देखरेख के अभाव में मुरझा गए पौधे
पाकुड़ पौधारोपण कर हम धरती पर हरियाली के साथ खुशहाली ला सकते हैं। इसके लिए हमें
पाकुड़ : पौधारोपण कर हम धरती पर हरियाली के साथ खुशहाली ला सकते हैं। इसके लिए हमें जागरूक होने की जरूरत है। पौधे के बिना कुछ भी संभव नहीं है। आंकड़ों की बात करें तो वन विभाग की ओर से वर्ष 2019-20 में दो लाख से भी अधिक पौधे लगाए गए, परंतु देखरेख व पानी के अभाव में 35-40 फीसद पौधे मर चुके हैं। धरातल पर सिर्फ गड्डे बचे हैं। बीते वर्ष जिले के पाकुड़, अमड़ापाड़ा व हिरणपुर रेंज में पौधारोपण किया गया था। पाकुड़ रेंज में 1.63 लाख पौधे लगाए गए। महेशपुर प्रखंड के बांसलोई नदी किनारे करीब 10 किलोमीटर की दूरी तक पौधारोपण किया गया। इस समय धरातल पर 60-65 फीसद ही नजर आते हैं। वन विभाग के अनुसार वर्षा कम होने के कारण लगभग 40 फीसद पौधे बर्बाद हो गए। मर चुके पौधे के स्थान पर भी दूसरा पौधा लगाया गया परंतु पानी के कारण वह भी मर गया। अमड़ापाड़ा व हिरणपुर रेंज में भी करीब एक लाख पौधे लगाए गए। उक्त प्रखंडों में वन भूमि पर पौधरोपण किया गया। उक्त प्रखंडों में भी आधे से अधिक पौधे जीवित हैं। वन विभाग के कर्मचारी पौधों की देखरेख कर रहें हैं।
छायादार पेड़ों पर जोर
वर्ष 2019-20 में पाकुड़, अमड़ापाड़ा व हिरणपुर रेंज में पौधारोपण हुआ। वन विभाग ने छायादार पेड़ों को लगाने में ज्यादा जोर दिया। शीशम, सागवान, महुगुनी, पीपल, बरगद, कचनार, अमरूद सहित अन्य प्रकार के वृक्ष लगाए गए। अधिकतर स्थानों में शीशम, सागवान व महुगुनी के पौधे जीवित हैं। पेड़ धीरे-धीरे बढ़ रही है। अधिकतर स्थानों में अमरूद का पेड़ गायब पाया गया। धरातल पर कुछ पेड़ ऐसे भी हैं जिसका विकास नहीं हो सका है। मुरझा कर दम तोड़ने के कगार पर पहुंच गया है।
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इस वर्ष 50 हजार पौधा लगाने की योजना :
वन विभाग वित्तीय वर्ष 2020-21 में जिलेभर में 50 हजार से भी अधिक पौधा लगाने की योजना बनाई है। इसी माह से पौधारोपण का कार्य प्रारंभ हो जाएगा। विभाग वन क्षेत्र में पीपल, आंवला, सोनाछाल, काला शीशम, कटहल सहित अन्य औषधीय पौधे लगाने की योजना बनाई है। वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार औषधीय पौधे के अलावा विलुप्त हो चुके पौधों को प्राथमिकता के आधार पर उसका रोपण किया जाएगा।
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वर्ष 2019 में लगाए गए पौधों को जीवित रखने के लिए निगरानी की जा रही है। चालू वर्ष में जिलेभर में करीब 50 हजार पौधे लगाने की योजना है। इस बाद औषधीय पौधे पर विशेष जोर दिया जाएगा।
डॉ. विनयकांत मिश्रा, डीएफओ, पाकुड़