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उम्मीदों की हरियाली को गोलियों से रंग रहा लाल आतंक

राकेश कुमार सिन्हा लोहरदगा लोहरदगा में 4 अक्टूबर 2000 को पेशरार की वादियों ने नक्सि

By JagranEdited By: Published: Wed, 18 Nov 2020 08:43 PM (IST)Updated: Wed, 18 Nov 2020 08:43 PM (IST)
उम्मीदों की हरियाली को गोलियों से रंग रहा लाल आतंक
उम्मीदों की हरियाली को गोलियों से रंग रहा लाल आतंक

राकेश कुमार सिन्हा, लोहरदगा : लोहरदगा में 4 अक्टूबर 2000 को पेशरार की वादियों ने नक्सलियों ने एसपी अजय कुमार सिंह की टीम पर हमला बोलकर उनकी हत्या कर दी थी। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वह आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। लोहरदगा जिले के अति उग्रवाद प्रभावित पेशरार प्रखंड के ओनेगढ़ा में पुल निर्माण योजना का कार्य देख रहे मुंशी विक्की गुप्ता को अगवा कर नक्सलियों द्वारा गोली मारकर हत्या करने की घटना के बाद पुलिस और सुरक्षा बलों का अभियान शुरू हो चुका है। लोहरदगा जिला पर्यटन, हरियाली और शांति का प्रतिक रहा है। इस तस्वीर को नक्सलियों ने अपनी करतूत से बर्बाद कर दिया। लाल आतंक उम्मीदों की हरियाली को गोलियों से रंग रहा है। माओवादी अब फिर से लोहरदगा पुलिस के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। कुख्यात नक्सली 15 लाख का इनामी भाकपा माओवादी संगठन का रीजनल कमांडर रविद्र गंझू विगत डेढ़ वर्ष के भीतर तीन हत्या की घटना को अंजाम दे चुका है। माओवादी दस्ते ने एक जून 1019 को पेशरार के बुलबुल में दिलीप भगत की हत्या कर दी थी। इसके बाद विगत 15 नवंबर 2020 को नक्सलियों ने सेरेंगदाग के मुंगो में जागीर भगत की हत्या की। इस घटना के महज कुछ ही घंटों के भीतर नक्सलियों ने पेशरार के ओनेगढ़ा में योजना कार्य देख रहे मुंशी विक्की गुप्ता की गोली मार कर हत्या कर दी। हाल के समय में हत्या की तीन घटनाओं को अंजाम दे कर नक्सलियों ने फिर एक बार लोहरदगा में अपनी धाक जमाने की कोशिश की है। नकुल और मदन के आत्मसमर्पण के साथ ही लोहरदगा में कई नक्सलियों के आत्मसमर्पण और गिरफ्तारी के बाद लोहरदगा में माओवादियों का दस्ता कमजोर हो चुका था। इसी बीच रविद्र गंझू के दस्ते में नेपाल और बिहार के कई नक्सलियों के शामिल होने और हथियार उपलब्ध होने के बाद रविद्र का दस्ता मजबूत हो गया। अपने दस्ते को मजबूत बनाने के साथ ही रविद्र गंझू लगातार घटनाओं को अंजाम देने लगा है। विगत 15 नवंबर 2020 को जिस जागीर भगत की गोली मार कर हत्या की गई, उस पर वर्ष 2018 में भी रितेश खेरवार सहित अन्य नक्सलियों ने हमला बोला था, तब गोली लगने के बाद भी वह बाल-बाल बच गया था। विगत 3 जनवरी 2020 को नक्सलियों ने पाखर में 9 वाहनों को फूंक कर अपनी उपस्थिति का अहसास करा दिया था। साल 2015 में जोबांग थाना क्षेत्र के मरायन जंगल में तीन लोगों की हत्या की घटना के बाद नक्सलियों के बीच एक फूट की स्थिति दिखाई दी थी, इसका परिणाम भी सामने आया। बाद में फिर से रविद्र अपने दस्ते को मजबूत करने में जुट गया है। नक्सली झारखंड बनने से पहले से ही सुरक्षा बलों के साथ-साथ आम आदमी के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। लोहरदगा में 3 मई 2011 को नक्सलियों के विरुद्ध अभियान पर निकले सुरक्षा बलों को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया था। इस घटना में जिला पुलिस बल के पांच और सीआरपीएफ के 6 जवान सहित कुल 11 जवान शहीद हो गए थे। इससे पहले साल 2009 के चुनाव के बाद आरओपी लगा रहे दो जवान माओवादियों के बिछाए बारूदी सुरंग की चपेट में आ कर शहीद हो गए थे। विगत वर्ष पेशरार के जंगलों में नक्सलियों के लगाए बम की चपेट में आ कर एक ग्रामीण की मौत हो गई थी, जबकि चार लोग घायल हुए थे। माओवादी न सिर्फ आम आदमी बल्कि सुरक्षा बलों के लिए भी खतरनाक साबित हो रहे हैं।

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