Jharkhand Politics: झारखंड सरकार और केंद्र सरकार के संबंधों में और बढ़ेगी खटास
अक्टूबर 2020 में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय ने चौंकाने वाला फैसला लेते हुए नोटिस पर अमल किया। खाते से 1400 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि काट ली गई। झारखंड सरकार ने इस पर कड़ा एतराज जताया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे संघीय ढांचे पर प्रहार बताया।
रांची, प्रदीप शुक्ला। झारखंड सरकार और केंद्र सरकार के बीच तल्खी बढ़ती जा रही है। राज्य सरकार ने बिजली बिल भुगतान को लेकर केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय और रिजर्व बैंक के साथ हुए त्रिपक्षीय समझौते से खुद को अलग कर लिया। इस फैसले के बाद बिजली बकाए के एवज में ऊर्जा विभाग को भुगतान करने के लिए अब सीधे आरबीआइ से राशि की कटौती नहीं की जा सकेगी। राज्य कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। इस फैसले के बाद सरकार पुरानी व्यवस्था में बिजली खरीदकर भुगतान करेगी।
बेशक इस फैसले के पीछे बिजली बकाए को लेकर झारखंड व केंद्र सरकार के उपक्रम दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के बीच वर्षो से चला आ रहा विवाद है, लेकिन इससे आने वाले समय में राज्य सरकार की चुनौतियां और बढ़ेंगी ही। बिजली बकाए को चुकाने के बजाए समझौते से ही अलग होना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। यह समझना होगा कि यदि कोई कंपनी बिजली की आपूर्ति कर रही है तो उसका ससमय भुगतान सुनिश्चित हो। बिजली की चोरी करने वालों और बकाएदारों के प्रति अब लचीला रवैया अपनाना बंद करना ही होगा। डीवीसी झारखंड के सात प्रमुख जिलों में बिजली की आपूर्ति करती है। सामान्य दिनों में 600 मेगावाट की आपूíत होती है। बीते कुछ वर्षो में बिजली आपूर्ति का बकाया बढ़ता चला गया। पूर्ववर्ती सरकार ने इसका भुगतान नहीं किया।
वर्ष 2017 में तत्कालीन सरकार ने एक समझौता किया। इसमें यह सहमति बनी कि बिजली बिल का भुगतान नहीं होने की स्थिति में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय सीधे झारखंड के आरबीआइ खाते से भी वसूली कर पाएगा। वर्ष 2020 के शुरूआती महीनों में डीवीसी ने बकाया भुगतान की वसूली के लिए दवाब बनाया। इसके बाद बिजली कटौती का दौर शुरू हुआ। अगस्त, 2020 में केंद्रीय ऊर्जा मंत्रलय ने राज्य सरकार को बकाए के बाबत सूचित करते हुए कहा कि लगभग 5,600 करोड़ रुपये के बकाए का भुगतान किया जाए अन्यथा चार समान किश्तों में राशि आरबीआइ खाते से वसूल कर ली जाएगी।
सोरेन ने सख्ती दिखाई और यह भी स्पष्ट कर दिया कि एक ऋण का भुगतान करने के लिए सरकार दूसरा ऋण नहीं लेगी। इस बीच मासिक बिजली बिल का रेगुलर भुगतान करने का दबाव बढ़ा तो झारखंड सरकार ने डीवीसी के समक्ष बकाए की राशि को लेकर आपत्ति जताई। इस पर फैसला लेते हुए डीवीसी ने 1,400 करोड़ रुपये बकाए की राशि से घटा दिए। इससे झारखंड सरकार को बल मिला। अब बकाए की राशि का भुगतान तीन अलग किश्तों में जारी करने का निर्णय किया गया है।
त्रिपक्षीय समझौता रद करने के सियासी मायने-मतलब भी हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के सर्वेसर्वा हैं और वे अपने मतदाताओं के आधार को हर राजनीतिक फैसले से जोड़ लेते हैं। उन्होंने तर्क दिया है कि समझौते से अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति व महिलाओं का विकास होगा। इनके लिए चलाई जाने वाली विभिन्न केंद्रीय योजनाओं से प्राप्त धन को काटा जा रहा था। वैसे इस फैसले के पीछे की एक वजह और भी है। हाल के वर्षो में झारखंड में बिजली परियोजनाओं पर तेजी से काम हुआ है। इसके कारण दुर्गम क्षेत्रों तक ट्रांसमिशन लाइन तैयार हो चुकी है। इसके जरिये झारखंड बिजली वितरण निगम अपने संसाधनों से पैदा बिजली का अधिक इस्तेमाल कर रही है। डीवीसी से मासिक 150 करोड़ रुपये बिजली की खरीद होगी और इसका मासिक भुगतान होगा। इसी बहाने कई मोर्चा साधते हुए झारखंड सरकार यह संदेश देगी कि बिजली क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर राज्य बढ़ रहा है।
काफिले पर हमला, दलों में तकरार : रांची के ओरमांझी थाना क्षेत्र के परसागढ़ टोला में युवती की दुष्कर्म के बाद क्रूर तरीके से की गई हत्या से आक्रोशित लोगों का मुख्यमंत्री के काफिले पर हमला राज्य में सियासी टकराव का नया मुद्दा बन गया है। झामुमो जहां इसे भाजपा की ओर से करवाया गया सुनियोजित हमला करार दे रही है, वहीं विपक्षी दल भाजपा इस घटना को प्रशासनिक तंत्र की बड़ी विफलता बताते हुए दोषी अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग कर रही है। युवती के साथ जिस तरह से दरिंदगी हुई है और उसका सिर तक काट लिया गया, उससे एक स्वाभाविक आक्रोश तो है ही। जघन्य हत्या की तफ्तीश में पुलिस की शुरुआती सुस्ती के चलते आक्रोशित लोग सड़कों पर उतरे थे, लेकिन उन्होंने जिस तरह से मुख्यमंत्री के काफिले को रोककर पायलट गाड़ी पर सवार दरोगा पर हमला किया उसे भी जायज नहीं ठहराया जा सकता। लोकतंत्र में सभी को शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर अपनी बात कहने का हक है, लेकिन अराजकता को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]