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अखरा बाची तो संस्कृति बाची : मुकुंद नायक

तुपुदाना तुपुदाना के देवगाई गाव में करमा पर्व के पूर्व शुक्रवार को अखरा में करम महोत्सव मनाया गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Sep 2019 03:36 AM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 03:36 AM (IST)
अखरा बाची तो संस्कृति बाची  :  मुकुंद नायक
अखरा बाची तो संस्कृति बाची : मुकुंद नायक

जागरण संवाददाता, तुपुदाना : तुपुदाना के देवगाई गाव में करमा पर्व के पूर्व शुक्रवार को अखरा के जावा को जगाया गया। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। दोपहर दो बजे से देर शाम तक इसे कार्यक्रम में दर्जनों गांव के महिला-पुरुष शामिल हुए। मांदर की थाप और प्रसिद्ध गायक पद्मश्री मुकुंद नायक एवं नंदलाल नायक के गीत पर लोग देर तक झूमते गाते रहे। गायिका यशोदा देवी, सीमा देवी, आरती देवी ने नागपुरी गीत पेश कर खूब तालियां बटोरी। कार्यक्रम की शुरुआत मुकुंद नायक ने जोहार से अभिवादन कर किया। मुकुंद नायक ने कहा कि युवा वर्ग विकास के साथ आगे जरूर बढ़े लेकिन संस्कृति को न भूलें। अखरा हमारी संस्कृति का परिचायक है जहां हमारे पूर्वज दिनभर की थकान मिटाने अखरा में जुटते थे। गीत-संगीत की बयार में सारी थकान मिट जाती थी। उन्होंने कहा कि विकास की अंधी दौड़ में गांवों से अखरा समाप्त होते जा रहा है। प्रयास करना चाहिए कि प्रत्येक गांव में अखरा हो। मौके पर विशिष्ट अतिथि माधो कच्छप, मुखिया रितेश कच्छप, विजय आनंद नायक, राजेश नायक राठौर, राजु नायक, कल्याण लिंडा, मुखिया शिवचरण, पहड़ा राजा हरिश्चंद्र सिंह मुंडा, लाल नरेश नाथ शाहदेव, डॉ रिंझू नायक, घोसला गाड़ी, राजू नायक सहित देवगाई एवं आसपास के सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित थे। कार्यक्रम के समापन पर सामूहिक भोज का आयोजन किया गया।

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25 गांवों को लिया गोद

एमएन फाउंडेशन के अध्यक्ष नंद लाल नायक ने कार्यक्रम में उपस्थित लोगों को बताया कि पिता मुकुंद नायक ने झारखंडी कला संस्कृति को बचाने के लिए अखरा कर कोना के तहत 25 गावों को गोद लिया है। इसके तहत युवा पीढ़ी को अखरा के माध्यम से आदिवासी संस्कृति से जोड़ना है।

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प्रकृति पर्व नौ को, फसल और भाइयों की सुरक्षा के लिए पाहन कराएंगे पूजा

जासं, रांची : प्रकृति पर्व करमा नौ सितंबर को धूमधाम से मनाया जाएगा। करमा पर्व झारखंड के आदिवासियों का प्रमुख त्योहार है। मुख्य रूप से यह त्योहार भादो की एकादशी के दिन और कहीं कहीं पर उसी के आसपास मनाया जाता है। पूजा में प्रकृति से अच्छे फसल की कामना की जाती है। साथ ही, बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। इस दौरान गांवों में ढोल-मांदर की थाप पर लोगों को झूमते-गाते देख सकते हैं।

प्रकृति पूजा के दिन हर ओर उल्लास का वातावरण होता है। परंपरा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस मौके पर बांस से बने डाली(टोगकरी) में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से उसमें नौ प्रकार के अन के बीज बोये जाते हैं जिसको जवा कहते है जिसमे जौ, गेहूं, मकई, बजरा, गुदली, मेंडे इत्यादि के बीज होते हैं। इसे सात दिन या नौव दिन तक करमइतिन लड़कियां इनकी सेवा करती है। सुबह-शाम विधि-विधान के साथ जगाती हैं। पूजा के एक दिन पहले गाव के पूजारी पहान करमदेव यानि करमा वृक्ष को एक दिन पहले ही नेवता दे देते है कि हे करम राजा कल आपको लेने आएंगे। पूजा के दिन सभी बहनें दिन भर उपवास करती है और शाम को फूल तोड़ने जाते हें। इधर गाव के पाहन और गांववाले ढोल नगड़ा के साथ करम देव यानि करम डाली को लाने जाते हैं। जंगल पहुंच कर पहले करमा पेड़ की पूजा की जाती है। फिर पेड़ से आज्ञा ली जाती है कि आप हमें अपनी दो डाली दीजिए। तब जा कर डाली काटी जाती है। यह भी ध्यान रखा जाता है कि डाली जमीन पर न गिरे। बहुत ही प्यार से डाली को अखरा में गाड़ा जाता है। पहान विधि-विधान से पूजन कराते हैं। देर रात तक पूजा-अर्चना चलती है। करमा-धरमा की कथा सुनायी जाती है। पूजा समाप्त होने के बाद इस डाली को अगले सुबह नजदीक के जलाशय में विसर्जित कर देते हैं।


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