Move to Jagran APP

कानून के बाद भी नहीं रुक रहा बाल श्रम

रांची : बाल श्रम इन दिनों नासूर बनता जा रहा है। नियंत्रण के लिए बने कानून के बाद भी बच्चे बाल श्रम क

By JagranEdited By: Published: Tue, 12 Jun 2018 09:27 AM (IST)Updated: Tue, 12 Jun 2018 09:27 AM (IST)
कानून के बाद भी नहीं रुक रहा बाल श्रम
कानून के बाद भी नहीं रुक रहा बाल श्रम

रांची : बाल श्रम इन दिनों नासूर बनता जा रहा है। नियंत्रण के लिए बने कानून के बाद भी बच्चे बाल श्रम करते दिख जाते हैं। चाहे हम लोग होटलों की बात करें या फैक्ट्रियों की या फिर बड़े-छोटे संस्थानों की। इसके विरोध में और इसे रोकने को लेकर आम जनों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 12 जून को बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। जानकारों के अनुसार बाल श्रम निषेध दिवस की शुरुआत वर्ष 2002 में हुई थी।

loksabha election banner

पढ़ाई की उम्र में मजदूरी करते हैं बच्चे

जब बच्चों की उम्र खेलने-कूदने और पढ़ने की होती है, तो उनसे मजदूरी कराई जाती है। इसके लिए बाल श्रम अधिनियम कानून भी बने हैं। इसके तहत ढाबों, घरों, होटलों, फैक्ट्रियों या अन्य जोखिम भरी जगहों पर छोटे बच्चों से काम कराना कानून के दायरे के खिलाफ माने जाता है। यह दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। बाल श्रम कराते पकड़ने जाने पर कार्रवाई करने के साथ सजा और जुर्माने का प्रावधान है। कम से कम रोजगार प्राप्ति की न्यूनतम उम्र तक के सभी बच्चों को निश्शुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना आवश्यक है। रांची जिले में भी बाल श्रमिकों की संख्या कम नहीं है। सरकार के तमाम प्रयास के बावजूद बाल श्रमिक के रूप में बच्चे देखे जाते हैं। सरकार की बाल कल्याण समिति इसके लिए विशेष काम कर रही है। रांची जिले की बात करें या फिर राज्य की। बच्चे जहां भी बाल श्रम करते हैं, उन्हें मुक्त कराने का कार्य करता है। बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के आकड़ों को देखें तो अप्रैल से दिसंबर 2017 तक 853 केसेज आए। इतने बच्चों को बाल श्रम और अन्य जुल्मों से मुक्त कराया गया। वहीं जनवरी से मई 2018 तक यह आंकड़ा 483 है। इतने मामले आए तो निपटारा भी हुआ। इन बच्चों को मुक्त कराने के बाद या तो उनके माता-पिता को सौंप दिया गया या फिर प्रेमाश्रय और बालाश्रय में रखवाया गया।

--

गरीबी व अशिक्षा के कारण बाल श्रम :

बाल श्रम के पीछे गरीबी और अशिक्षा मुख्य कारण है। अभिभावकों की गरीबी की वजह से बच्चों को दो जून की रोटी नहीं मिल पाती है। पेट की इस आग को मिटाने के लिए वे या तो काम करने को मजबूर होते या फिर गलत रास्ता पकड़ लेते हैं। होटलों में काम करने को मजबूर होते हैं या फिर किसी के बहकावे में बाहर का रुख कर लेते हैं।

-

सरकार की नीतियां भी हो जाती हैं फेल :

सरकार ने बाल श्रमिकों के लिए एनसीएलपी विद्यालयों की स्थापना की है। जिले में ऐसे कई विद्यालय संचालित हैं, जहां उन्हें शिक्षा दी जाती है। उन्हें खाना के साथ पोशाक और अन्य पाठ्य सामग्री मिलती है। इसके अलावा अन्य योजनाएं भी चलाई जाती हैं। इसके बावजूद बाल श्रम पर विराम नहीं लग रहा है। बच्चों को मुक्त कराने को लेकर बड़ा कार्य भी होता है। कुछ दिन तक बच्चे शांत रहते हैं, लेकिन फिर उसी कार्य में लग जाते हैं। क्योंकि उनके खाने की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाती है।

--

आवासीय विद्यालय नहीं होना भी परेशानी :

स्थानीय या बाहर में बाल श्रम करते बच्चों को मुक्त कराया भी जाता है तो उनकी शिक्षा के लिए आवासीय विद्यालय नहीं है। इस कारण मुक्त कराए गए बच्चे पुन: उसी धंधे में लग जाते हैं।

----

'गरीबी, अशिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण बाल श्रम करने की शिकायत होती है। लोगों को जागरूक करना होगा। इसके लिए सरकार कार्य कर रही है। आम लोगों को भी आगे आना चाहिए। लोगों को सरकारी योजनाओं के लिए जागरूक होना होगा। स्वावलंबी बनाना होगा और पुर्नवास पर और कार्य करना होगा।

- रूपा कुमारी, अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति।

------

'बाल श्रम रोकने के लिए सामाजिक अध्ययन जरुरी है। बाल श्रमिक, बाल व्यापार बढ़ता जा रहा है। इसके लिए शिक्षा व जागरूकता पर विशेष कार्य करना होगा। लोगों को कानून का भी भय दिखाना होगा।'

- कौशल किशोर, बेंच ऑफ मजिस्ट्रेट, सीडब्लूसी।

------

बच्चों को शिक्षा देना जरूरी है। गरीबी की वजह से उन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता। इस कारण वे बहकावे में आकर बाहर चले जाते हैं या काम करने को मजबूर हो जाते हैं। मुक्त कराकर घरों में भेजा जाता है। उचित देखभाल नहीं होने के कारण वे फिर उसी काम में लग जाते हैं।

- श्रीकांत कुमार, बेंच ऑफ मजिस्ट्रेट, सीडब्लूसी

------

'14वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों को किसी भी संस्थान, फैक्ट्री, होटल या दुकान में काम कराना कानूनन अपराध है। इसके लिए जेल व जुर्माने तक का प्रावधान है। इसके बावजूद बच्चे बाल श्रम करते हैं। इसके पीछे गरीबी व अशिक्षा होती है। इसके लिए व्यापक कार्य करने की आवश्यकता है।

- सीता स्वांसी, सचिव, दीया सेवा संस्थान।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.