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पृथक झारखंड में साइमन का रहा अहम योगदान

गणेश पांडेय/प्रमोद पाकुड़ अलग झारखंड आंदोलन उन दिनों चरम पर था। जयपाल सिंह मुंडा शिबू

By JagranEdited By: Published: Tue, 13 Apr 2021 10:29 PM (IST)Updated: Tue, 13 Apr 2021 10:29 PM (IST)
पृथक झारखंड में साइमन का रहा अहम योगदान
पृथक झारखंड में साइमन का रहा अहम योगदान

गणेश पांडेय/प्रमोद, पाकुड़ : अलग झारखंड आंदोलन उन दिनों चरम पर था। जयपाल सिंह मुंडा, शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो, निर्मल महतो सहित कई प्रमुख नेता इसमें अपना योगदान दे रहे थे। उन दिनों झामुमो नेता शिबू सोरेन जंगल और पहाड़ में भूमिगत रहकर आंदोलन को धारदार दे रहे थे। अलग झारखंड आंदोलन में साइमन मरांडी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। शिबू सोरेन के नेतृत्व में संतालपरगना में साइमन और उनके समर्थकों उन दिनों पृथक झारखंड के लिए संघर्ष कर रहे थे। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि साइमन मरांडी की वजह से शिबू सोरेन की संतालपरगना में अलग पहचान बनी थी। दिशोम गुरु से मिलकर उन्होंने संतालपरगना में महाजनी प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाया था। देखते ही देखते साइमन की पैठ आदिवासियों के बीच मजबूत हो गई थी।

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शिबू के काफी करीब थे साइमन मरांडी : पाकुड़ के महावीर भगत बताते हैं कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन 1975 में महाजनी प्रथा के खिलाफ जामताड़ा के चिरूडीह में आंदोलन किया था। उस वक्त भी साइमन ने शिबू का बढ़चढ़कर साथ दिया था। 17 फरवरी 1979 को पहली बार साइमन मरांडी ने शिबू सोरेन को संतालपरगना के धमनी बाजार की धरती पर पहली बार उतारा था। दोनों ने मिलकर यहां भी महाजनों के खिलाफ आंदोलन चलाया था जिसमें जोरडीहा निवासी होपा बेसरा शहीद हो गए थे। इसके बाद आंदोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया था। वर्ष 1980 के दशक में संतालपरगना में पहली बार झामुमो पार्टी का पदार्पण हुआ। उस समय साइमन मरांडी झामुमो के संस्थापक सदस्य हुआ करते थे। साइमन ने ही संतालपरगना में झामुमो पार्टी को पहचान दिलाई थी। इसके बाद समय के साथ पार्टी का जनाधार बढ़ता गया। महावीर बताते हैं कि वर्ष 1991 में अलग झारखंड राज्य के लिए शिबू के नेतृत्व में संतालपरगना में नाकेबंदी की गई थी। रेल रोको अभियान भी चलाया गया था। वर्ष 1992 में महावीर सहित अन्य कई समर्थक जेल भी गए थे। उन दिनों पुलिसिया कार्रवाई से बचने के लिए साइमन काठीकुंड के जंगल में छिपकर रहते थे। उसके साथ हेमलाल मुर्मू, प्रो. स्टीफन मरांडी भी थे। इसके बाद भी साइमन ने हार नहीं मानी आंदोलन को गति देते रहे नतीजा रहा कि 15 नवंबर 2000 को आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर झारखंड भारत का 28वां राज्य के रूप में मान्यता मिली।


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