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Lok Sabha Polls 2019: बड़ा मुद्दा : खेल के विकास को लेकर पार्टियों के पास नहीं है संकल्प

Lok Sabha Polls 2019. लोहरदगा में बड़े मुद्दे की बात करें तो खेल का विकास यहां पर एक बड़ा मुद्दा है। राजनीतिक दलों के पास खेल के विकास को लेकर संकल्प नहीं है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 25 Mar 2019 12:11 PM (IST)Updated: Mon, 25 Mar 2019 12:11 PM (IST)
Lok Sabha Polls 2019: बड़ा मुद्दा : खेल के विकास को लेकर पार्टियों के पास नहीं है संकल्प
Lok Sabha Polls 2019: बड़ा मुद्दा : खेल के विकास को लेकर पार्टियों के पास नहीं है संकल्प

लोहरदगा, [राकेश कुमार सिन्हा]। लोहरदगा जिले में चुनाव के दौरान युवाओं का भविष्य संवारने के वायदे तो खूब किए जाते हैं। पर इसका प्रतिफल जमीन पर नजर नहीं आता। आज भी युवा वर्ग बुनियादी जरूरतों से जूझ रहा है। यदि लोहरदगा में बड़े मुद्दे की बात करें तो खेल का विकास यहां पर एक बड़ा मुद्दा है। सबसे बड़ा सवाल है कि राजनीतिक दलों के पास खेल के विकास को लेकर संकल्प नहीं है।

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कई प्रखंडों में स्टेडियम तक नहीं है। शहर के अंदर नदिया हिन्दू उच्च विद्यालय परिसर स्थित मिनी स्टेडियम और ललित नारायण स्टेडियम का हाल काफी बुरा है। खेल विभाग में खेल पदाधिकारी का पद प्रभार में चल रहा है। विद्यालयों में भी खेल प्रशिक्षक नहीं हैं। ऐसे में भला खेल का विकास होगा भी तो कैसे।

नेताओं के पास ना तो इन सवालों का कभी जवाब रहा है और ना ही उन्होंने कभी जवाब तलाशने की कोशिश ही की। प्राथमिक विद्यालयों से लेकर उच्च शिक्षा के मंदिर तक में खेल के विकास को कभी प्राथमिकता नहीं दी गई। खेल प्रशिक्षक के अभाव में खिलाड़ी आज भी परेशान हैं। अपने बलबूते पर तैयारी कर खेल स्पर्धाओं में भाग लेते हैं। परिणाम जो भी हो, उसमें सरकार और खेल विभाग का कोई रोल नहीं होता।

किसी एक खेल की ऐसी हालत नहीं है, बल्कि सभी खेलों का यही हाल है। जिले के किसी भी प्रखंड में स्टेडियम का निर्माण तक ना हो पाना खेल के प्रति उदासीनता को दर्शाता है। हर साल क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, वॉलीबॉल, कुश्ती सहित अन्य खेलों में खिलाड़ी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। एथलेटिक्स में भी खिलाडिय़ों का प्रदर्शन सराहनीय रहा है। इसमें हमारे प्रतिनिधियों का योगदान शून्य है।

ललित नारायण स्टेडियम आज अपना वजूद खोने की कगार पर है। इस और किसी का ध्यान तक नहीं है। आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के बावजूद आदिवासी युवाओं को खेल के प्रति जोडऩे को लेकर कोशिशें नजर नहीं आती हैं। प्रखंडों में खेल प्रतिभाएं संसाधनों के अभाव में दम तोड़ रही हैं।

कुश्ती की प्रतिभाएं खेत की मिट्टी में पसीना बहा रही हैं। खेल विभाग महज एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के भरोसे चल रहा है। ऐसे में खेल के विकास को लेकर संकल्प पर सवाल तो उठता ही है। इस बार के चुनाव में पार्टियों के घोषणा पत्र में खेल को लेकर वायदों पर नजर रहेगी।


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