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Sunrise Timing, Chhath Arghya Time: अहले सुबह से भक्ति भाव में डूबे छठ व्रती, उदीयमान सूर्य को दिया अर्घ्‍य

Jharkhand News Chhath Puja 2020 आज शनिवार सुबह व्रतियों ने भगवान भास्‍कर को अर्घ्‍य दिया। रांची के विभिन्‍न तालाबों नदियों डैम में श्रद्धालुओं की भीड़ रही। इस दौरान व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष नदी तालाब सहित विभिन्न जलाशयों में पूजन सामग्री के साथ पहुंचे।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Fri, 20 Nov 2020 06:10 AM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 07:04 AM (IST)
Sunrise Timing, Chhath Arghya Time: अहले सुबह से भक्ति भाव में डूबे छठ व्रती, उदीयमान सूर्य को दिया अर्घ्‍य
रांची में शनिवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्‍य देते श्रद्धालु। जागरण

रांची, जासं। लोक आस्था के महापर्व छठ के चौथे दिन आज शनिवार सुबह व्रतियों ने भगवान भास्‍कर को अर्घ्‍य दिया। रांची के विभिन्‍न तालाबों, नदियों, डैम में श्रद्धालुओं की भीड़ रही। इस दौरान व्रत करने वाली महिलाएं और पुरुष नदी, तालाब सहित विभिन्न जलाशयों में पूजन सामग्री के साथ पहुंचे। इससे पूर्व शु्क्रवार को अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया। पंडित राकेश उपाध्याय के अनुसार छठ के दौरान सूर्य की पूजा करते हुए : ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।। ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि.... का जाप बेहद महत्वपूर्ण है।

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सूर्य को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए। गुड़ का दान करना चाहिए। जल चढ़ाते समय सूर्य को सीधे नहीं देखना चाहिए। गिरते जल की धारा में सूर्यदेव के दर्शन करना चाहिए। छठ पर्व की पूजा के दौरान पूजन विधान में शास्त्र के नियमों का बंधन नहीं है। व्रत करने वाले छठ में अर्घ्य सूर्य को देते हैं लेकिन पूजा छठी मइया की करते हैं। इसके पीछे का तर्क यह है कि प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है।

प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है। यही स्थानीय बोली में छठी मइया हैं। छठ की बड़ी खासियत यह भी है कि इसमें उगते सूर्य को तो जल अर्पण करते ही हैं, डूबते सूर्य को भी अर्घ्य देते हैं। यह आध्यात्मिक ताकत का प्रतीक है। गुरुवार को व्रत के दूसरे दिन व्रतियों ने खरना किया। देर रात तक श्रद्धालुओं ने खरना का प्रसाद ग्रहण किया।

सुबह से व्रतियों ने घर-आंगन को साफ-सुथरा कर खरना का प्रसाद तैयार किया। मिट्टी से बने चूल्हा पर ही खरना का प्रसाद बनाया गया। जलावन के रूप में आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया। स्नानादि कर पूजा में इस्तेमाल होने वाले सभी बर्तनों को साफ किया। शाम को प्रसाद के लिए अरवा चावल में गुड़ डालकर रसियाव खीर तथा रोटी बनाकर भगवान भास्‍कर तथा छठ मईया को अर्पित किया। ऐसी मान्यता है कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने मात्र से कई बिगड़े काम सफल हो जाते हैं।

लोक की आस्था का पर्व

छठ लोक यानी जन आस्था का पर्व है। यह पूरे समाज को अलग-अलग रूप से जोड़ता है। इसमें सबकी भागीदारी तय करती है। इस पर्व में पुरोहित की कोई परंपरा नहीं है। व्रती सीधे छठी मइया से जुड़ते हैं। सीधे भगवान सूर्य से जुड़ते हैं। कोई मंत्र भी नहीं होता। यह एकमात्र त्योहार है, जिसमें ऊंची-नीची जाति के भेद खत्‍म करने के साथ ही, हिंदू-मुस्लिम की दूरी भी खत्म हो जाती है। हर वर्ग पूरी आस्था के साथ छठ पर्व में शामिल होता है।

समाज में जिस वर्ग को अछूत बनाकर रखा गया, वही छठ के लिए सूप, डलिया आदि बनाते हैं। सारे व्रती उसे स्वीकार करते हैं। बांस से बनाए सूप की शुद्धता ही छठ की खासियत है। कुछ लोग पीतल के सूप का भी इस्तेमाल करते हैं पर ज्यादातर लोग बांस से बनाए सूप का ही प्रयोग करते हैं। समाज के अलग-अलग वर्गों को आर्थिक रूप से मजबूत करने का भाव भी इस पर्व में समाया रहता है।

कुम्हार के मिट्टी के चूल्हे पर छठ के प्रसाद, कद्दू-भात, रसिया-पूड़ी, ठेकुआ, कसार-लड्डू आदि बनाए जाते हैं। इस तरह के चूल्हे को शुद्ध माना जाता है। कलश व दीप वहीं से आते हैं। इस पर्व में धार्मिक सीमाएं भी टूटती हैं। अलग पंथ व संप्रदाय के लोग भी इस त्यौहार के लिए पूजन सामग्री बड़े पैमाने पर बेचते हैं।

इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता शुद्धता व अनुशासन है। छठ घाट पर किसी भी व्रती से प्रसाद लेने में किसी को हिचकिचाहट नहीं होती। प्रसाद लेने के बाद पैर छूकर आशीर्वाद लेने की भी परंपरा है। इसमें भी किसी को यह अभिमान नहीं रहता कि वह किसी ऊंची जाति से है। छठ महापर्व जातियों की, कर्मकांड की दीवार तोड़ देता है।

चौतरफा गूंजते लोकगीत

छठ पर्व के दौरान पूरे चार दिन फिजाओं में लोकगीत गूंजता है। कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय, होई ना बलम जी कहरिया, बहंगी घाटे पहुंचाय..।

शारदा सिन्हा के द्वारा गाया गया गीत ''पहिले पहिल छठी मईया'' छठ महापर्व का सबसे लोकप्रिय गाना है। पेन्हीं ना बलम जी पियरिया...छठ करे आई जैसे गीत भी खूब सुनाई देते हैं। छठ घाट के लिए पूजा का दउवा लेकर जाते समय महिलाएं इन गीतों को गाते हुए पीछे-पीछे चलती हैं।

अर्घ्य का समय

रांची

20 नवंबर 2020 : शाम 5.03 बजे

21 नवंबर 2020 : सुबह 6.07 बजे

जमशेदपुर

सूर्यास्त 5:00 बजे

सूर्योदय 6:02 बजे

धनबाद

सूर्यास्त 4.57

सूर्योदय 6.03

रामगढ़

सूर्यास्त 5.01

सूर्योदय 6.06

लातेहार

सूर्यास्त 5.05

सूर्योदय 6.11

गढ़वा

सूर्यास्त 5.07

सूर्योदय 6.14

लोहरदगा

सूर्यास्त 5.05

सूर्योदय 6.09

खूंटी

सूर्यास्त 5.04

सूर्योदय 6.07


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