झारखंड की जमीन पर पश्चिम बंगाल का दावा, विवाद बढ़ने के आसार
पश्चिम बंगाल सरकार का दावा है कि झारखंड सरकार ने उसकी जमीन पर कब्जा कर रखा है। सरकार जमीन पर दखल छोड़े।
प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड का अपने पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल के संग विवाद नया नहीं है। बंगाल कभी आलू की आपूर्ति रोकता है तो कभी बिना बताए अपनी बांधों का पानी छोड़ देता है। सीमावर्ती जिलों में झारखंड के लोगों को परेशान करने संबंधी सूचनाएं भी अक्सर आती है। नया मामला जमीन का है। पश्चिम बंगाल सरकार का दावा है कि झारखंड सरकार ने उसकी जमीन पर कब्जा कर रखा है। सरकार जमीन पर दखल छोड़े। जमीन पश्चिम बंगाल से सटी साहिबगंज जिले में है। पश्चिम बंगाल सरकार के मुताबिक उसके 50 हजार एकड़ जमीन पर झारखंड सरकार का कब्जा है। इसमें कलियाचक और मानिकचक प्रखंड का 29 मौजा शामिल है।
जमीन के इन मौजों में प्राणपुर, जीतनगर, बानुटोला, रानीगंज, नारायणपुर, सज्जादटोला, निमाइटोला, नित्यानंदपुर, रतनलालपुर, दोगाछी, गजियापाड़ा, कचियदुपुर, बेगमगंज, रहीमपुर, हाकिमाबाद, मंगतपुर, पंचानंदपुर, खासमहालपुर, कमालुद्दीनपुर, झाउबोना, दरीदियारा, जयरामपुर, दसकठिया, भवानंदपुर आदि शामिल है। झारखंड सरकार इस पर कब्जा छोड़े। पश्चिम बंगाल ने अपने दावे के पक्ष में आवाज बुलंद करने के लिए सीमावर्ती इलाकों के नेताओं को लगा रखा है, जो अक्सर इन विवादों की चर्चा कर तूल देते हैं। हाल ही में दुमका के समीप स्थित मसानजोर डैम को लेकर भी पश्चिम बंगाल ने विवाद खड़ा किया था।
झारखंड सरकार की मंत्री और दुमका की विधायक लुइस मरांडी ने इसका कड़ा विरोध किया था। इसका प्रतिफल हुआ कि पश्चिम बंगाल सरकार ने तत्काल हस्तक्षेप कर अधिकारियों की टीम भेजी। हालांकि अभी यह विवाद सुलझा नहीं है, लेकिन झारखंड सरकार के कड़े रूख को देखते हुए पश्चिम बंगाल ने तेवर नरम किए हैं। गौरतलब है कि मसानजोर डैम के पास पश्चिम बंगाल ने झारखंड सरकार के प्रतीक चिह्नों को हटा दिया था।
सैकड़ों पंचायत प्रतिनिधियों ने झारखंड में ली शरण
झारखंड पर पश्चिम बंगाल में हालिया पंचायत चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। इसमें निशाने पर भाजपा के समर्थक थे। भाजपा के टिकट पर जीतकर आए पंचायत प्रतिनिधियों को तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कई स्थानों पर निशाना बनाया। इनकी संपत्ति लूट ली और घरों को फूंक डाले। जान बचाने के लिए सैकड़ों पंचायत प्रतिनिधियों ने झारखंड में शरण ली। अभी भी सीमावर्ती इलाकों में इनका जत्था शरण लिए हुए हैं। ये हिंसा- प्रति हिंसा को देखते हुए वापस लौटना नहीं चाहते।