ग्रामीण क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के लिए आशाओं की उड़ान है आकांक्षा
प्रतिवर्ष 125 बच्चों का होता है सेलेक्शन दी जाती है मुफ्त सरकारी सुविधाएं कुमार गौरव रां
- प्रतिवर्ष 125 बच्चों का होता है सेलेक्शन, दी जाती है मुफ्त सरकारी सुविधाएं
कुमार गौरव, रांची : वर्ष 2016-17 में शिक्षा व्यवस्था को मजबूती देने के लिए आकांक्षा स्कीम की शुरूआत की गई। इसे प्रदेश के सभी जिलों में शुरू किया गया। लेकिन अपेक्षा पर खरा नहीं उतर पाने के कारण जल्द ही इसे राज्य स्तरीय स्कीम बनाकर रांची तक ही समेट दिया गया ताकि इसके उद्देश्य व लक्ष्य को पूरा किया जा सके। प्रतिवर्ष दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद जैक द्वारा आकांक्षा की परीक्षा ली जाती है। इसमें मेधावी छात्र छात्राओं को 50 मेडिकल और 75 इंजीनियरिग सीट के लिए तैयार किया जाता है। यहां पढ़ने के लिए आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों से बच्चे आते हैं। आकांक्षा के सभी बच्चों के लिए जिला स्कूल में 2 डिजिटल प्रोजेक्टर, 25 कंप्यूटर, वाइफाई, लाइब्रेरी की सुविधा दी जा रही है। 10 अनुभवी शिक्षकों द्वारा यहां बच्चों को मेडिकल इंजीनियरिग की परीक्षा के लिए तैयार किया जाता है। यहां सरकार के द्वारा 2 साल तक सब कुछ निश्शुल्क उपलब्ध कराया जाता है। बच्चों ने कहा, इससे बेहतर कुछ नहीं : बोकारो से आए 12 वीं कक्षा के छात्र नरेश बेदिया ने कहा कि यहां इंजीनियरिग की तैयारी कर रहे हैं। शिक्षकों का बेहतर मार्गदर्शन मिल रहा है। पठन-पाठन के साथ साथ अन्य सुविधाओं का भी विशेष ख्याल रखा जाता है। घर से दूर रहने के बाद भी यहां घर जैसा ही माहौल है। पढ़ाई करने के लिए हाईटेक लाइब्रेरी और क्लास रूम की सुविधा यहां उपलब्ध है। अतिरिक्त क्लास की भी सुविधा यहां दी जा रही है।
-बिमल किस्कू, बोकारो। मेरे पिता ड्राइवर हैं और घर की माली स्थिति कुछ ऐसी है कि प्रदेश से बाहर जाकर इंजीनियरिग की तैयारी कर सकूं। लेकिन आकांक्षा में आने के बाद ऐसा लग है कि मंजिल बेहद करीब है और अपने माता पिता का नाम जरूर रौशन करूंगा।
-आशीष कुमार, गिरिडीह। प्लस टू की तैयारी के साथ साथ इंजीनियरिग के लिए बेस्ट फैकल्टी के दिशा-निर्देश पर पढ़ाई करना एक अलग अनुभव कराता है। खासकर ग्रुप स्टडी के लिए भी समुचित माहौल मिल पाता है।
-जन्मेजय राज, धनबाद। मेरे पिता किसान हैं और आकांक्षा में पढ़ाई करने के बाद ऐसा लग रहा है कि अब आसानी से लक्ष्य की प्राप्ति हो जाएगी।
-दीपक कुमार साव, धनबाद। मेरे पिता भी किसान हैं और जब आकांक्षा की परीक्षा पास की तो मुझे लग रहा था कि प्लस टू की तैयारी जैसा ही माहौल होगा। लेकिन जब यहां अनुभवी शिक्षकों का सानिध्य मिला तो सिलेबस आसान लगने लगा है।
-आकाश टोप्पो, गढ़वा दिन-रात मेहनत कर रहे हैं शिक्षक व बच्चे :
दरअसल आकांक्षा सरकार की महत्वाकांक्षी स्कीम है। इसे सफल और बेहतर बनाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। यहां 10 अनुभवी शिक्षकों की टोली दिन रात मेहनत कर बच्चों के सपनों को पंख दे रही है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों से आए बच्चों की प्रतिभा को यहां तराशा जा रहा है। इसके सुखद परिणाम भी सामने आने लगे हैं।
: अरविद विजय बिलुंग, जिला शिक्षा पदाधिकारी, रांची।