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7th JPSC Latest News: सातवीं जेपीएससी में उम्र सीमा को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में बहस, जानें पूरा मामला

7th JPSC Latest News Jharkhand News सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से अदालत ने कहा कि पिछली बार जेपीएससी की ओर से जारी विज्ञापन में जब वर्ष 2011 कट ऑफ डेट रखा गया था तो अचानक एक साल बाद इस बढ़ा क्‍यों दिया गया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 24 Aug 2021 04:59 PM (IST)Updated: Tue, 24 Aug 2021 06:52 PM (IST)
7th JPSC Latest News: सातवीं जेपीएससी में उम्र सीमा को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में बहस, जानें पूरा मामला
7th JPSC Latest News, Jharkhand News सातवीं जेपीएससी मामले में आज सुनवाई हुई।

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डा. रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ में सातवीं जेपीएससी परीक्षा में उम्र की सीमा निर्धारण करने के मामले में बहस पूरी नहीं हो सकी। इस मामले में सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी। इस संबंध में रीना कुमारी सहित अन्य ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सुनवाई के दौरान वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार, अपराजिता भारद्वाज और कुमारी सुगंधा ने अदालत को बताया कि जेपीएससी ने सिविल सेवा परीक्षा के लिए वर्ष 2020 में विज्ञापन जारी किया था। इसमें उम्र की सीमा एक अगस्त 2011 रखी गई थी।

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लेकिन बाद में सरकार ने नियुक्ति के विज्ञापन को रद कर दिया। इसके बाद सरकार ने जेपीएससी परीक्षा नियमावली बनाई और फिर से दोबारा विज्ञापन जारी किया। इसमें उम्र सीमा एक अगस्त 2016 रखी है। जबकि यह परीक्षा वर्ष 2017-18-19-20 के रिक्त पदों की है। नियमानुसार प्रत्येक साल सिविल सेवा की परीक्षा ली जानी चाहिए। लेकिन जेपीएससी ने चार साल के रिक्त पदों पर नियुक्ति के लिए एक साथ ही विज्ञापन जारी किया है। ऐसा करने से कई वैसे अभ्यर्थी वंचित हो गए, जिन्हें पहले विज्ञापन से आवेदन करने की उम्मीद थी।

राज्य सरकार प्रत्येक साल के रिक्त पदों के लिए उम्र की सीमा का निर्धारण एक-एक साल बढ़ाते हुए रखनी चाहिए थी, जैसा कि बिहार सरकार ने किया है। इसके बाद अदालत ने कहा कि यह सरकार का अधिकार और नीतिगत मामला है। लेकिन सरकार को अपने अधिकार का इस्तेमाल लोगों के हित में करना चाहिए। क्या एक ही बार में उम्र की सीमा चार साल बढ़ा देना उचित है, क्योंकि इससे पहले जारी विज्ञापन में उम्र की सीमा का निर्धारण एक अगस्त 2011 था।

अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि नियमानुसार हर साल के रिक्त पदों पर नियुक्ति होनी चाहिए थी, लेकिन राज्य सरकार ऐसा करने में विफल रही। ऐसे में क्या राज्य सरकार की गलती का खामियाजा अभ्यर्थियों को भुगतना पड़ेगा। अदालत ने कहा कि सिविल सेवा परीक्षा के लिए लोग कई सालों से तैयारी करते हैं। इनमें कई ऐसे होंगे, जो नौकरी छोड़ कर परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं।

इस पर महाधिवक्ता ने कहा कि अब तक जेपीएससी की ओर से ली जाने वाली परीक्षा के लिए कोई नियमावली नहीं थी। अब सरकार ने नियमावली बना दी है। उसके बाद विज्ञापन जारी किया है। हालांकि इस दौरान समय की कमी के चलते मामले में सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। इसके बाद अदालत ने उक्त मामले की सुनवाई बुधवार को दिन के साढ़े बारह बजे निर्धारित की है। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से बहस की जानी है।


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