ग्रेफाईट उद्योग को पुनर्जीवित कर लिख सकते हैं नया इतिहास
भारत वर्ष के कर्नाटक आंध्र प्रदेश उड़ीसा व झारखंड ही ऐसे राज्य है जहां कि ग्रेफाईट खनिज के निक्षेप पाए जाते है। वहीं झारखंड में सिर्फ पलामू जिला ही इस बहुमूल्य खनिज का बहुतयात भंडार है। पूर्व में जिले में दर्जनाधिक ग्रेफाइट खनिज के खदान संचालित किए जाते थे। बाद में बदलते नियमों व अन्य कारणों से धीरे-धीरे इन खदानों का संचालन बंद होता गया। यहां बता दे कि पलामू में विश्रामपुर सतबरवा व चैनपुर प्रखंडों में ग्रेफाइट खनन का कार्य किया जाता रहा था। लेकिन चैनुपर का सोकरा ग्रेफाईट खदान से उत्खनित खनिज में
केतन आनंद, मेदिनीनगर, पलामू : भारत वर्ष के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा व झारखंड ही ऐसे राज्य है जहां कि ग्रेफाईट खनिज के निक्षेप पाए जाते है। झारखंड में सिर्फ पलामू में ही इस बहुमूल्य खनिज का बहुतयात भंडार है। इसके समुचित दोहन, प्रसंस्करण, वेल्यू एडिशन को अगर निवेश और कौशल विकास से स्थानीय स्तर पर जोड़ा जाय तो पलामू की एक अलग तस्वीर उभरेगी। पूर्व में जिले में दर्जनाधिक ग्रेफाइट खनिज के खदान संचालित किए जाते थे। बाद में बदलते नियमों व अन्य कारणों से धीरे-धीरे इन खदानों का संचालन बंद होता गया। यहां बता दें कि पलामू में विश्रामपुर, सतबरवा व चैनपुर प्रखंडों में ग्रेफाइट खनन का कार्य किया जाता था। चैनुपर का सोकरा ग्रेफाईट खदान से उत्खनित खनिज में 80 से 86 प्रतिशत तक कार्बन की मात्रा पाई जाती थी। इसी के बूते सोकरा का ग्रेफाईट का पूरे एशिया के बाजार में वर्चस्व बना हुआ था। बताया जाता है कि यहां से उत्खनित खनिज को बंदरगाह के माध्यम से सीधा जापान, दक्षिण कोरिया व अन्य एशियाई देशों के मंडियों में भेजा जाता था। बाद में औद्योगिक विवाद के कारण 80 के दशक में काम बंद कर दिया गया और उस वक्त वहां कार्यरत करीब 450 मजदूर अचानक सड़कों पर आ गए। इसके बाद राज्य सरकार ने इस क्षेत्र को खनिज विकास निगम के लिए अधिसूचित कर दिया गया। तब से आज तक इस खदान को खोलने के कई प्रयास किए गए, लेकिन कोई भी प्रयास ठोस साबित नहीं हो सका। लेकिन आत्मनिर्भर झारखंड के लिए हमें अपनी इस शक्ति और संभावना को फिर से जीवित करना होगा। ताकि यहां रोजगार की नई इबारत लिखी जा सके। सोकरा परियोजना में है काफी संभावनाएं विशेषज्ञ बताते है कि सिर्फ सोकरा परियोजना को आरंभ कर देने से एक ओर विदेशी मुद्रा अर्जन किया जा सकता है, वहीं हजारों मजदूरों को रोजगार भी उपलब्ध कराया जा सकता है। यहां यह बताना आवश्यक है कि ग्रेफाईट खनिज के उत्खनन के बाद इसे कारखानों में परिष्कृत कर कार्बन की मात्रा को बढ़ा दिया जाता था। वहीं सोकरा खदान से उत्पादित खनिज की बिक्री सीधे विदेशी बाजार में भेज दिया जाता था। खनन विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान वैश्विक संकट में केंद्र सरकार कई श्रम कानून को शिथिल व खनन नीति में उदारता के संकेत दिए है। यह सोकरा ग्रेफाईट के खोले जाने की दिशा में वरदान साबित हो सकता है। इसके अलावा विश्रामपुर का होताई, तुलबुला, सतबवा का मानासोती, मलय ग्रेफाइट व अन्य खदानों का संचालन आरंभ कर देने से ना सिर्फ इससे संबंधित कारखानों का संचालन शुरू किया जाएगा, बल्कि प्रवासी मजूदरों के समक्ष रोजगार की समस्या को दूर कर सकेंगे।
बाक्स: प्रवासी मजदूरों की प्रतिक्रिया, बंद पड़ी माइंस खुले तो पलायन नहीं करेंगे : किशोर फोटो 21 डालपी 17 कैप्शन : किशोर कुमार
महाराष्ट्र से लौटे चैनपुर के प्रवासी मजदूर किशोर कुमार ने बताया कि पलायन करना अच्छी बात नहीं है। रोजगार के अभाव में पलायन करते हैं। अगर पलामू में बंद बड़ी ग्रेफाइट माइंस भी खुल जाए तो पलायन नहीं करेंगे। बाक्स..ग्रेफाइट माइंस खुलने से चैनपुर में ही मिलेगा रोजगार : निसार
फोटो 21 डालपी 18
कैप्शन : निसार अहमद
दिल्ली से लौटे चैनपुर के प्रवासी मजदूर निसार अहमद ने बताया कि अगर चैनपुर में ग्रेफाइट माइंस को खोल दिया जाए तो गांव में ही रोजगार से जुड़ने का मौका मिलेगा। बेवजह पलायन की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी। बाक्स..कोई शौक नहीं, लाचारी में करते हैं पलायन: सूर्यदेव
फोटो 21 डालपी 19
कैप्शन : सूर्यदेव यादव
सूरत से लौट रहे विश्रामपुर निवासी सूर्यदेव यादव ने बताया कि परिवार से सैकड़ों किलो मीटर दूर पलायन करने का किसी को शौक नहीं है। रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं। पलामू जिला प्रशासन अगर रोजगार मुहैया कराए तो पलायन स्वत: बंदहो जाएगा। बाक्स..रोजगार की तलाश में सूरत गए थे प्रदीप
फोटो 21 डालपी 20
कैप्शन : प्रदीप राम
मेदिनीनगर : सूरत से लौटे मजदूर मनातू निवासी प्रदीप राम ने बताया कि पलामू में रोजगार की अपार संभावनाएं है। कई माइंस बंद पड़े हैं। पलामू में ही रोजगार मुहैया कराई जाए।