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Strike in Coal Sector: कोयला मजदूरों की 3 दिवसीय देशव्यापी हड़ताल शुरू, सीएमपीडीआइ को कोल इंडिया से अलग करने का हो रहा विरोध

Strike in Coal Sector. यूनियनों के द्वारा शारीरिक दूरी बनाते हुए सीसीएल मुख्यालय दरभंगा हाउस और सीएमपीडीआई कांके में सुबह 10 बजे से विरोध प्रदर्शन शुरू किया

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 10:21 AM (IST)Updated: Thu, 02 Jul 2020 10:21 AM (IST)
Strike in Coal Sector: कोयला मजदूरों की 3 दिवसीय देशव्यापी हड़ताल शुरू, सीएमपीडीआइ को कोल इंडिया से अलग करने का हो रहा विरोध
Strike in Coal Sector: कोयला मजदूरों की 3 दिवसीय देशव्यापी हड़ताल शुरू, सीएमपीडीआइ को कोल इंडिया से अलग करने का हो रहा विरोध

रांची, जासं। कमर्शियल माइनिंग और सीएमपीडीआइ को कोल इंडिया से अलग करने के खिलाफ आज से केंद्रीय कोयल यूनियनों की तीन दिवसीय हड़ताल आज से शुरू हो गयी है। इस देशव्यापी हड़ताल से झारखंड के सभी कोल माइंस में खनन प्रभावित होगा। हड़ताल को सीटू, एआइसीटीयू, कोयला मजदूर संघ, राष्ट्रीय कोल यूनियन, सहित सभी कोल यूनियन का समर्थन प्राप्त है।

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यूनियनों के द्वारा शारीरिक दूरी बनाते हुए सीसीएल मुख्यालय, दरभंगा हाउस और सीएमपीडीआइ कांके में सुबह 10 बजे से विरोध प्रदर्शन शुरू किया गया। यूनियन का कहना है कि सरकार भारत को आत्मनिर्भर बनाने के चक्कर में कोयला इंडिया को कमजोर कर रही है। कमर्शियल माइनिंग से पूंजीवाद को बढ़ाना मजदूर विरोधी है। गौरतलब है कि पिछले महीने सरकार ने कोयला सेक्टर को कमर्शियल माइनिंग के लिए खोल दिया।

इस फैसले के साथ कोयला सेक्टर में सरकार की मोनोपॉली खत्म हो गई। अब कोयले का उपयोग सिर्फ सरकार ही तय नहीं करेगी, बल्कि कोयला उत्पादन करने वाली कंपनियां अब अपने लाभ के लिए भी कोयले का उत्पादन कर सकेंगी। यूनियन के द्व्रारा ये विरोध प्रदर्शन फुटबॉल ग्राउंड में किया जाएगा। इसके साथ ही सीएमपीडीआइ को भी कोल इंडिया से अलग करने के लिए कमिटी का भी गठन किया गया है।

कोयला मजदूर यूनियन के अध्यक्ष केबी शिरोमणि ने बताया कि सरकार के द्वारा ऐलान किए गए पैकेज से मजदूर और गरीबों का किसी भी हाल में भला होने वाला नहीं है। सरकार के द्वारा 2016 में 81 कोल ब्लॉक की नीलामी शुरू की गयी थी। मगर इसमें कोई खरीदार नहीं आया। अब 50 नये कोल ब्लॉक जो खोलने की बात हो रही है, उसी 81 में से हैं। साल 2000 में जिस इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने की बात शुरू हुई थी, वह 20 साल बाद अभी तक नहीं बना। फिर 50 हजार करोड़ कब तक जमीन पर उतरेगा, ये देखने वाली बात होगी।

कोयला उद्योग में प्राइवेटाइजेशन से मजदूरों का फिर वैसा शोषण होगा, जैसा वेज बोर्ड की बैठक से पहले था। मजदूरों और कामगारों को सरकार जैसी सहूलियत प्राइवेट कंपनी से अपेक्षित नहीं है। इसके साथ ही इससे पहले भी वर्ष 2014 में सरकार के द्वारा कोल ब्लॉक को गैर सरकारी या अर्ध सरकारी कंपनियों को चलाने के लिए दिया गया। उसमें से कुछ को छोड़कर सभी घाटे में हैं। ऐसे में सरकार का उल्टा नुकसान हो रहा है। ऊपर से कंपनियां श्रम कानून में संशोधन के बाद मजदूरों का शोषण करने के लिए स्वतंत्र हो जाएंगी।


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