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बिहार में शराब बेचकर लखपति बन रहे झारखंड के नशा कारोबारी, हर रोज हो रही लाखों की कमाई

BIHAR LIQUOR BAN शराब तस्करी पर पूरी तरह रोक नहीं लग पा रही है और न आगे लगने की उम्मीद है। अब तो बिहार से लगने वाले इलाकों में बड़े पैमाने पर शराब का कुटीर उद्योग शुरू हो गया है। सैकड़ों अवैध महुआ शराब फैक्टरियां चलने लगी हैं।

By Madhukar KumarEdited By: Published: Sat, 29 Jan 2022 04:14 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jan 2022 04:14 PM (IST)
बिहार में शराब बेचकर लखपति बन रहे झारखंड के नशा कारोबारी, हर रोज हो रही लाखों की कमाई
झारखंड में खुलकर चल रहा अवैध नशा कारोबार का खेल

चतरा, जागरण संवाददाता। बिहार की परेशानी बढ़ाने में झारखंडी शराब की बड़ी भूमिका है। पडो़सी राज्य में प्रतिबंध के बावजूद यहां से हर दिन हजारों लीटर शराब वहां भेजी जा रही है। तस्करी के माध्यम से वहां गुणात्मक मूल्य पर शराब बेची जा रही है। यह दीगर बात है कि स्थानीय पुलिस उसे रोकने की दिशा में तत्पर दिख रही है। वह अक्सर शराब तस्करी के खिलाफ अभियान चलाती रहती है।

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सख्ती के बावजूद फल फूल रहा कारोबार

परिणाम स्वरूप सप्ताह-पंद्रह दिनों में हजारों लीटर शराब बरामद और तस्कर गिरफ्तार किए जा रहे हैं। इसके बावजूद शराब तस्करी पर पूरी तरह रोक नहीं लग पा रही है और न आगे लगने की उम्मीद है। अब तो बिहार से लगने वाले इलाकों में बड़े पैमाने पर शराब का कुटीर उद्योग शुरू हो गया है। सैकड़ों अवैध महुआ शराब फैक्टरियां चलने लगी हैं। महुआ को यूरिया से गला कर बनाई जाने वाली इस देसी शराब की बिहार में काफी मांग है। इसे देखते हुए मिनी शराब फैक्टरी संचालकों और तस्करों ने मिल कर बड़ा नेटवर्क तैयार कर लिया है।

हर महीने एक लाख से ज्यादा की कमाई

नेटवर्क में सैंकड़ों बेरोजगार युवकों को बतौर कैरियर इस्तेमाल किया जा रहा है। काम के लिए तरस ऐसे युवक महज कुछ घंटे की जोखिम उठाकर हर दिन न्यूनतम हजार रुपये से ज्यादा की कमाई कर लेते हैं। जानकार बताते हैं कि महुआ से देसी शराब बनाने में अत्यंत कम लागत और गुणात्मक मुनाफे की गारंटी है। महज दस बीस हजार रुपये की लागत से हर महीने एक लाख से ज्यादा की कमाई की जाती है। कुछ अवैध शराब बनाने वाले महुआ के अलावा गाय का दूध उतारने वाली दवा (टॉक्सीन) का भी इस्तेमाल करते हैं। चूंकि वह ज्यादा नशीली दवा होती है, इसलिए उसके एक-दो बूंद से ही बडी़ मात्रा में शराब तैयार हो जाती है। हालांकि उस दवा की ज्यादा मात्रा शराब को जहरीली बना देती है। बिहार में तबाही मचा रही जहरीली शराब उसी असावधानी का दुष्परिणाम है।

कम पूंजी में ज्यादा मुनाफा

बहरहाल कम पूंजी में ज्यादा मुनाफा अवैध कारोबारियों को प्रोत्साहित कर रहा है। कैरियर तस्करी में बड़ी गाड़ियों के बजाय बाइक के इस्तेमाल को मुफीद मानते हैं। कैरियर को भी माल की डिलीवरी में दो-तीन किलोमीटर का देहाती रास्ता ही तय करना होता है। हाल ही में हंटरगंज की पुलिस ने थानेदार सचिन कुमार दास के नेतृत्व में अभियान चलाकर कई मिनी शराब फैक्टरियों को तबाह किया, तस्करों को दबोचा और उनके नेटवर्क का खुलासा किया है। जानकारों का दावा है कि जब तक दोनों राज्यों की पुलिस और उत्पाद विभाग संयुक्त रूप से अवैध शराब के खिलाफ सघन अभियान नहीं चलाएंगे तब तक उस पर रोक संभव नहीं होगा। इसके यह भी सुनिश्चित कराना होगा कि सरकारी दुकानों से उस राज्य में शराब की आपूर्ति नही हो सके।


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