बूंद-बूंद पानी ने लिख दी सफलता कहानी
लोहरदगा में किसान की सफल कहानी
राकेश कुमार सिन्हा, लोहरदगा : सिचाई संसाधनों के सहारे खेती से अपनी तकदीर तो कई लोग लिखते हैं, परंतु जो बूंद-बूंद पानी ने अपनी सफलता की कहानी लिख दे वही जल संरक्षण का सचा सिपाई होता है। जिले के भंडरा प्रखंड के मसमानो गांव निवासी आशुतोष ने बूंद-बूंद टपकते पानी से अपने जीवन की कहानी बदलकर रख दिया, जो शायद पानी की धारा से भी किसान नहीं कर पाते। आशुतोष ने पानी की बचत से बंजर जमीन में हरियाली बिखरे दी है। कई बार पानी की कमी और जमीन के उबड़-खाबड़ होने के कारण किसानों की खेती प्रभावित होती है। यहां पर खेती तो करते हैं, लेकिन खेती से मुनाफा नहीं कर पाते। किसान साल दर साल नुकसान झेलते रहते है और अंत में वे आर्थिक तंगी से जूझने लगते हैं। ऐसे किसानों की दशा और खेती की दिशा बदलने के लिए जिले के भंडरा प्रखंड के मसमानो गांव के प्रगतिशील किसान आशुतोष कुमार नजीर बने हुए हैं। आज उनके द्वारा 3 एकड़ में तरबूज व 2 एकड़ में लगाए गए मिर्च की खेती टपक सिचाई विधि से की जा रही है।
आशुतोष विगत पांच वर्षों से टपक विधि से खेती कर जल बचाने का काम कर रहे है। जो तरबूज से लोगों की भरी गर्मी में प्यास बुझती है। उससे आशुतोष कुमार ने बूंद-बूंद पानी से संजोये हुए हैं। गांव में इन्हें देखकर विजय राम, बैजनाथ साहू, बिरण साहू, धुर्वा साहू, बलकू राम भी टपक सिचाई विधि से खेती कर पानी बचाने में जुट गए हैं।
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सुधर रही आर्थिक स्थिति
लोहरदगा : कभी आशुतोष कुमार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहती थी, परंतु जब से उन्होंने टपक सिचाई पद्धति का प्रयोग करने लगे, तभी से ही उनकी स्थिति में काफी बदलाव आया है। वे कहते हैं कि वर्षभर का खर्च इसी खेती से निकलता है। इतना ही नहीं कुछ जरूरी काम भी खेती से मिले पैसे से हो जाता है। बताते हैं कि टपक सिचाई की खासियत तो यह है कि कहीं भी आप पौधा लगाइए, उसे पानी मिल जाएगा। साथ ही खर-पतवार भी कम होता है।
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क्या है टपक सिचाई
लोहरदगा : टपक सिचाई एक विशेष विधि है। इसमें पानी और खाद की बचत होती है। इस विधि में पानी को पौधों की जड़ों पर बूंद-बूंद करके टपकाया जाता है। इस कार्य के लिए वाल्व, पाइप, नालियों का नेटवर्क लगाना पड़ता है। इसे बूंद-बूंद सिचाई भी कहते हैं। इस विधि से सिचाई में पानी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, कम अंतराल पर, प्लास्टिक की नालियों द्वारा सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। परंपरागत सतही सिचाई द्वारा जल का उचित उपयोग नहीं हो पाता, क्योंकि अधिकतर पानी जो पौधों को मिलना चाहिए वह जमीन में रिस कर या वाष्पीकरण द्वारा व्यर्थ चला जाता है। ऐसे में उपलब्ध जल का सही और पूर्ण उपयोग करने के लिए एक ऐसी सिचाई पद्धति अनिवार्य है। इसके द्वारा जल का रिसाव कम से कम हो और अधिक से अधिक पानी पौधों को उपलब्ध हो पाए। इससे पानी की बचत होती है।