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JPSC में व्याख्याता नियुक्ति घोटाला: दोषी अफसरों पर CBI का शिकंजा, पत्नियां भी जांच के घेरे में

Jharkhand. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से ही सीबीआइ रेस हो गई है। फॉरेंसिक जांच में ओवरराइटिंग की पुष्टि हुई है। 10 साल पूर्व नियुक्त व्याख्याताओं की मुश्किलें बढ़ेंगी।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 14 Sep 2019 10:12 PM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 08:12 AM (IST)
JPSC में व्याख्याता नियुक्ति घोटाला: दोषी अफसरों पर CBI का शिकंजा, पत्नियां भी जांच के घेरे में
JPSC में व्याख्याता नियुक्ति घोटाला: दोषी अफसरों पर CBI का शिकंजा, पत्नियां भी जांच के घेरे में

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) में व्याख्याता नियुक्ति घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ ने धीरे-धीरे दोषी अफसरों पर घेरा कसना शुरू कर दी है। अगर निष्पक्ष जांच हुई तो कई अफसरों की गर्दन तो फंसेगी ही, उनके साथ-साथ कुछ अफसरों की पत्नियां भी जांच के घेरे में आएंगी। कई अफसरों की पत्नियों की नियुक्ति व्याख्याता के पद पर हुई है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शीघ्र जांच के आदेश दिए जाने के बाद से ही सीबीआइ जांच को लेकर रेस है।

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सीबीआइ जांच के क्रम में कॉपी व मार्कशीट में नंबर बढ़ाने के आरोपों की फॉरेंसिक लैब की जांच में ओवरराइटिंग की पुष्टि हो चुकी है। इनमें कुछ अफसरों की पत्नियों की कॉपी व मार्कशीट हैं। उन्हें सफल घोषित करने के लिए कॉपी व मार्कशीट में छेड़छाड़ की गई। फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट, जेपीएससी से जब्त दस्तावेज की अब सीबीआइ समीक्षा करेगी, ताकि न्यायालय में पुख्ता सबूत के साथ जाए और दोषियों को सजा दिलाए।

बताया जाता है कि सीबीआइ ने जेपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष दिलीप प्रसाद, तत्कालीन सदस्य राधा गोविंद नागेश, गोपाल सिंह व शांति देवी तथा तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक एलिस उषा रानी सिंह को जानबूझकर गड़बड़ी करने का दोषी पाया है। उनके विरुद्ध केस चलाने के लिए सरकार से स्वीकृति मांगी गई है, लेकिन सीबीआइ को अब तक नहीं मिली है। उम्मीद है कि दो सप्ताह के भीतर आरोपितों पर मुकदमा चलाने की अनुमति सरकार से मिल जाएगी। इसके बाद ही आरोपितों पर चार्जफ्रेम सहित अन्य कानूनी प्रक्रिया शुरू होगी।

2008 में हुआ था नियुक्ति घोटाला

जेपीएससी के माध्यम से 2008 में व्याख्याता नियुक्ति में घोटाला हुआ था। तब जेपीएससी ने 745 व्याख्याता की बहाली के लिए जेट परीक्षा का आयोजन किया था। इस परीक्षा में बड़े स्तर पर धांधली की शिकायत सामने आने के बाद इस परीक्षा की जांच सीबीआइ से कराने की अनुशंसा की गई थी। अब खुलासा भी हो गया है कि गलत तरीके से नंबर बढ़वाकर कई आवेदकों ने नौकरी ली है। ऐसे व्याख्याता कॉलेज-विश्वविद्यालयों में योगदान दे चुके हैं और वेतन का लाभ भी उठा रहे हैं। अब इनपर कार्रवाई की तलवार लटक रही है।

निगरानी जांच में सामने आ चुकी है बड़ी गड़बड़ी

सीबीआइ से पहले मामले की निगरानी जांच हुई थी। इस जांच में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी पुष्टि पहले ही हो चुकी है। जांच में यह बात सामने आई थी कि जैक के कई प्रमाणपत्र और संबंधित कागजात ही गायब थे।


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