जागरण संवाददाता, लोहरदगा : लोहरदगा में स्वास्थ्य विभाग कहता है कि अब तक डेंगू का मरीज लोहरदगा में नहीं मिला है, वहीं लोहरदगा शहरी क्षेत्र के एक निजी अस्पताल ने एक मरीज के मलेरिया और डेंगू के इलाज के नाम पर 1.60 लाख रुपये का बिल थमा दिया। पैसे नहीं देने पर मरीज को दो दिनों तक अस्पताल से छुट्टी नहीं दी गई। निजी अस्पताल प्रबंधन की इस कार्रवाई से परिजन काफी परेशान रहे। जबकि परिजनों से पहले ही 60,000 रुपये ले लिए गए थे। यह मामला जब भाजपा नेताओं के संज्ञान में आया तो पहल की। जिसके बाद मरीज के परिजनों से 20 हजार रुपये और लेने के बाद उसे निजी अस्पताल से छुट्टी दी गई। मामले में सिविल सर्जन डा. विजय कुमार का कहना है कि अगर निजी अस्पताल ने मरीज के इलाज के नाम पर पैसे लिए तो वे इसमें वह क्या कर सकते हैं। मरीज को सरकारी अस्पताल पर भरोसा करना चाहिए था। हालांकि सीएस का यह भी कहना है कि लोहरदगा में अब तक डेंगू का मरीज नहीं मिला है। डेंगू के इलाज के नाम पर मरीज को धोखे में रखा गया, वे इसकी जांच करेंगे। लोहरदगा के निजी लैब कैसे डेंगू के मरीज की पुष्टि कर रहे हैं। जबकि डेंगू की जांच सिर्फ रांची के रिम्स में ही हो सकती है। क्या है पूरा मामला
लोहरदगा : जिले के भंडरा थाना क्षेत्र के मसमानों गांव निवासी केश्वर राम के पुत्र दीपक राम (16 वर्ष) को एक नवंबर को बुखार की शिकायत के बाद लोहरदगा शहरी क्षेत्र के संत उर्सूला अस्पताल में संचालित सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां पर दीपक का इलाज चल रहा था। इसी क्रम में तीन नवंबर को दो बिचौलिए मोटरसाइकिल से सदर अस्पताल पहुंचे। उन्होंने दीपक के परिजनों से कहा कि वे शहरी क्षेत्र के मुख्य डाकघर के समीप संचालित जनता हॉस्पिटल में दीपक का सस्ते में इलाज करा देंगे। इसके बाद दीपक को जनता हॉस्पिटल में लेकर आ गए। यहां पर दीपक का नौ दिनों तक इलाज किया गया। इस दौरान एक निजी जांच घर में दीपक की जांच कराकर मलेरिया और डेंगू होने की बात कही गई। इलाज के लिए साठ हजार रुपये जमा कराए गए। इसके बाद जब दीपक ठीक हो गया तो उसके परिजनों से और 1.60 लाख रुपये का बिल देकर पैसा जमा करने को कहा गया। पीड़ित परिवार द्वारा काफी मिन्नत करने के बाद इलाज के कुल 1.40 लाख रुपये देना तय हुआ। स्वजनों के पास इतने पैसे नहीं थे। वे परेशान होकर इधर-उधर भटकने लगे। इसके बाद मरीज के स्वजन अस्पताल प्रबंधन को 2000 रुपये देने को तैयार हुए, परंतु दो दिनों तक कथित तौर पर दीपक को अस्पताल से छुट्टी नहीं दी गई। इसके बाद स्वजन भाजपा जिलाध्यक्ष मनीर उरांव और राजकुमार वर्मा के पास पहुंचकर पूरे मामले की जानकारी दी। जिसके बाद भाजपा नेताओं का प्रतिनिधिमंडल निजी अस्पताल पहुंचकर अस्पताल प्रबंधन से बातचीत की। निजी अस्पताल के संचालक जियाउल अंसारी से बातकर प्रतिनिधिमंडल ने मरीज को रियायत देने का अनुरोध किया। जिसके बाद काफी मिन्नत और मीडिया के सक्रिय होने के बाद निजी अस्पताल प्रबंधन ने मरीज के परिजनों से 20000 रुपये और लेकर मरीज को अस्पताल से छुट्टी दी। इस मामले को भाजपा नेताओं ने उपायुक्त दिलीप कुमार टोप्पो के संज्ञान में लाया। जिसपर उपायुक्त ने मामले में जांच कराने की बात कही है। मामले में दीपक की मां विमला देवी और दीपक के भाई छोटू राम का कहना है कि उनके पास पैसे नहीं थे, वे काफी गरीब परिवार से हैं। ऐसे में उतने पैसे कहां से देते। परेशानी बताने के बाद भी मरीज को अस्पताल से छुट्टी नहीं दी जा रही थी। मामले में निजी अस्पताल के संचालक जियाउल अंसारी का कहना है कि मरीज अचेतावस्था में था। जांच में डेंगू की पुष्टि हुई है। जिसका इलाज किया गया है। इलाज के बाद आखिर उनके पैसे कौन देता। मरीज के परिजनों से कोई गलत पैसे नहीं लिए गए हैं।
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