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बड़कागांव में हर बार नए प्रत्याशी पर दांव लगाता है कांग्रेस

राकेश पांडेय भुरकुंडा(रामगढ़) बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास पर यदि नजर डाली जाए तो एक रुचिकर तथ्य दिखता है। भाकपा माले व कांग्रेस ने यहां हर बार अपने नये प्रत्याशियों पर दांव आजमाया है। बावजूद इसके भाकपा माले कभी भी मुख्य मुकाबले में नजर नहीं आई। बड़कागांव विधानसभा में कांग्रेस पार्टी 1952 से ही चुनाव लड़ते आ रही है। और हर बार नए चहरे पर दांव खेला है। हालांकि इसमें कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व कृषि मंत्री योगेन्द्र साव अपवाद हैं। इसका फायदा भी कांग्रेस को पहली बार विधानसभा में मिली थी। पिछले दो चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने बाजी मारी है। हालांकि इसमें भी कुछ तकनीकी कारण से प्रत्याशी बदलना ही पड़ा था। बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र में पहली बार 19

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Nov 2019 09:00 PM (IST)Updated: Mon, 18 Nov 2019 09:00 PM (IST)
बड़कागांव में हर बार नए प्रत्याशी पर दांव लगाता है कांग्रेस
बड़कागांव में हर बार नए प्रत्याशी पर दांव लगाता है कांग्रेस

राकेश पांडेय, भुरकुंडा(रामगढ़): बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र के चुनावी इतिहास पर यदि नजर डाली जाए तो एक रुचिकर तथ्य दिखता है। भाकपा माले व कांग्रेस ने यहां हर बार अपने नये प्रत्याशियों पर दांव आजमाया है। बावजूद इसके भाकपा माले कभी भी मुख्य मुकाबले में नजर नहीं आई। बड़कागांव विधानसभा में कांग्रेस पार्टी 1952 से ही चुनाव लड़ते आ रही है। और हर बार नए चहरे पर दांव खेला है। हालांकि इसमें कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व कृषि मंत्री योगेन्द्र साव अपवाद हैं। इसका फायदा भी कांग्रेस को पहली बार विधानसभा में मिली थी। पिछले दो चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने बाजी मारी है। हालांकि इसमें भी कुछ तकनीकी कारण से प्रत्याशी बदलना ही पड़ा था। बड़कागांव विधानसभा क्षेत्र में पहली बार 1985 में कांग्रेस मुकाबले में आई थी। इसमें कांग्रेस प्रत्याशी रामकुमार ओझा ने 26 हजार 45 मत लाकर कड़ी टक्कर दी थी। बावजूद इसके कांग्रेस का हर बार प्रत्याशी बदलना जारी रहा। यहां तक की वर्ष 1995 में कांग्रेस प्रत्याशी मतदान का कुल छह हजार 351 मत लाकर मात्र 4.68 प्रतिशत सिमट गई थी। माले का तो इससे भी बुरा हाल रहा है। 1990 में 10 हजार मत लाने वाली माले लगातार प्रत्याशी बदलने के बावजूद पिछले चुनाव में मात्र 1717 वोट पर सिमट गई थी। कांग्रेस के एक मात्र प्रत्याशी योगेन्द्र साव ही इस विधानसभा चुनाव में दो बार प्रत्याशी बने थे। जो अपवाद था। हालांकि योगेन्द्र साव ने पिछले दो दशक से मृत कांग्रेस में जान डाल दी थी। 2005 में पहली बार प्रत्याशी बनते ही 30 हजार 902 मत लाकर भाजपा के विजेता लोकनाथ महतो को कड़ी टक्कर दी थी। इसके बाद कांग्रेस ने इतिहास बदलते हुए पुन: योगेन्द्र साव पर भरोसा जताया और वे इसपर खरे उतरकर पहली बार कांग्रेस की झोली में यह सीट डाली। हालांकि इसके बाद 2009 के चुनाव में पुन: तकनीकी कारण योगेन्द्र साव चुनाव नहीं लड़ पाए। तब कांग्रेस ने उनकी पत्नी निर्मला देवी को प्रत्याशी बनाया। और वे भी चुनाव जीती। इस बार पुन: तकनीकी कारण के चलते कांग्रेस निर्मला को प्रत्याशी न बनाकर उनकी पुत्री अम्बा प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है। अब देखना लाजमी होगा कि जनता क्या फैसला देती है।

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कांग्रेस व भाकपा माले के लगातार बदलते प्रत्याशी

वर्ष कांग्रेस मत परिणाम माले मत परिणाम

1972 अर्जन राम 8508 हार - - -

1980 कैलाशपति सिंह 9116 हार - - -

1985 रामकुमार ओझा 26045 हार वंशी राम 2989 हार

1990 लम्बोदर पाठक 16297 हार राफत हसन 10394 हार

1995 सीपी संतन 6351 हार हीरा गोप 9219 हार

2000 इदरीश अंसारी 6908 हार गुणी उरांव 2993 हार

2005 योगेन्द्र साव 30902 हार पेरू प्रताप 3200 हार

2009 योगेन्द्र साव 38683 जीत क्यामुद्दीन 2269 हार

2014 निर्मला देवी 61817 जीत हीरा गोप 1717 हार

2019 अम्बा प्रसाद --- प्रत्याशी तय


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