Lok Sabha Polls 2019: लरका आंदोलन के शहीदों को पहचान दिलाने की है जरूरत
Lok Sabha Polls 2019. लोहरदगा में लरका आंदोलन के वीर सिपाही शहीद हुए थे। जिलेवासी हर साल इन्हें नमन करते हैं। लेकिन लरका आंदोलन के शहीदों को पहचान नहीं मिल पाई है।
लोहरदगा, [राकेश कुमार सिन्हा]। लोहरदगा में लरका आंदोलन के वीर सिपाही शहीद हुए थे। जिलेवासी हर साल इन्हें नमन करते हैं। इसके बावजूद लरका आंदोलन के शहीदों को अब तक पहचान नहीं मिल पाई है। इस विरासत को संभालने के लिए कोई संकल्प या समर्पण नहीं दिखता है। चुनावी मुद्दे के रूप में इसे कोई भी राजनीतिक दल प्राथमिकता नहीं देता है।
लरका आंदोलन का इतिहास समेटे कुडू प्रखंड के टीको गांव में हर साल सैकड़ों की संख्या में लोग इन शहीदों को याद करते हैं। इसमें नेता भी शामिल होते हैं। वादे भी खूब होते हैं। इन वादों को चुनाव के समय मंजिल देने की हिम्मत कोई नहीं दिखा पाता है। आदिवासी परंपरा के साथ इन्हें श्रद्धांजलि तो दी जाती है, पर कोई आदिवासी नेता इन्हें पहचान दिलाने को लेकर प्रयास नहीं करता है।
अंग्रेजों के खिलाफ झारखंड में शुरू हुआ लरका आंदोलन का केंद्र बिंदु टीको गांव ही था। यहां अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में दो फरवरी 1832 को वीर बुधू भगत के नेतृत्व में वीर बुधू भगत के पुत्र हलधर, गिरधर, पुत्री रूनिया, झुनिया के साथ सैकड़ों देशभक्त शहीद हो गए थे। अंग्रेजों ने इस आंदोलन में शरीक देशभक्तों की टीको गांव के जोड़ा बर के समीप हत्या कर दी थी। शहीदों के खून से यहां की धरती लाल हो गई थी।
शहीदों के बलिदान की पावन भूमि टीको गांव में शहीद स्थल है। अंग्रेजों के विरुद्ध इस लड़ाई में शहीद हलधर-गिरधर की समाधि पर राजनीतिक दलों द्वारा उनके सपने पूरे करने का संकल्प लेने की कोशिश नजर नहीं आती है। टीको गांव को शहीदों की कर्मभूमि के रूप में पहचान दिलाई जा सकती है। इसे पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।