Jharkhand: मशरूम के शोध कार्य से जुड़ेंगे बीएयू के पीजी छात्र, कुलपति ने दिया आदेश
Jharkhand News बताया कि केंद्र में गुणवत्तायुक्त स्पॉन बीज का उत्पादन किया जा रहा है। इसकी पूरे प्रदेश में काफी मांग है। मशरूम उत्पादन के बाद अनुपयोगी पड़े बैग का कम्पोस्ट के रूप में प्रयोग कर ओल एवं अदरख की खेती की तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है।
रांची, जासं। बीएयू कुलपति डाॅ ओंकार नाथ सिंह ने आदेश दिया है कि पीजी के छात्रों को मशरूम उत्पादन के शोध कार्यों से जोड़ा जाए। झारखंड में मशरूम की गुणवक्ता सुधार और किसानों को बेहतर उत्पादन के स्पाॅन उपलब्ध कराने के लिए शोध कार्यों पर काम करना काफी जरूरी है। कुलपति ने यह आदेश विवि के मशरूम उत्पादन इकाई का निरीक्षण करने के बाद दिया।
इस दौरान उन्होंने बटन मशरूम उत्पादन की तकनीकों को देखा और इकाई के प्रभारी डा नरेंद्र कुदादा से केंद्र में सालों भर मशरूम उत्पादन एवं प्रशिक्षण की गतिविधियों की जानकारी ली। उन्होंने बताया कि केंद्र में गुणवत्तायुक्त स्पाॅन बीज का उत्पादन किया जा रहा है। इसकी पूरे प्रदेश में काफी मांग है। मशरूम उत्पादन के बाद अनुपयोगी पड़े बैग का कम्पोस्ट के रूप में प्रयोग कर ओल एवं अदरख की खेती की तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है।
इस वर्ष बीएससी एग्रीकल्चर के अंतिम वर्ष के छात्रों ने एक्सपेरियेंसियल लर्निंग प्रोग्राम (ईएलपी) के अधीन आयस्टर मशरूम एवं पिंक मशरूम का व्यावसायिक उत्पादन से उद्यमिता का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। डाॅ नरेंद्र कुदादा ने बताया कि केंद्र द्वारा हर वर्ष सैकड़ों पुरुष एवं महिला को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। मौके पर रांची के नगड़ाटोली से पहुंची शोभा खलखो ने अपने बटन मशरूम उत्पाद को दिखाया। उन्होंने बताया कि बटन मशरूम उगाने का सही समय अक्टूबर से मार्च का महीना होता है।
इन छ: महीनों में मशरूम की दो फसल की उगाई से अच्छी आय ली जा सकती है। मौके पर कुलपति ने कहा कि देश में मशरूम की खेती का प्रचलन काफी बढ़ता जा रहा है। इसमें काफी मात्रा में प्रोटीन, खनिज-लवण, विटामिन बी, सी व डी मौजूद होती है, जो सब्जियों की तुलना में काफी ज्यादा होती है। इसे देखते हुए उत्पादन एवं प्रशिक्षण गतिविधियों के सशक्त तथा विस्तारीकरण पर जोर दिया जाएगा। मौके पर डाॅ एमएस यादव, डाॅ अब्दुल वदूद, डाॅ पीके सिंह, डाॅ डीके शाही व मुनी प्रसाद भी मौजूद रहे।