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BAU Ranchi: गरमा मूंग की खेती से किसानों की सुधरेगी आर्थिक स्थिति

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग तथा शस्य विज्ञान विभाग के रबी फसल शोध प्रक्षेत्रों का कृषि वैज्ञानिकों के दल ने निरीक्षण किया। निरीक्षण में मुख्य कृषि विज्ञानी डा डीएन सिंह ने कहा कि हाल के दिनों में देखने को मिला है।

By Vikram GiriEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2021 08:35 AM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 08:35 AM (IST)
BAU Ranchi: गरमा मूंग की खेती से किसानों की सुधरेगी आर्थिक स्थिति। जागरण

रांची, जासं । बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग तथा शस्य विज्ञान विभाग के रबी फसल शोध प्रक्षेत्रों का कृषि वैज्ञानिकों के दल ने निरीक्षण किया। निरीक्षण में मुख्य कृषि विज्ञानी डा डीएन सिंह ने कहा कि हाल के दिनों में देखने को मिला है कि लोग स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूक हुए हैं। ऐसे में प्रोटीन और ओमेगा फैटी एसिड से भरपूर मूंग की मांग में तेजी आयी है। इसके साथ ही विभिन्न कारणों से दाल के दाम में भी बाजार में तेजी देखने को मिल रही है। ऐसे में किसानों को गरमा मूंग की खेती करनी चाहिए। इससे किसान इस वर्ष बोहतर आय प्राप्त कर सकते हैं।

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डा डीएन सिंह ने विज्ञानिकों को सुखा सहिष्णु फसल एवं फसल प्रभेद तकनीक को बढ़ावा देने पर काम करने के निर्देश दिया। साथ ही, अनुसंधान में कृषि प्रणाली में मृदा स्वास्थ्य बनाए रखने को प्राथमिकता देने पर बल दिया। राज्य में वर्षा आधारित खेती को देखते हुए किसानों को फरवरी माह में गरमा मूंग की खेती शुरू कर देनी चाहिए।

इस निरीक्षण में वैज्ञानिकों ने गेहूं, सरसों, चना एवं तीसी शोध प्रक्षेत्रों को देखा।

मृदा विज्ञान विभाग द्वारा चालु रबी मौसम तीसी फसल के विभिन्न तकनीकी शोध पर जोर दिया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित तीसी प्रभेद दिव्या एवं प्रियम को समेकित पोषक तत्व प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य एवं लाभ, फसल अवशेष एवं बायोचार की कसौटी पर परखा जा रहा है। राज्य में तीसी खेती की संभावनाओं एवं किसानों की आय में बढ़ोतरी को देखते हुए विश्वविद्यालय तीसी खेती के विभिन्न लाभकारी आयामों को विकसित करने की भी कोशिश कर रहा है।

मौके पर मृदा विभाग के अध्यक्ष डा डीके शाही ने वैज्ञानिक दल को 1955 से चल रहे स्थाई उर्वरक शोध प्रक्षेत्र एवं 1972 से संचालित दीर्घ कालीन उर्वरक प्रबंधन शोध प्रक्षेत्र में गेहूं फसल पर प्रभावों से अवगत कराया। उन्होंने दोनों शोध प्रक्षेत्रों के परिणाम के आधार पर झारखंड के किसानों को यूरिया तथा यूरिया एवं डीएपी का प्रयोग नहीं करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सफल और टिकाऊ खेती के लिए किसान को उर्वरक की अनुशंसित मात्रा के साथ बुझा चुना एवं बढ़िया ढंग से सड़े गोबर खाद का प्रयोग करना चाहिए।

मौके पर वैज्ञानिकों ने शस्य विभाग के जैविक खेती खेती, फसल प्रणाली, समेकित कृषि प्रणाली एवं खर-पतवार सबंधी शोध प्रक्षेत्रों का निरीक्षण किया। विभाग के अध्यक्ष डा राघव ठाकुर ने शोध तकनीकों की जानकारी वैज्ञानिकों को दी। मौके पर डा बीके अग्रवाल, डा आरआर उपासनी, डा एस कर्मकार, डा अरविन्द कुमार, डा एसबी कुमार, डा आशा सिन्हा एवं शोधरत छात्र – छात्राएं भी मौजूद थी।


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