साल के बाद बच्चों घर भेज दिया जाता है। ऐसे बच्चे जिनका बाहर अपना कोई नहीं है उनके लालन-पालन की जिम्मेदारी बाल कल्याण विभाग (सीडब्ल्यूसी) को सौंप दी जाती है। सीडब्ल्यूसी ही बच्चों के रहने-खाने व पढ़ने की जिम्मेदारी उठाता है। कुछ दिन पहले ही बच्चों को चाइल्ड लाइन भेजा गया है।
कोई 1 साल की उम्र में आया तो कोई 2 साल की उम्र मे: बिरसा मुंडा केंद्रीय कारावास, होटवार के जेल अधीक्षक हामिद अख्तर बताते हैं कि जेल के अंदर बच्चों को 6 साल के होने तक रखा जाता है। अभी यहां कुल 11 बच्चे मौजूद हैं। जिनमें 9 लड़कियां व 2 लड़के शामिल हैं। जेल के अंदर पल रहे बच्चों को बाहर के सामान्य बच्चों की तरह सारी सुख-सुविधाएं देने की कोशिश की जाती है। खाने-पढ़ने व चिकित्सा की सुविधा भी उन्हें मुहैया कराई जाती है।
बच्चों के लिए बना है क्रेच : जेल अधीक्षक ने बताया कि बच्चों की देख-भाल के लिए जेल परिसर में क्रेच की व्यवस्था की गई है। यहां सुबह से लेकर शाम तक बच्चों की देख-भाल की जाती है। दिन भर बच्चों को रखने के बाद बच्चों को अपनी मां को सौंप दिया जाता है। बच्चों के लिए पौष्टिक आहार की पूरी व्यवस्था की गई है। रोज एक फल और दूध दिया जाता है। इसके अलावा जेल परिसर में एक पार्क बनाया गया है। जहां बच्चों के लिए खेल-कूद की व्यवस्था की जाती है। पार्क में झूले भी लगे है। हफ्ते में एक बार बच्चों को पार्क लेकर जाया जाता है।